Swatantryaveer Savarkar Jayanti Special: हे युग द्रष्टा हे युग पुरुष, हे क्रांतिवीर हे राष्ट्रभक्त!

राष्ट्रभक्ति को सर्वोपरि मानने वाले सावरकर के लिए हिंदुत्व मात्र एक शब्द न होकर एक इतिहास था। एक ऐसा इतिहास जिसमें न केवल भारत का आध्यात्मिक चिंतन और धार्मिक चेतना बल्कि यह सम्पूर्ण सभ्यता का इतिहास था।

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डॉ एन. लक्ष्मी

Swatantryaveer Savarkar Jayanti Special:
“हे हिंदुशक्ति-संभूत दीप्ततम तेजा
हे हिंदुतपास्या-पूत ओश्वरी ओजा
हे हिंदुश्री-सौभाग्य-भूतिच्या साजा
हे हिंदुनृसिंहा प्रभो शिवाजी राजा”
राष्ट्रभक्ति को सर्वोपरि मानने वाले सावरकर के लिए हिंदुत्व मात्र एक शब्द न होकर एक इतिहास था। एक ऐसा इतिहास जिसमें न केवल भारत का आध्यात्मिक चिंतन और धार्मिक चेतना बल्कि यह सम्पूर्ण सभ्यता का इतिहास था। आजादी के संघर्ष के लिए मर मिटने वाले सावरकर का कहना था-“मैंने तो अपनी संपत्ति के लिए अंग्रेजों से संघर्ष नहीं किया। मैं तो केवल भारत माता की मुक्ति के लिए ही संघर्ष करता रहा हूं। अपनी निजी संपत्ति के लिए मैं संघर्ष नहीं करूंगा।” इस प्रकार के उच्च विचार के धनी देशभक्त थे सावरकर। ऐसे क्रांतिवीर,युग द्रष्टा, युग पुरुष की राष्ट्रभक्ति से देश की आने वाली पीढ़ियां प्रेरणा लेती रहेंगी।

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हिंदू कौन है?
वीर सावरकर का विचार था कि प्रत्येक हिंदू को निम्न पंक्तियों को कंठस्थ कर लेना चाहिए-
आसिन्धु: सिंधुपर्यंता यस्य भारत भूमिका ।
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिंदूरीतिसमृत:।।
हिंदू शब्द या हिंदू राष्ट्र की संकल्पना को स्पष्ट करते हुए सन 1937 के अखिल भारतीय हिंदू महासभा अधिवेशन में सावरकर ने कहा था- ‘हिन्दू वही है, जो सिंधु नदी से सिंध-समुद्र पर्यंत विस्तृत इस देश को अपनी पितृ-भू मान्यता है; जो रक्त-संबंध से उस जाति का वंशधर है, जिसका प्रथम उद्भव वैदिक सप्त-सिंधुओं में हुआ और जो पीछे बराबर आगे बढ़ती, अंतर्भूत को पचाती और उसे महनीय रूप देती हिंदू जाति के नाम से विख्यात हुई; जो उत्तराधिकार संबंध से उसी जाति की उस संस्कृति को अपनी संस्कृति मानता है, जो संस्कृति संस्कृत भाषा में संचित और जाति के इतिहास, साहित्य, कला, धर्मशास्त्र, व्यवहार-शास्त्र, रीति-नीति, विधि संस्कार, पर्व-त्यौहार द्वारा अभिव्यक्त हुई है और जो इन सब बातों के साथ इस देश को अपनी पुण्य-भू, अपने अवतारों ऋषियों की, अपने महापुरुषों और आचार्यों की निवास-भूमि तथा सदाचार और तीर्थ-यात्रा की भूमि मानता है।”

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उच्च विचारों के नायक व राष्ट्रभक्त थे सावरकर
भारत माता की आन-बान-शान के लिए मर-मिटने वाले वीर सपूत सावरकर की पहचान मूलत: प्रगतिवादी हिंदू के रूप में किया जा सकता है। क्योंकि सावरकर हिंदुत्व के संरक्षक होते हुए भी रूढ़िवाद से कोसों दूर थे। उनका हिंदुत्व दूसरे मानव के प्रति घृणा का भाव नहीं रखता था। बल्कि वे उस हिंदुत्व के पक्षधर थे, जिसमें मानव-मानव के प्रति प्रेम और सौहार्द की भावना सिंचित हो सके। सावरकर जिस हिंदू और हिंदुत्व की बात करते थे, वह सांप्रदायिकता के संकुचित बंधनों से परे था, क्योंकि वे भली-भांति समझ चुके थे कि अंग्रेज शासक धर्म के नाम पर हिंदू और मुसलमानों के बीच फूट डालने का प्रयास कर रहे थे। इसलिए उन्होंने कहा था- “हिंदू आजादी का संघर्ष अधिपति (मास्टर) बदलने के लिए नहीं कर रहे थे।” हिंदू-मुस्लिम एकता पर उनका कथन आज भी प्रासंगिक है। उनका कहना था –“ यदि तुम आते हो तो तुम्हारे साथ, नहीं आते तो तुम्हारे बिना, यदि विरोध करते हो तो विरोध के बावजूद हिंदू राष्ट्रीय एकता के लिए संघर्ष करते रहेंगे।” इस प्रकार के उच्च विचारों के नायक व राष्ट्रभक्त थे सावरकर। उनके हिंदुत्व की अवधारणा को व्यापक संदर्भ में ली जानी चाहिए। उसे सांप्रदायिकता के सीमित दायरे में रखकर समझना उचित नहीं।

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अखंड भारत के पक्षधर
उनकी वाणी में अखंड भारत का रूप साकार हो रहा था। वे भारत के बंटवारे के पक्षधर नहीं थे। जब देश में हिंदू-मुस्लिम एकता में दरार पड़ने लगी थी और मुस्लिम लीग द्वारा एक पाकिस्तान नामक एक अलग देश की मांग की जा रही थी, तब गांधीजी ने घोषणा की थी-“पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा।” एक तरफ गांधीजी ऐसी घोषणा कर रहे थे और दूसरी ओर मुसलमानों को संतुष्ट करने में लगे हुए थे। ऐसी परिस्थिति को देखकर सावरकर ने कहा था- “पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा की घोषणा करने वाले नेता एक दिन मुसलमानों को प्रसन्न करने के लिए पाकिस्तान की योजना को स्वीकार कर लेंगे। अंत: हिंदुओं को इनके आश्वासनों में नहीं फंसना चाहिए।” सावरकर की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई थी और सन् 1944 में राजाजी ने गांधीजे को कुछ शर्तों के साथ भारत-विभाजन के समर्थन के लिए तैयार कर लिया था। खंडित आजादी से दुखी 15 अगस्त 1947 को जब भारतवर्ष आजाद हुआ था तो यह आजादी अखंड आजादी न होकर विभाजित आजादी थी, जिसमें भारत और पाकिस्तान दो अलग राष्ट्र बन गए थे। अखंड भारत को खंडित होते देख सावरकर का मन चीत्कार कर उठा था। उन्होंने आंखों में अश्रु बहाते हुए कहा था- “यह भयंकर दुष्परिणाम कांग्रेस की कायर व तुष्टीकरण की आत्मघाती नीति का ही कुफल है। यदि हिंदू कांग्रेस के अहिंसा और हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई के भ्रामक नारों में न फंसते तो भारत अखंड रूप में ही स्वाधीन होता। मातृभूमि के खंड-खंड करने की मांग रखने वालों के षडयंत्र को ही खंड-खंड कर दिया जाता।”

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सावरकर के शब्द साबित हुए सत्य
भारत विभाजन का मुखर विरोध करते हुए उन्होंने कहा था- “देश को खंड-खंड करने वालों को मैं चेतावनी देता हूं कि देश के बंटवारे से यह समस्या सुलझने के स्थान पर और भी अधिक उलझ जाएगी। पाकिस्तान की स्थापना होते ही समस्या और भी तीव्र रूप धारण कर लेगी।” आज देश की परिस्थिति हमारे सामने है। चाहे आतंकी हमले हो या कश्मीर की समस्या या कोई अन्य, सावरकर के शब्द अक्षरश: सत्य साबित हुए हैं।

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हिंदुत्व और राष्ट्रीयता मिशन
हिंदुत्व और राष्ट्रीयता सावरकर के मिशन के स्रोत थे। मातृभूमि के प्रति उनके विचारों में पराधीनता से मुक्ति का महत् संदेश निहित है। एक तरफ वे हिंदू धर्म की बात करते थे दूसरी ओर वे हिंदू धर्म में व्याप्त अस्पृश्यता को अभिशाप मानते थे। उनका मानना था कि अस्पृश्यता ही हिंदू समाज की एकता का बाधक तत्व है। उनका कहना था- जब हम कुत्ते-बिल्लियों को अपने घर में प्रवेश देते हैं, उन्हें स्पर्श करते हैं किंतु किसी स्वच्छताकर्मी के प्रवेश से अस्पृश्य हो जाते हैं। यह दोहरा चरित्र है, धर्मांतरित व्यक्ति हमारे समाज में सम्मान का पात्र हो जाता है किंतु धर्मांतरण के पूर्व उसकी जाती के विषय में नहीं पूछते”। ईसाई और मुस्लिम धर्मांतरित व्यक्ति को पुन: हिंदू धर्म में प्रवेश अर्थात शुद्धीकरण के कार्य को हिंदू जाति के हित में मानते थे। उन्होंने स्वयं ऐसे व्यक्तियों को हर संभव सहायता प्रदान की थी। इस प्रकार के व्यक्तित्व विरले ही देखने को मिलते हैं। सावरकर अखंड भारत में विश्वास रखते थे।

असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी
महात्मा गांधी राजकीय महाविद्यालय,
मायाबंदर
मध्योत्तर अंडमान
मोबाइल: 9434277892
Email:[email protected]

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