चुनाव आयोग को सर्वोच्च सलाह! पूरा मामला जानने के लिए पढ़ें ये खबर

मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा की गई सख्त टिप्पणी के मामले में चुनाव आयोग को सर्वोच्च सलाह दी गई है। सर्वाच्च न्यायालय ने कहा है कि हम मीडिया को न्यायालय में चलनेवाली बहस और टिप्पण की रिपोर्ट करने से रोक नहीं सकते।

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कोविड संक्रमण के दौरान चुनाव प्रचार के समय दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के मामले में पिछले दिनों मद्रास उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को फटकार लगाते हुए खरीखोटी सुनाई थी। इसके खिलाफ चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इस पर सर्वोच्च न्यायालय में 3 मई को सुनवाई हुई।

इस दौरान आयोग ने कहा कि न्यायालय में किस तरह की बहस होती है, इसको मीडिया को रिपोर्ट नहीं करनी चाहिए और केवल न्यायालय की टिप्पणी के आधार पर कोई केस नहीं दर्ज होना चाहिए।

‘हम मीडिया को रिपोर्ट करने से नहीं रोक सकते’
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले को सुना। जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम मीडिया को रिपोर्ट करने से नहीं रोक सकते। न्यायालय का आदेश जितना महत्वपूर्ण है, बहस भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने कहा कि न्यायालय में बहस, बेंच और बार के बीच चर्चा होती है। मीडिया इस प्रक्रिया पर नजर रखता है।

याचिका खारिज
न्यायालय ने सख्त टिप्पणियों का साथ ही चुनाव आयोग की याचिका को खारिज कर दिया। इसके साथ ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम उच्च न्यायालय का मनोबल नीचा नहीं करना चाहते, वे लोकतंत्र के महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

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टिप्पणी पर सलाह
चुनाव आयोग ने न्यायालय से कहा कि अगर एक संवैधानिक संस्था पर हत्या का चार्ज लगाया जाएगा तो कैसे सही होगा। इस पर न्यायालय ने कहा कि हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि उच्च न्यायालय के जज या चीफ जस्टिस अपनी बात रख सकें। साथ ही न्यायालय की हर बहस को मीडिया रिपोर्ट कर सके।

अदालती रिव्यू संभव
न्यायालय ने कहा कि यह मानना कि चुनाव आयोग पर अदालती रिव्यू नहीं हो सकता, गलत होगा। साथ ही न्यायालय किसी भी जज पर रोक नहीं लगा सकता कि वो क्या कहेगा।

‘इतिहास केवल लिखे हुए फैसले को याद रखता है’
न्यायालय में आयोग ने कहा कि रैली में सभी लोग मास्क पहनकर आएं ये काम कैसे तय करें। चुनाव आयोग ने कहा कि मद्रास उच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद आयोग की छवि खराब हुई है, इस पर न्यायालय ने कहा कि इतिहास केवल लिखे हुए फैसले को याद रखता है, न्यायालय किसी भी संस्था को कमजोर नहीं करना चाहता।

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