कई लोग अपना काम कर्तव्य समझकर करते हैं। मानवता को अपना धर्म और कर्म को अपनी ताकत समझने वाले ऐसे लोगों को देखकर एक उम्मीद जगती है। दुनिया खूबसूरत लगती है। मानवता के मर्म को समझने वाले ऐसे लोगों में बड़े अधिकारी से लेकर आम नागरिक तक हो सकते हैं। उनके बारे में पढ़कर- जानकर उन्हें नमन करने का दिल चाहता है। ऐसे ही कुछ दिल वालों, जो दिल को छू लें, के किस्से यहां प्रस्तुत हैः
आदिवासी बच्चों और गर्भवती महिलाओं की मदद का जुनून
27 वर्षीय रेलु महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले की रहनेवाली है। वह नंदूरबार जिले के चिमलखाड़ी में आंगनवाड़ी चलाती हैं। कोरोना में लॉकडाउन की वजह से मार्च 2020 के बाद आदिवासी बच्चों और गर्भवती महिलाओं ने उनकी आंगनवाड़ी में आना बंद कर दिया। उसके बाद रेलु ने खुद उन्हें मदद करने की ठानी। तब से वह हर रोज खुद नर्मदा नदी मे नाव चलाकर और 18 किलोमीटर तक का सफर तय कर आदिवासी बच्चों और गर्भवती महिलओं को पौष्टिक आहार तथा दवा पहुंचा रही हैं। रेलु का यह 18 किमी का सफर काफी मुश्किल भरा है। उनके गांव में सड़क नहीं है। बसों तक पहुंचने के लिए गांव के लोगों को नाव से 18 किमी का सफर तय करना पड़ता है। रेलु स्थानीय मछुआरे से नाव उधार लेती हैं। वे इस नाव से हैमलेट्स, अलीगाट और दादर तक की यात्रा करती हैं तथा नवजात तथा कुपोषित बच्चों व गर्भवति महिलाओं को पौष्टिक आहार के साथ ही दवा भी वितरित करती हैं। उनके हौसले में इतनी ताकत है कि जुलाई 2020 में जब नर्मदा नदी उफान पर थी तो भी उन्होंने यहां से जाना बंद नहीं किया और अपना काम कर्तव्य समझकर किया।
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भिखारी समझ मदद के लिए गए डीएसपी साहब………
बात ग्वालियर की है। 9 अक्टूबर की रात के करीब डेढ़ बजे थे। डीएसपी रत्नेश तोमर उपचुनाव के मतों की गणना को लेकर ड्यूटी पर थे। तभी उन्होंने सड़क के किनारे ठंड से ठिठुर रहे और कचरे से खाना ढूंढ़ रहे एक एक भिखारी को देखा। वे खुद को रोक नहीं पाए। उन्होंने उसे जूते,अपनी जैकेट देने के साथ खाना भी खिलाया। जब वे वापस लौटने लगे तो भिखारी ने उन्हें नाम लेकर पुकारा। वे चौंक गए और पास जाकर देखा तो वे दंग रह गए। वह उनका बैचमेट सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा था। वह 10 साल से सड़कों पर लावारिस घूम रहा था। फिलहाल मनीष मिश्रा के बारे में जानकारी मिली है कि उनका दिमागी संतुलन बिगड़ गया है। इसलिए वे अब लावारिस बनकर सड़कों पर जिदगी गुजार रहे हैं। डीएसपी रत्नेश तोमर ने मनीष मिश्रा से काफी देर तक बात की। मनीष 1999 में सब इंस्पेक्टर बने थे।
मनीष मिश्रा थे एक नंबर के निशानेबाज
ग्वालियर के झांसी रोड इलाके में रहनेवाले मनीष मिश्रा के बारे में डीएसपी साहब बताते हैं, ‘उसका निशाना अचूक था। वह अच्छे परिवार से है लेकिन उसका दिमागी संतुलन बिगड़ जाने के बाद वह इस तरह कि जिंदगी गुजार रहा है। पत्नी से तलाक हो चुका है।’ डीएसपी साहब ने फिलहाल उनके ग्वालियर के सामाजिक आश्रम में रहने के साथ ही इलाज का भी प्रबंध कर दिया है।
मिर्जापुर के एसपी की दरियादिली
बात उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर की है। गुंडई, बदमाशी और अन्य तरह के गंभीर अपराधों के लिए कुख्यात इस जिले की पुलिस भी अपनी सख्ती के लिए जानी जाती है। लेकिन यहीं के एसपी की दरियादिली देखकर जी उन्हें सलाम करने को चाहता है। दिवाली से पहले 13 अक्टूबर को एसपी संजय वर्मा अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ पेट्रोलिंग पर निकले। तभी उनकी नजर सड़क किनारे दीया बेच रही वद्ध महिला पर पड़ी। वह मासूम बच्चों के साथ रात 10 बजने के बावजूद इस उम्मीद में बैठी थी कि उसके दीये बिक जाएंगे। लेकिन कोई खरीददार नजर नहीं आ रहा था।
पुलिस अधीक्षक( एसपी) संजय वर्मा उस महिला के पास गए। महिला ने बताया कि वह सुबह से बैठी है लेकिन दीए नहीं बिक रहे हैं। यह सुनकर उनका दिल भर आया। उन्होंने महिला से सारे दीए खरीद लिए और राह चलते लोगों में बांट दिया। साथ ही कुछ दीए अपने घर भी ले गए। एसपी साहब की इस दरियादिली की हर तरफ चर्चा है।
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