सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में सेना और अर्धसैनिक बलों की तैनाती की मांग करने वाली ट्राइबल फोरम की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता ने कहा कि कोर्ट ऐसा निर्देश नहीं दे सकती। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को दो हफ्ते के अंदर ताजा स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की सुनवाई दो हफ्ते के बाद होगी।
हालांकि कोर्ट ने कहा कि लोगों के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए सुरक्षा बलों की उचित तैनाती होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार एक कमेटी का गठन करे और सभी पक्ष अगले तीन दिनों में अपने सुझाव कमेटी को देंगे। इस कमेटी में कुकी समुदाय के विधायकों को भी शामिल करने पर सरकार विचार कर सकती है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि 14 जुलाई या उससे पहले उन सकारात्मक सुझावों पर कार्रवाई सुनिश्चित किया जाए।
कोर्ट ने राज्य सरकार को हिंसा पीड़ितों को मुआवजा देने और धार्मिक स्थलों के निर्माण के लिए मुआवजा देने का निर्देश दिया। कोर्ट को बताया गया कि मणिपुर में कानून-व्यवस्था और पुनर्वास की स्थिति की देखभाल के लिए सात जिलों में समितियां गठित की गई हैं। हालांकि समितियों में कुकी जनजाति समुदाय से कोई विधायक नहीं है। सरकार इन समितियों में इन समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करने पर विचार कर सकती है।
इस मामले पर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल किया है। मणिपुर सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि स्थिति सुधर रही है। इस समय किसी भी अफवाह से बचने की जरूरत है।
तीन जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा मामले पर ताजा स्टेटस रिपोर्ट तलब किया था। एक याचिका मणिपुर ट्राइबल फोरम ने दायर किया था। याचिका में कहा गया था कि केंद्र सरकार ने कोर्ट में जो आश्वासन दिया था वो झूठा था। केंद्र सरकार मणिपुर के मामले पर गंभीर नहीं है। याचिका में कहा गया था कि मणिपुर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 17 मई को जो पिछली सुनवाई हुई थी उसके बाद से कुकी समुदाय के 81 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 31,410 कुकी विस्थापित हो चुके हैं। इस हिंसा में 237 चर्चों और 73 प्रशासनिक आवासों को जला किया गया है। इसके अलावा करीब 141 गांवों को नष्ट कर दिया गया है। याचिका में कहा गया था कि केंद्र सरकार और राज्य के मुख्यमंत्री कुकी समुदाय को खत्म करने के सांप्रदायिक एजेंडे पर काम कर रहे हैं। याचिका में ये भी कहा गया था कि मीडिया में रिपोर्ट दिखाई जा रही है कि दो समुदायों के बीच की लड़ाई है। ये तस्वीर पूरी तरह से गलत है। हमलावरों को सत्ताधारी दल बीजेपी का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में जो लोग हमलावरों का समर्थन कर रहे हैं अगर उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाता है तो शांति बहाली के सारे प्रयास बेमानी साबित होंगे।
दूसरी याचिका बीजेपी विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई ने दायर की है। बीजेपी विधायक गंगमेई की ओर से दायर याचिका में मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद पूरे मणिपुर में अशांति हो गई है। इसकी वजह से कई लोगों की मौत हो गई। हाईकोर्ट ने 19 अप्रैल को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वो मैतई समुदाय को एसटी वर्ग में शामिल करने पर विचार करे। गंगमेई की याचिका में कहा गया है कि किसी जाति को एसटी में शामिल करने का अधिकार राज्य सरकार के पास है न कि हाईकोर्ट के पास।
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