दिल्ली उच्च न्यायालय ने देश में समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड) लागू करने पर जोर दिया है। न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि देश में ऐसी समान नागरिक संहिता होनी चाहिए, जो सबके लिए मान्य होना हो।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरुरत बताते हुए केंद्र सरकार को इस दिशा में आगे बढ़ने की सलाह दी है।
न्यायालय ने यह कहाः
न्यायालय ने आधुनिक भारत के लिए समान नागरिक संहिता को जरुरी बताते हुए कहा कि आधुनिक भारत अब पुरानी मान्यताओं और प्रथाओं को तोड़ रहा है। ऐसे में देश को धर्म, समुदाय और पुरानी मान्यताओं से बाहर निलकलने के लिए समान नागरिक संहिता की जरुरत है। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह की पीठ ने इस बारे में केंद्र सरकार को निर्देशित करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 में यह उम्मीद व्यक्त की गई है कि देश अपने नागरिकों के लिए सामान्य नागरिक संहिता को सुरक्षित करेगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने दी थी यह सलाह
बता दें कि इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय भी समय-समय पर अपना फैसला सुनाते रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने 1985 में उचित कदम उठाने के लिए जॉर्डन डिएंगदेह के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि इसे कानून मंत्रालय के समक्ष रखा जाए, ताकि सही फैसला दिया जा सके। तब से 35 साल से ज्यादा समय बीच बीत चुका है, लेकिन इस संबंध में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है।
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क्या है अनुच्छेद 44
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का उल्लेख है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि भारत समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा। बता दें कि नीति निर्देशक तत्व में शामिल प्रावधानों के तहत संविधान भारत सरकार से यह अपेक्षा करता है कि वो जनहित व राष्ट्रहित में समान नागरिक संहिता लागू करे।
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धर्म के अनुसार है पर्सनल लॉ
वर्तमान में अलग-अलग समुदाय और धर्म के लिए अलग-अलग पर्सन लॉ हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ जहां चार शादियां करने की इजाजत देता है, वहीं हिंदू सहित अन्य धर्मों में एक ही शादी का नियम है। शादी की न्यूनतम उम्र क्या हो, इस पर भी अलग-अलग व्यवस्था है। मुस्लिम लड़कियां जब शारीरिक रुप से बालिग हो जाएं तो उन्हें निकाह करने के काबिल माना जाता है। अन्य धर्मों में शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है। जहां तक तलाक की बात है तो हिंदू,ईसाई और पारसी में कपल कोर्ट के माध्यम से तलाक ले सकते हैं, जबि मुस्लिम धर्म में तलाक शरीयत लॉ के हिसाब से होता है।