रेवड़ी कल्चर पर सर्वोच्च न्यायालय में होगी सुनवाई, 23 अगस्त को बेंच ने की थी ये टिप्पणी

पिछली सुनवाई में 17 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय ने सभी पक्षों से विशेषज्ञ कमेटी के गठन पर अपने सुझाव दाखिल करने का निर्देश दिया था।

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सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच 24 अगस्त को भी चुनाव में मुफ्त की योजनाओं की घोषणा के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करेगी। 23 अगस्त को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस बात का फैसला कौन करेगा कि क्या चीज मुफ्तखोरी के दायरे में है और किसे जन कल्याण माना जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम निर्वाचन आयोग को इस मामले में अतिरिक्त शक्ति नहीं दे सकते हैं। गरीबी के दलदल में फंसे इंसान के लिए मुफ्त सुविधाएं और चीजें देने वाली योजनाएं महत्वपूर्ण हैं। चीफ जस्टिस ने कहा था कि मुफ्त उपहार एक अहम मुद्दा है और इस पर बहस की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि मान लें कि केंद्र सरकार ऐसा कानून बनाती है जिसमें राज्यों को मुफ्त उपहार देने पर रोक लगा दी जाती है तो क्या हम यह कह सकते हैं कि ऐसा कानून न्यायिक जांच के लिए नहीं आएगा। हम ये मामला देश के कल्याण के लिए सुन रहे हैं।

डीएमके के वकील को लगाई थी फटकार
इस दौरान चीफ जस्टिस ने डीएमके के वकील गोपाल शंकर नारायण को फटकार भी लगाई और कहा कि हम सब देख रहे हैं कि आपके मंत्री क्या कर रहे हैं। आप जिस पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनके लिए कहने को बहुत कुछ है। ये मत सोचिए कि आप एकमात्र बुद्धिमान दिखने वाली पार्टी हैं। ये मत सोचिए कि जो कुछ कहा जा रहा है उसे हम सिर्फ इसलिए नजरअंदाज कर रहे हैं क्योंकि हम कुछ कह नहीं रहे हैं। तमिलनाडु के वित्त मंत्री ने टीवी पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जो बयान दिए वो सही नहीं थे। दरअसल तमिलनाडु के वित्तमंत्री डॉ. पी थियाग ने कहा था कि देश के संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट या कोई भी कोर्ट ये फैसला करे कि जनता का पैसा कहां खर्च होगा। ये पूरी तरह विधायिका का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट इस बहस में क्यों पड़ रहा है।

सभी पक्षों से विशेषज्ञ कमेटी के गठन पर मांगे थे सुझाव
पिछली सुनवाई में 17 अगस्त को कोर्ट ने सभी पक्षों से विशेषज्ञ कमेटी के गठन पर अपने सुझाव दाखिल करने का निर्देश दिया था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अगर लोक कल्याण का मतलब मुफ्त में चीजें देना है तो यह अपरिपक्व समझदारी है। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि राजनीतिक दलों को लोगों से वादा करने से नहीं रोका जा सकता। चीफ जस्टिस ने कहा था कि वोटर की मुफ्त चीजों पर राय अलग है। हमारे पास मनरेगा जैसे उदाहरण हैं। सवाल इस बात का है कि सरकारी धन का किस तरह से इस्तेमाल किया जाए। ये मामला उलझा हुआ है। आप अपनी अपनी राय दें। इस मामले में आम आदमी पार्टी , कांग्रेस और डीएमके ने पक्षकार बनाने की मांग करते हुए याचिका दायर की है।

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