वो छेड़छाड़ का मामला नहीं!

मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने 9 जनवरी को निर्णय दिया था। यह मामला 2016 का था और उसकी सुनवाई जस्टिस पुष्पा वी गनेडियावाला कर रही थीं।

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यौन शोषण के एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण कदम उठाया है। न्यायालय ने मुंबई उच्च न्यायालय के उस निर्णय पर रोक लगा दी है। जिससे पोक्सो के अंतर्गत दोषी एक शख्स की निर्दोष मुक्ति हो गई थी।

मुंबई उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि यौन शोषण के लिए ‘स्किन टू स्किन’ संपर्क आवश्यक है। उसके निर्णय के अनुसार कपड़ों को निकाले बगैर की क्रिया पोक्सो एक्ट के सेक्शन 8 में यौन शोषण नहीं है। इस मामले को अटॉर्नी जनरल केके वेणूगोपाल ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश रखा था। उन्होंने कहा था कि उच्च न्यायालय का ये निर्णय कि पोक्सो एक्ट के अंतर्गत स्किन टू स्किन संपर्क आवश्यक है बहुत हानिकारक उदाहरण को जन्म देता है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने आरोपी के निर्दोष मुक्ति को स्थगन दे दिया और 2 सप्ताह के भीतर उत्तर देने के लिए नोटिस जारी किया है।

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ये है मामला
यह मामला 2016 का है जिसमें सतीश रागड़े नामक एक शख्स 12 वर्षीय किशोरी को अपने घर ले जाकर उसके साथ अश्लील कृत्य किया। इस मामले में सत्र न्यायालय ने शख्स को सेक्शन 8 के अंतर्गत पोक्सो एक्ट में दोषी करार दिया था। जिस पर उच्च न्यायालय ने रोक लगाते हुए निर्णय दिया कि, इस मामले में जो कृत्य किये गए वह सेक्शन 354 के अंतर्गत छेड़छाड़ है।

 

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