प्लास्टिक कचरे का ‘नो टेंशन’, ऐसे होगा निपटारा

देश में हर साल लगभग 34 लाख टन प्लास्टिक का कचरा निकलता है। जिसका मात्र 30 प्रतिशत ही पुनर्नवीनीकरण किया जाता है।

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प्लास्टिक कचरे का अंबार शहर ही में नहीं, बल्कि गांव की नालियों और सड़कों के किनारे भी देखने को मिलता है। प्लास्टिक बोलतों के बड़े-बड़े अंबार देख कर लोगों के मन में सवाल उठता है कि इन प्लास्टिक की बोतलों का क्या होगा? लेकिन अब इन बोतलों को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं, क्योंकि इसके तहत ही देश में नई क्रांति आएगी? यह क्रांति देश को प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने के लिए होगी।

30 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे का होता है पुनर्नवीनीकरण
भारतीय विज्ञान संस्थान और प्रैक्सिस ग्लोबल अलायंस के सहयोग से तैयार की कई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हर साल लगभग 34 लाख टन प्लास्टिक का कचरा निकलता है। जिसका मात्र 30 प्रतिशत ही पुनर्नवीनीकरण किया जाता है। प्लास्टिक कचरे का कम मात्रा में रिसाइकिल करने से देश में कचरा लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, प्लास्टिक कचरे में कमी लाने के लिए केंद्र सरकार ने जुलाई, 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगा दी है। इसके बाद भी प्लास्टिक कचरे में कुछ खास कमी नहीं देखने को मिली। लेकिन अब इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने जिस तरह का कदम उठाया है, उससे अब प्लास्टिक कचरे से छुटकारा मिलना तय है।

प्रधानमंत्री ने खास जैकेट पहन दिया बड़ा संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आठ फरवरी को लोकसभा में एक खास जैकट पहनकर पहुंचे। यह जैकेट विदेश से नहीं आई और न ही किसी बड़े शो रूम से खरीदी गई, बल्कि यह जैकेट कचरे से बिनी गई प्लास्टिक की बोतलों से बनाई गई है। इस जैकेट ने सभी लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। यह जैकेट पीएम मोदी को इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने उपहार के रूप में दी थी। जिस समय इंडियन ऑयल कार्पोरेशन ने यह जैकेट पीएम मोदी को भेंट की थी, उसी समय उसने यह भी ऐलान किया था कि वह हर साल 10 करोड़ उपयोग की गई प्लास्टिक की बोतलों को रिसाइकिल करेगी। प्रधानमंत्री ने इस खास जैकेट के माध्यम से लोगों को संदेश दे दिया कि अब बेकार पड़ी प्लास्टिक की बोतलों की चिंता करने की जरूरत नहीं है, बल्कि इनसे अब कपड़े बनेंगे।

प्रदूषण से मिलेगी मुक्ति
प्लास्टिक गलती नहीं है। यह जिस स्थान पर पड़ी रहती है भले ही उसके ऊपर मिट्टी डाल दी जाए, लेकिन वह जमीन के नीचे कई साल तक पड़ी रहती है और वह जल्दी सड़ती नहीं है। जबकि लकड़ी कुछ समय बाद सड़ जाते हैं। प्लास्टिक का न सड़ना ही पर्यावरण के लिए ज्यादा खतरनाक है। यह जिस स्थान पर पड़ी रहती है, वहां किसी भी प्रकार का बीज अंकुरित नहीं होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में औसतन 67 प्रतिशत ग्रामीण नियमित रूप से प्लास्टिक कचरा जलाते हैं। प्लास्टिक कचरे से निकलने वाला धुआं भी बहुत खतरनाक होता है। इससे लोगों को श्वास की बीमारी के साथ ही अन्य कई घातक बीमारी होने का खतरा रहता है। हालांकि, अब उपयोग की गई प्लास्टिक की बोतलों से कपड़ा तैयार किए जाने से प्लास्टिक कचरे में कमी आएगी, साथ ही प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी।

उपयोग की गई बोतलों से ऐसे बनता है कपड़ा
इंडियन ऑयल की इस हरित पहल के तहत ही बेकार प्लास्टिक की बोतलों से कपड़ा बनाया जा रहा है। सबसे पहले उपयोग की गई प्लास्टिक की बोतलों को टुकड़ों में काट दिया जाता है। फिर उन्हें पिघला कर माइक्रो पेलेट्स बना दिया जाता है। इन माइक्रो पेलेट्स से ही कपड़ों की बुनाई के लिए धागा बनते हैं। ये कपड़े गुणवत्ता में वर्जिन पॉलिएस्टर से मेल खाते हैं। इस प्रकार के कपड़े बनाने में काफी कम संसाधन लगते हैं। इसके उत्पादन में लगभग 60 प्रतिशत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पानी का भी बहुत कम इस्तेमाल होता है, जबकि कॉटन की एक शर्ट बनाने में 2700 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। यदि ये कपड़े खराब भी हो गई तो इन्हें यांत्रिक रूप से पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है।

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