Veer Savarkar: यदि हिंदू समाज(hindu society) जाग जाए तो हमारा राष्ट्र सर्वोत्तम राष्ट्र(our nation the best nation) बन जाएगा। इस देश को हिन्दू ही सर्वश्रेष्ठ(Hindu is best) बना सकते हैं। हम किसी दूसरे धर्म की मदद नहीं चाहते। यदि वे आना चाहें तो आ सकते हैं; वीर सावरकर कहते थे कि भारतीय राजनीति में हिंदू महत्वपूर्ण Hindus are important in Indian politics)हैं और केवल वे ही परिवर्तन ला सकते हैं। जिस देश में 80 प्रतिशत समाज हिंदू(80 percent society is Hindu) है, वहां मुसलमान कहते हैं कि यह देश हमारा है, जबकि सावरकर ने घोषणा की थी कि यह हिंदू राष्ट्र (Hindu nation)है। गिरीश दाबके ने कहा, इसीलिए हम सावरकर को हिंदू हृदय सम्राट कहते हैं।
26 फरवरी, 2024 को दादर के पाटील मारुति मंदिर हॉल में सावरकर भक्तों की एक सभा आयोजित की गई थी। यह सभा स्वतंत्रता सेनानी सावरकर के आत्मार्पण दिवस पर ‘हिंदू महासभा परेल’ और ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक’ के संयुक्त कार्यक्रम के तहत आयोजित की गई थी। उस सभा में दबके बात कर रहे थे। इस मौके पर अध्यक्ष दिनेश भोगले, मुख्य अतिथि अनुप केनी भी मंच पर मौजूद थे।
सावरकर ने नहीं कहा था- ‘गैर-हिन्दुओं को बाहर निकालो’
इस अवसर पर बोलते हुए गिरीश दाबके ने वीर सावरकर के हिंदुत्व के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मैंने आज तक कई जगहों पर सावरकर की जीवनी पर व्याख्यान दिया है। उन अनुभवों से पता चला कि सावरकर के बारे में कई जगहों पर कई भ्रांतियां हैं। गांधी हत्या मामले में सावरकर की सबसे अधिक बदनामी हुई। कई अन्य आपत्तियां बी मुझे सुनने को मिलीं।
एक ने कहा था, “सावरकर सभी मुसलमानों को बाहर निकालने के लिए निकले हैं।” मैंने कहा, “आपको यह किसने कहा? सावरकर मुसलमानों को बाहर नहीं निकालने वाले हैं। उन्होंने केवल इतना कहा है, ‘उन्हें इस देश के रीति-रिवाजों के अनुसार यहां रहना चाहिए।’ आपके पूर्वज भी हिंदू थे। सावरकर ने तो यही कहा है कि आप आंखों से पट्टी हटा दीजिए। सावरकर ने अपने किसी भी साहित्य में कभी नहीं कहा कि ‘गैर-हिन्दुओं को बाहर निकालो’। उन्होंने यह भी नहीं कहा कि ‘गैर-हिन्दुओं को मतदान का अधिकार नहीं होना चाहिए।’ ऐसा बाला साहेब ठाकरे ने कहा है।
पतित पावन मंदिर एक अद्भुत चमत्कार
सावरकर ने देवताओं और मंदिरों के संदर्भ में वह चमत्कार किया, जो भारत के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। 1932 में रत्नागिरी एक गांव था। उसी समय उन्होंने वहां पतित पावन मंदिर की स्थापना की। सावरकर का क्रांतिकारी महत्व था; लेकिन पतित पावन मंदिर भी उनके जीवन में किसी अद्भुत चमत्कार से कम नहीं था। पिछले 1000 साल में भारत में ऐसा चमत्कार नहीं हुआ। जो अन्य लोग नहीं सुझाते, वह सावरकर सुझाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि जब शेर चलता है तो उसकी नजर एक तरफ होती है और वह दूसरी तरफ चल रहा होता है। सावरकर भी ऐसे ही थे। एक दहाड़ता था और दूसरा चलता था। जब विचार के साथ आचरण आता है तो उसका प्रचार स्वतः ही हो जाता है। सावरकर की इस पतित पावन पवित्र मन्दिर की प्रथा एवं प्रचार-प्रसार अद्भुत थे।
वे हिंदू धर्म के प्रचारक थे
सावरकर कहते थे कि मेरे जीवन पर केवल एक वाक्य लिखना, ‘यह आदमी हिंदू धर्म प्रचारक है’, और कुछ मत लिखना। बस यही एक वाक्य मेरे जीवन का आधार बनेगा। सावरकर का हिंदू धर्म पर एक सुंदर वाक्य है कि कश्मीर से लेकर रामेश्वर तक का यह विशाल भूभाग जिनकी मातृभूमि और पुण्य भूमि के रूप में जाना जाता है, ऐसा समाज ही हिंदू समाज है।
सावरकर ने कहा कि इस देश में हर व्यक्ति को वोट देने का अधिकार है। चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। प्रत्येक भारतीय को वोट देने का अधिकार है। वोट देने का अधिकार सभी को मिले यह विचार सावरकर का ही है।
सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा सावरकर ने कहा था
1923 में, वे रत्नागिरी के जेल गए और कहा कि उन्होंने वहां आत्महत्या करने के बारे में दो बार सोचा। उनकी किताब का नाम हिंदुत्व है। इस शब्द का प्रयोग तब तक केवल सावरकर ही करते थे। उनके अलावा किसी ने इसका इस्तेमाल नहीं किया। आज अगर हम भारत के मानचित्र को देखें, भारत के मामलों पर नजर डालें तो सावरकर ने जो कहा था, सब कुछ वैसा ही हुआ है। नागरिक कानून, तीन तलाक विरोधी कानून, सेना भर्ती जैसी चीजें हो रही हैं।
सावरकर के विचार आज भी जीवित
ऐसे महान व्यक्ति के बारे में जितना भी कहा जाए कम है। हम उनके भक्त हैं और वे हमारे भगवान हैं। आज हम कह सकते हैं कि सावरकर चले गये; लेकिन सावरकर के हिंदुत्व विचार आज भी हमारे अंदर जीवित हैं।
आज हम सावरकर का आत्मार्पण दिवस मना रहे हैं; क्योंकि वे शक्तिशाली थे। जब भी कोई उपलब्धि हासिल होती है तो उसका जश्न मनाया जाता है। आने वाले समय में कुछ और उपलब्धियां हासिल होनी चाहिए। आज एक डॉलर की कीमत 80 रुपये है, अब 80 डॉलर की कीमत 1 रुपये होनी चाहिए। पाकिस्तान को भारत में शामिल किया जाना चाहिए। दाबके ने जोर देकर कहा कि केवल सावरकर के दर्शन में ही ऐसे कारनामे करने की शक्ति है।
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