Swatantryaveer Savarkar Jayanti Special: दिव्य दाहक वीर सावकर

मार्च १९१० में अपनी भाभी को ढाढ़स बांधते हुए उपरोक्त कविता में वीर सावरकर लिखते हैं कि देशभक्ति के इस यज्ञ में उन्होंने अपना परिवार, संपत्ति, मित्र सब कुछ देश के लिए आहूत कर दिया है।

365
स्वातंत्र्यवीर सावरकर

चिरायु पंडित

Swatantryaveer Savarkar Jayanti Special:
देशभक्ति व्रत नहीं लिया हमने अंधेपन में
इतिहास प्रेरणा लेकर, ठान लिया हैं मन में,
हमें पता है ज्वाला, जौहर की दिव्य दाहक है
सती के जैसा तिलतिल जलना, तन में प्राण जब तक है
– वीर सावरकर (अनुवाद : चिरायु पंडित)

मार्च १९१० में अपनी भाभी को ढाढ़स बांधते हुए उपरोक्त कविता में वीर सावरकर लिखते हैं कि देशभक्ति के इस यज्ञ में उन्होंने अपना परिवार, संपत्ति, मित्र सब कुछ देश के लिए आहूत कर दिया है। वे स्वयं एक दिव्य दाहक धधकता यज्ञ कुंड थे। उस वक्त तो सावरकर का छायाचित्र या पुस्तक रखना भी दंडनीय अपराध माना जाता था। हालांकि,बाद में भी परिस्थितियों में कुछ ज्यादा अंतर नहीं आया।

यह भी पढ़ें- Swatantraveer Savarkar Award: घर से समर्थन मिलने के कारण मेरा हिंदुत्व आज भी जिंदा हैः विद्याधर नारगोलकर

सावरकर पर निगरानी
1962-63 के आसपास, इंदौर से कान्हेरे नामक एक युवक मुंबई आया। उसकी वायुसेना और थलसेना दोनों में चयन हो गया था। साक्षात्कार के लिए वह मुंबई में दादर स्थित अपने रिश्तेदार जोगदंड के यहां ठहरे। उचित सलाह के लिए वह सावरकर सदन गये। वहां उनकी मुलाकात तात्याराव सावरकर से हुई। कान्हेरे ने उन्हें अपने सैन्य चयन की बात बताई और दोनों बलों में से किसे चुनें, इस पर दुविधा प्रकट की। सावरकर ने गंभीरता से कहा कि वायुसेना के नियम और प्रशिक्षण अपेक्षाकृत कठिन और जटिल होते हैं। यदि तुम्हारी तैयारी हो तो वही क्षेत्र चुनो। कान्हेरे ने इसे आशीर्वाद मानकर प्रणाम किया और वहां से बाहर निकल आये। अगले दिन सैन्य मुख्यालय में साक्षात्कार के दौरान पहला प्रश्न था, “कल शाम तुम सावरकर के निवास पर क्या कर रहे थे?” उन्होंने बिना झिझक शांतिपूर्वक कहा कि वह सावरकर से सलाह लेने गए थे।” आगे चलकर कान्हेरे का चयन वायुसेना में हुआ, जहां उन्होंने अच्छी प्रगति की। इससे यह फलित होता है कि स्वतंत्रता के बाद भी सरकार ८० वर्षीय वृद्ध सावरकर पर पैनी नजर रखती थी। विख्यात लेखक डॉ. सच्चिदानंद शेवडे ने सुनील जोगदंड के साथ हुई बातचीत के आधार पर उपरोक्त घटना लिखी है।

यह भी पढ़ें- Swatantrya Veer Savarkar Award: ‘सावरकर’ सिर्फ उपनाम नहीं, बल्कि जीने का उद्देश्य हैः राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर

पिन कोड के जनक ने पाई सजा
ऐसी ही एक घटना पिनकोड पद्धति के जनक वेलणकर के सचिव अरविन्द कुलकर्णी के साथ बातचीत के आधार पर जानेमाने सावरकर अभ्यासक डॉ. सुबोध नाईक ने उल्लिखित की है। श्रीराम भिकाजी वेलणकर, भारतीय डाक सेवा के एक प्रमुख अधिकारी, नई दिल्ली हवाई अड्डे पर अपनी उड़ान का इंतजार कर रहे थे, जब एक सज्जन उनके पास आए और पूछा कि क्या वह वेलणकर हैं। चकित वेलणकर ने हां में उत्तर दिया। उस व्यक्ति ने उन्हें बताया कि वेलणकर के भारतीय सिविल सेवा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने के बावजूद, उन्हें डाक कैडर आवंटित किया गया था और शीर्ष प्रशासनिक कैडर नहीं दिया गया था। इसका कारण यह था कि बचपन में वेलणकर वीर सावरकर की शाम की कहानी सत्रों में भाग लेते थे। जब पुलिस पृष्ठभूमि जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया, तो सरकार उनके उद्देश्यों को लेकर संदेह में पड़ गई। इसलिए उन्हें एक निचला कैडर दिया गया। यह जानकारी देने वाले व्यक्ति वेलणकर के मुख्य परीक्षक थे, जो पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज के प्राचार्य भी थे। उन्होंने 1905 की विदेशी वस्त्रों की होली में भाग लेने के लिए सावरकर को निष्कासित किया था। उनका नाम था- सर रघुनाथ पुरुषोत्तम परांजपे या रैंगलर परांजपे।

यह भी पढ़ें- Swatantrya Veer Savarkar Award: भव्य समारोह में स्वातंत्र्यवीर सावरक शौर्य, विज्ञान, समाज सेवा, स्मृति चिन्ह पुरस्कार प्रदान किये गये

प्रतिभा पर ग्रहण
कुछ घटना केवल बातचीत में नहीं बल्कि खुफिया रिपोर्ट में भी दर्ज हुई है। असामान्य प्रतिभा के धनी काशी प्रसाद जायसवाल का नाम अग्रिम पंक्ति के भारतीय इतिहासकारों में शामिल है, उनका ग्रंथ “हिंदू पालिटी” या “हिंदू राज्य व्यवस्था” प्राचीन भारत को समझने के लिए आज भी प्रमाण माना जाता है। इंग्लैंड से वकालत पढ़ने के बाद 1910 में जब वह भारत आए, तब इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत करने से उन्हें रोक दिया गया। 1913 में कोलकाता यूनिवर्सिटी में चयनित होने के बावजूद सरकार ने उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी। इसका कारण था कि वे “इंडिया हाउस” की प्रवृत्तियों से जुड़े हुए थे। खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार 1910 में लंदन में सावरकर पर अभियोग चल रहा था, तब वे अदालत में उपस्थित रहते थे, यहां तक कि वह 17 और 18 मई को सावरकर को जेल में भी मिले थे। वापस भारत आते वक्त वे इजिप्ट में ब्रिटिश विरोधी राष्ट्रवादी नेता हामिद अलैली से मिले थे।

यह भी पढ़ें- Swatantrya Veer Savarkar Award: ‘सावरकर’ सिर्फ उपनाम नहीं, बल्कि जीने का उद्देश्य हैः राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर

जायसवाल पर बदला सरकार का रुख
हालांकि, 1914 में पैंतरा बदलते हुए सरकार के क्रिमिनल इंटेलिजेंस के प्रमुख ने बिहार के लेफ्टिनेंट गवर्नर को 4 जून को लिखा, “जायसवाल ऐतिहासिक संशोधन में असाधारण प्रतिभा रखते हैं, उनको भारत में ही बसने के लिए अवसर देना चाहिए। यह उनके लिए और सरकार के लिए भी उचित होगा।” जायसवाल जी ने स्वयं को वकालत और इतिहास संशोधन में झोंक दिया और सफलता  प्राप्त की।

यह भी पढ़ें- Swatantraveer Savarkar Award: घर से समर्थन मिलने के कारण मेरा हिंदुत्व आज भी जिंदा हैः विद्याधर नारगोलकर

सावरकर कार्य नहीं आसान
चरित्रकार धनंजय कीर को सावधान करते हुए सावरकर ने कहा था “मुझे पता है आप बाल बच्चे वाले नौकरी पेशा इंसान है। आपका एक छोटा सा घर है। मेरा चरित्र लिखने से पहले आप एक बार अवश्य पुनर्विचार करें।” आज भी सावरकर का कार्य करना इतना आसान नहीं है। सावरकर नाम की दिव्य दाहक अग्नि से देश के शत्रु तो जल गये, लेकिन साथ साथ अनेक अपने भी झूलस गये। शायद इसीलिए सावरकर ने लोगों को अपने आप से दूर रखा।

यह वीडियो भी देखें-

https://youtu.be/2NFL4BsM_vU?si=UFqw1f4gcb-rvdO8
Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.