इस तरह मनाया गया हिन्दू साम्राज्य दिवस!

आज से 348 वर्ष पूर्व एक ऐसा राज्याभिषेक हुआ, जिससे उस समय की सारी परिस्थितियां बदल गईं।

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हिन्दू साम्राज्य दिवस पर रविवार, 12 जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मेरठ महानगर में 120 स्थानों पर छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक कार्यक्रम आयोजित हुए। इस दौरान पांच हजार स्वयंसेवकों ने कार्यक्रमों में भाग लिया।

संघ के छह उत्सवों में से एक प्रमुख उत्सव हिन्दू साम्राज्य दिवस 12 जून को धूमधाम से मनाया गया। मेरठ महानगर में 120 स्थानों पर हुए कार्यक्रमों में अनेक स्थानों पर महिलाएं और बच्चे भी उपस्थित रहे। सभी स्थानों पर छत्रपति शिवाजी के चित्र लगाकर उनका माल्यार्पण किया गया तथा शिवाजी के जीवन चरित्र के विषय में बताया गया।

शिवाजी मार्ग स्थित शंकर आश्रम पर हिन्दू साम्राज्य दिवस कार्यक्रम में संघ के मेरठ विभाग के सम्पर्क प्रमुख अरुण जिन्दल ने कहा कि आज से 348 वर्ष पूर्व एक ऐसा राज्याभिषेक हुआ, जिससे उस समय की सारी परिस्थितियां बदल गईं। जिन परिस्थितियों का समर्थ गुरु रामदास ने वर्णन करते हुए कहा था ‘कोई पीर की पूजा करता है, कोई कब्र को पूजता है, तो कोई भिन्न-भिन्न प्रकार से मोहर्रम मनाता है।

इस प्रकार हमारे समाज के लोगों ने अपने धर्म का स्वाभिमान छोड़ दिया हैं। अपने देवताओं को भुला दिया है और वह पराये लोगों का अनुकरण करने में स्वयं को धन्य मान रहा है। हे भगवान! भीषणता की अब परिसीमा हो गयी है। सारे तीर्थ भ्रष्ट हो गये हैं। भजन, पूजन करना असम्भव हो गया है। न हमारा कोई राजा है न हमारा कोई प्राता। अधर्म का साम्राज्य सर्वत्र फैल गया है। अतः हे प्रभो। अब आओ और हमारे धर्म की रक्षा करो।’ बड़े-बड़े विद्वान शूरवीरों के दिमाग में यह विचार भी नहीं आता था कि इस परिस्थिति को बदला जा सकता है। राज्य करना तो मुसलमानों का ही काम है। हिन्दू राजा बन ही नहीं सकता और चाहे कुछ भी बने मंत्री, सेनापति कुछ भी ऊंची नौकरी कर सकता है। 348 वर्ष पूर्व छत्रपति शिवाजी ने हिन्दू पद पादशाही की स्थापना कर इस भावना को जड़मूल से नष्ट कर दिया।

उन्होंने कहा कि 19 फरवरी 1630 में बीजापुर राज्य के जागीरदार शाहजी भोंसले के घर में जन्मा बालक ही बाद में शिवाजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वीर माता जीजाबाई ने बचपन से उन्हें पुराणों की महान गाथाओं से प्रोत्साहित किया। दादाजी कोंडदेव जैसे परमनीतिज्ञ एवं शूरमा के संरक्षण में उन्होंने शस्त्र शिक्षा प्राप्त की। समर्थ स्वामी रामदास जैसे महापुरुष द्वारा राष्ट्रधर्म की शिक्षा प्रदान की गई। जन्म से ही शिवाजी ‘मावली’ बालकों के साथ उनकी सेना की टुकड़ियां बनाकर युद्ध के खेल खेलते थे। युवा होते-होते उन्होंने अपने बचपन के मावली शूरों का नेतृत्व सम्भाला और धर्म, राष्ट्र एवं संस्कृति के परित्राण के लिए भवानी (शिवाजी की तलवार) की शरण ली। शिवाजी ने बीजापुर के दुर्गों पर आक्रमण करके अधिकार करना प्रारम्भ किया। शिवाजी ने अपने जीवन काल में छोटे-बड़े 276 युद्ध लड़े और लगभग सभी में विजय प्राप्त की। इसी कारण शिवाजी को विश्व के महान सेनापतियों की पंक्ति में स्थान प्राप्त हुआ। हिन्दू समाज आजीवन उनका ऋणी रहेगा। महानगर में हुए विभिन्न कार्यक्रमों में विभाग कार्यवाह अशोक, विभाग शारीरिक प्रमुख मनोज, महानगर कार्यवाह अवनीश पाठक, महानगर सहकार्यवाह मनीश आदि उपस्थित रहे।

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