Swatantryaveer Savarkar Jayanti Special: ‘सावरकर की नीति पर चल रहा है देश’- रणजीत सावरकर

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के कारण ही आज देश में प्रखर हिंदुत्व को पहचान मिली है। आज महाराष्ट्र समेत देशभर में वीर सावरकर की 141वीं जयंती जोश और उत्साह के साथ मनाई जा रही है।

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Swatantryaveer Savarkar Jayanti Special: आज भारत माता के सच्चे सपूत, देशभक्त और हिंदुत्व को सर्वप्रथम सही रूप में परिभाषित करने तथा इस विचार को आगे बढ़ाने वाले महान देशभक्त विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) की जयंती है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर (Swatantryaveer Savarkar) का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगुर गांव में हुआ था।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के कारण ही आज देश में प्रखर हिंदुत्व को पहचान मिली है। आज महाराष्ट्र समेत देशभर में वीर सावरकर की 141वीं जयंती जोश और उत्साह के साथ मनाई जा रही है। वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, अभिवक्ता, समाज सुधारक और हिंदुत्व के दर्शन के प्रणेता थे। हाल ही में सावरकर के जीवन पर बनी फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ में देश की आजादी के लिए उनकी तड़प, संघर्ष और समर्पण को बखूबी दर्शाया गया है। फिल्म में अभिनेता रणदीप हुड्डा ने शानदार अभिनय कर वीर सावरकर के चरित्र को सार्थक किया है। वे इस फिल्म के लेखक और निर्माता-निर्देशक भी हैं। आज ( 28 मई को) यह फिल्म ओटीटी पर भी रिलीज की गई है।

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जयंति सेमिनार का आयोजन
स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 141वीं जयंती के अवसर पर दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा गूगल मीट के माध्यम से एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार का विषय ‘स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान’ था। सेमिनार में 45 लोगों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम का संचालन दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी की सहायक पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी उर्मिला रौतेला ने किया। कार्यक्रम में डॉ. अजीत कुमार, प्रो. रिजवान कादरी, सुभाष चन्द्र कानखेड़िया, नरेंद्र सिंह धामी के साथ ही वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्रवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत विक्रम सावरकर सहित कई सावरकर प्रेमी मौजूद थे।

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भारत माता को स्वतंत्रता दिलाने की ली शपथ
कार्यक्रम में वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्रवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत विक्रम सावरकर ने अपने भाषण में कहा,” मैं आपको इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं कि आपने मुझे उनके पोते के रूप में नहीं बल्कि सावरकर अभ्यासी के रूप में बुलाया। वीर सावरकर स्वयं वंशवाद के विरोधी थे। सावरकर के पोते होने से अधिक महत्वपूर्ण उनका अनुयायी होना है। वीर सावरकर स्वयं इतिहास के ज्ञाता थे। यह प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली। उन्होंने इतिहास से प्रेरणा लेते हुए कहा कि परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, उसके अनुरूप चलते हुए गलती भी हो जाए तो कोई बात नहीं लेकिन उसे दोहराना नहीं चाहिए। आपको गलती से सीखना चाहिए। यदि पूर्वजों की कोई गलती हो तो भी उसे आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। वीर सावरकर ने 15 साल की उम्र में भारत की स्वतंत्रता की शपथ ली। चापेकर बंधुओं की फांसी के बाद उन्होंने कसम खाई कि वे देश के लिए क्रांति का नेतृत्व करेंगे। आम भावना यह रही है कि मैं देश के लिए अपनी जान दे दूंगा, लेकिन सावरकर का मानना ​​था कि मरकर हम देश को आजादी नहीं दिला पाएंगे। जब तक हम दुश्मन को नहीं मारेंगे, तब तक देश आजाद नहीं होगा। उन्होंने शपथ ली कि वे अपनी आखिरी सांस तक दुश्मन को मारते रहेंगे।”

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लंदन जाने का उद्देश्य
रणजीत सावरकर ने कहा, “स्वातंत्र्यवीर सावरकर के विचारो में स्पष्टता थी, और यह तब साबित हुआ, जब वह पढ़ने के लिए शत्रु की राजधानी लंदन जाए। उनका उद्देश्य था- शत्रु की राजधानी जा कर वहां की स्थिति की जानकारी लेना और उसके शत्रुओं से निकटता बढ़ाना। ब्रिटिश साम्राज्य बहुत बड़ा था। सावरकर उसके खिलाफ मिस्र तथा आयरलैंड में हो रही क्रांति को नजदीक से जानना चाहते थे। वहां उन्होंने बम बनाना सीखा और उसके बनाने की विधि को भारत भेजा। उन्होंने यह आशंका जाहिर की थी कि महायुद्ध होने वाला है। इसीलिए जर्मनी में उनके साथी पहले ही पहुंच गए थे। उन्होंने जर्मनी से संपर्क बनाया। अंडमान में रहने के बावजूद उन्होंने 1913 में फ्रांस में रह रही मादाम कामा के संपर्क में थे। इस कारण कई बार वीर सावरकर को अंडमान से छुड़ाने के प्रयास हुए। इसके लिए 1916 में रास बिहारी बोस ने एक जहाज भी भेजा था, जिसे ब्रिटिश साम्राज्य के एचएमएस कॉर्नवाल (HMS Cornwal) ने डूबा दिया। उनकी योजना थी की सभी क्रांतिकरियों को वहां से निकाल कर स्याम और बांग्लादेश में एक सशस्त्र क्रांति की शुरुआत की जाए। एक अनुमान के मुताबिक उस जहाज में 500- 1000 क्रन्तिकारी थे। इतिहास के इस हिस्से को भी छुपाया गया।”

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‘सिर्फ राजनैतिक स्वतंत्रता काफी नहीं’
रणजीत सावरकर ने कहा,  “वीर सावरकर का मनना था कि जब हम स्वंत्रता की बात करते हैं तो सिर्फ राजनैतिक स्वंतत्रता काफी नहीं है। इसके साथ ही आर्थिक स्वंत्रता, सामाजिक सुरक्षा, विज्ञान और और प्रोद्यौगिकी से भी संपन्न होना जरुरी है। सावरकर चाहते थे कि पिछली बार की तरह इस बार न हो। देश में सेना के कमजोर होने के कारण बार-बार लूट और आक्रमण जारी रहा, वैसा दोबारा न हो। इसीलिए उनका सैनिककरण का विचार था। इसके लिए उन्होंने अंडमान में रहते हुए भी कोशिश जारी रखी। जो बंदी वहां आते थे, उनमे सब शिक्षित नहीं थे। आजीवन सजा काट रहे बंदियों में निराशा होती थी कि अब यहीं मरना है। लेकिन सावरकर वहां उनका मनोबल बढ़ाते थे और कहते थे कि हमारा देश जल्द आज़ाद होगा। देश के निर्माण के लिए आपको शिक्षा लेनी चाहिए। ऐसे ही लोगों में से एक दिल्ली के पंडित परमानन्द थे। पंडित परमानन्द जब अंडमान आये थे तो बिलकुल अशिक्षित थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में पंडित उपाधि पर सवाल पूछे जाने पर कहा कि यह मैं सावरकर जी के अंडमान के नालंदा विश्वविद्यालय मे पढ़ा-लिखा हूं। और नालंदा तथा तक्षशिला के बारे में उन्होंने लिखा कि वो ज्ञान के भंडार थे, लेकिन शस्त्र न होने की वजह से वे हमें गंवाने पड़े। हमे शास्त्र के साथ शस्त्र भी चाहिए।”

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‘सवारकर की नीति पर चल रहा है देश’
रणजीत सावरकर ने कहा,   “1937 में स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने आर्थिक नीति का भी विवरण किया था कि राष्ट्रनिर्माण के लिए हमें शस्त्र चाहिए और शास्त्र भी चाहिए और अर्थ भी चाहिए। आज की सरकार की अर्थ नीति सावरकर की नीति पर ही चल रही है। उनका कहना था कि (there is no business of government to be in business) व्यवसाय कना सरकार का काम नहीं है। सरकार को बिजली, पानी और सड़क देना चाहिए और व्यापार के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उस समय दो व्यापारिक विचार थे- पूंजीवाद (capitalism) और साम्यवाद (communism)। सावरकर जी का कहना था कि ये दोनों गलत हैं। उन्होंने एक अलग ही नीति बनाई थी ‘वर्ग हित का राष्ट्रीय समभाव’ । आज वही नीति है। 2014 में आई सरकार ने सबका साथ सबका विकास किया है। विदेश नीति के बारे में उन्होंने 1928 में लिखा था कि किस देश में कौन- सी शासन पद्धति है, इससे ऊपर उठकर उस देश से मित्रता करने से हमारा क्या लाभ या हानि है, इस पर ज्यादा जोर होना चाहिए। मुझे लगता है कि आज हमारे देश में यही नीति चल रही है। जब इस नीति का उपयोग नहीं हो रहा था, तब देश का बहुत नुकसान हुआ। मुझे लगता है कि पिछले कुछ समय से सावरकर की नीति पर ही देश चल रहा है, जो सही नीति है।”

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