प्रभुनाथ शुक्ल
Swatantryaveer Savarkar Jayanti Special: भारतीय स्वाधीनता संग्राम में वीर सावरकर जैसा व्यक्तित्व होना मुश्किल है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान उन्होंने हिंदुत्व की विचारधारा को पल्लवित और पोषित किया। देश के वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक माहौल में सावरकर के विचारों की प्रासंगिकता बेहद अहम हो गई है। लेकिन सावरकर का त्याग और बलिदान भारतीय राजनीति की विचारधारा में विभाजित हो गया है। यह हर भारतीय के लिए चिंता और विमर्श का सवाल है। देश की राजनीति में सावरकर की विचारधारा के मायने चाहे जो हों, लेकिन सावरकर होना कोई साधारण बात नहीं। सावरकर ने जिस विचारधारा को 125 साल पूर्व आगे बढ़ाया था, आज हिंदुत्व के लिए उस विचारधारा की कितनी अहमियत है, यह देश खुद समझ सकता है। भारत और पश्चिम में हिंदुत्व के उभार को लेकर किस तरह का उग्र विश्लेषण होता है, यह सर्व विदित है।
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सावरकर के हिंदुत्व की ओर देश
देश की राजनीति में आज हम जिस हिंदुत्व का निवेश कर आगे बढ़ रहे हैं, वह एक नए रूप में परिभाषित हो रहा है। इसकी आवश्यकता सावरकर ने बहुत पहले ही बता दी थी। हालांकि सावरकर की इस विचारधारा पर दक्षिण और वामपंथ में काफी टकराहट है। दक्षिणपंथ जहां इसे अपनी विरासत मानकर इस पर गर्व करता है, वहीं सेकुलरवादी और वामपंथी विचारधारा के लोग इसे अलगाववाद की नीति कहते हैं। सावरकर ने रत्नागिरी जेल में रहते हुए हिंदुत्व नाम से एक किताब लिखी थी। वैसे यह किताब उनके उपनाम यानी बदले नाम से प्रकाशित हुई। जिस बात पर हम इतने सालों बाद विचार कर रहे हैं, उसे सावरकर बहुत पहले समझ गए थे। सावरकर को राजनीतिक विचारधारा में बांटना उचित नहीं होगा। पूरी दुनिया में इस्लामी गतिविधियां जहां तेजी से बढ़ रही हैं, वहीं भारत में हिंदुत्व के उभरते नए क्षितिज एक अच्छा संकेत हैं। लेकिन राजनीतिक विमर्श सावरकर को लेकर कई बड़े सवाल पैदा करता है।
हिंदुत्व जीवन पद्धति और सभ्यता
वीर सावरकर हिंदुत्व को राजनीति से जोड़कर नहीं देखते थे। वह हिंदुत्व को धर्म से अलग रखना चाहते थे। ऐसे लोगों का मानना है कि सावरकर का हिंदुत्व धर्म से न होकर राजनीतिक विचारधारा से जुड़ा था। सावरकर अपने हिंदुत्व की विचारधारा में पश्चिम के सांस्कृतिक निवेश का घोर विरोध करते थे। उनके विचार में हिंदुत्व एक जीवन पद्धति और सभ्यता है। सिंधु घाटी सभ्यता से आने वाले लोग ही हिंदुत्व की पृष्ठभूमि से आते हैं। वे इस पवित्र भूमि से जुड़ने वाले लोगों को ही हिंदुत्व का पोषक मानते थे। जिनकी पुण्यभूमि भारत नहीं है, उन्हे वे हिंदू नहीं मानते थे।
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आधुनिक विचारधारा के पोषक
सावरकर की विचारधारा पर अध्ययन से पता चलता है कि वह इंग्लैंड में पढ़े होने के नाते आधुनिक विचारधारा के पोषक रहे। हालांकि स्वाधीन आंदोलन में अपने को बलिदान करने वाले मुस्लिम क्रांतिकरियों का बहुत सम्मान करते थे। लेकिन सेल्यूलर जेल में जाने के बाद मुसलमानों पर उनकी विचारधारा बदल गई। यह अंग्रेजों की फुट डालो राजनीति करो की नीति से हुआ। अंग्रेजी हुकूमत ने वीर सावरकर को बहुत प्रताड़ित किया। क्योंकि इस जेल में अधिकांश कैदी हिंदू थे लेकिन उन पर निगरानी करने वाले सिंधी बलोची और पठान थे। जेल में इन्हीं निगरानी ओहदेदारों की आड़ में अंग्रेज हिन्दू और मुसलमान में फूट डालना चाहते थे। इनकी प्रताड़ना की वजह से जेल में सावरकर के विचार बदल गए। इसका नतीजा यह हुआ कि सेल्यूलर जेल में धर्म के आधार पर कैदियों को प्रताड़ित किया जाने लगा।
सेल्युलर जेल में हिंदुओं का उत्पीड़न
जेल में हिंदू कैदियों का सबसे अधिक उत्पीड़न किया गया। लोगों तो इतनी अधिक प्रताड़ना दी गई कि लोगों को धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर कर दिया गया। इसके खिलाफ वीर सावरकर ने आवाज उठाई। फिर सावरकर को वहां से रत्नागिरी जेल में भेज दिया गया। लेकिन वहां भी सेल्यूलर जेल जैसी परिस्थितियों पैदा की गई। इस नीति के पीछे अंग्रेजों की साजिश थी। अंग्रेज मुस्लिम निगरानी ओहदेदारों की तरफ से हिंदू कैदियों को प्रताड़ित करवाते थे। जिसकी वजह से हिंदुओं में मुसलमानों के प्रति घोर नफरत पैदा हुई और अंग्रेज अपने चाल में सफल हुए। जेल यात्रा से ही सावरकर के विचार में उग्र हिंदुत्व की बात आई और राजनीति में उन्होंने खुलकर हिंदुत्व विचारधारा की वकालत की।
हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र का समर्थन
सावरकर की विचारधारा को इस्लामी धार्मिक आंदोलन ने भी बड़ा मोड़ दिया। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में तमाम मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं की तरफ से मुद्दे उठाए जाने लगे। मुसलमानों में धार्मिक कट्टरता बढ़ने की वजह से सावरकर को इन गतिविधियों ने बहुत गहराई से प्रभावित किया। इसका नतीजा रहा कि उन्होंने हिंदुत्व की विचारधारा का खुलकर समर्थन किया। फिर देश की राजनीति में मुसलमानों का हस्तक्षेप बढ़ाने लगा। जिसने वीर सावरकर को काफी हद तक प्रभावित किया। सावरकर हिंदुत्व की विचारधारा की एक पहचान हैं। उनका मानना था कि भारत के लिए हिंदुत्व एक व्यापक शब्द है। साल 1937 में रत्नागिरी जेल से रिहाई के बाद उन्होंने हिंदुत्व की बड़ी वकालत की और राजनीति एवं सामाजिकता के लिए हिंदुत्व को बेहद जरूरी बताया। उन्होंने भारत को हिंदूराष्ट्र के रूप में स्थापित करने की विचारधारा का पूर्ण समर्थन किया। वे कई बार अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे।
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भारत के गौरव
सावरकर भारत के गौरव हैं। वे हिंदुओं के गर्व हैं। सावरकर होना आसान काम नहीं है। हम हिंदुत्व के प्रणेता को उनके जन्म दिवस पर नमन करते हुए विनम्र आदरांजलि अर्पित करते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनकी विचारधारा पर चलकर भारत शक्तिशाली राष्ट्र बनेगा।
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक )