सर्वोच्च न्यायालय ने अंग्रेजों के शासन काल के राजद्रोह संबंधी दंडात्मक कानून के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई। राजद्रोह कानून को औपनिवेशिक काल की देन बताते हुए न्यायालय ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि आखिर इस कानून को हटाया क्यों नहीं जाता? सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह कानून देश में स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने बनाया था।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र को इस कानून को लेकर नोटिस जारी किया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए यानी देशद्रोह की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एक पूर्व मैनेजर जनरल की याचिकाओं पर विचार करने के लिए सहमति जताते हुए बेंच ने कहा कि इसमें मुख्य चिंता कानून के दुरुपयोग को लेकर है। इस पीठ में जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और हृषिकेश रॉय भी शामिल थे।
कहां लागू होता है यह कानून?
यह गैर-जमानती प्रावधान किसी भाषण या अभिव्यक्ति पर लागू होता है, जो देश के संविधान के अनुसार स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना या उकसावा या असंतोष को बढ़ावा देने का काम करता है। यह एक आपराधिक कानून है, जिसमें अधिकतम आजीवान कारावास की सजा हो सकती है।
Sedition law was meant to suppress freedom movement, used by Britishers to silence Mahatma Gandhi, others: SC
— Press Trust of India (@PTI_News) July 15, 2021
इस कानून को बनाए रखने का क्या औचित्य है?
अटार्नी जनरल से न्यायालय ने कहा कि हमें कुछ प्रश्नों के जवाब चाहिए। यह औपनिवेशिक युग का कानून है और इसका इस्तेमाल अंग्रेज स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए करते थे। इसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने गांधी, गोखले और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को चुप कराने के लिए किया था। आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून को बनाए रखने का क्या औचित्य है?
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जांच एजेंसियां करती हैं दुरुपयोग
पीठ ने इसे पिछले 75 सालों से कानून की पुस्तकों में शामिल रखने पर हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि हमें नहीं पता कि सरकार इसे हटाने के बारे में क्यों निर्णय नहीं ले रही है ? हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया हम किसी राज्य सरकार को इसके लिए दोषी नहीं ठहरा रहे हैं, लेकिन जांच एजेंसियां इस कानून का दुरुपयोग करती हैं और इसके लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।