देश-दुनिया में समाज के सभी आयु वर्ग के लोगों का जीवन काफी संघर्षमय बनता जा रहा है। संतुष्टि की सीमा नहीं है, और जीवन में सकारात्मकता का प्रभाव कम हो रहा है, जिससे अवसाद बढ़ रहा है। परिणाम स्वरुप आत्महत्या के विचार बढ़ रहे हैं। चौंकाने वाली खबर यह है कि ऐसे लोगोंं में विद्यार्थियों की संख्या अधिक है।
एक साल में 11 हजार 396 बच्चों ने की आत्महत्या
पिछला साल कोरोना महामारी का था। इस कारण पूरी दुनिया लॉकडाउन से गुजर रही थी। इस कारण कई तरह के लेन-देन बंद थे, साथ ही स्कूल-कॉलेज बंद होने और बेरोजगारी बढ़ने जैसी अजीबोगरीब स्थिति थी। विद्यार्थी घर में सहमे बैठे थे। इससे उनकी मानसिकता प्रभावित हुई। डिप्रेशन में कई बच्चों ने आखिरकार अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला कर लिया। 2020 में 11 हजार 396 बच्चों ने अपनी जान दे दी। यह बात राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से स्पष्ट होती है।
क्या कहती है रिपोर्ट?
पिछले कुछ वर्षों में बच्चों की आत्महत्या की संख्या में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2020 में 11,396 बच्चों ने आत्महत्या की। यह 2019 से 18 प्रतिशत और 2018 से 21 प्रतिशत अधिक है। 2019 में देश में 9,613 बच्चों ने आत्महत्या की थी,जबकि 2018 में 9,413 बच्चों ने आत्महत्या की थी।
लड़कियों की संख्या अधिक
2020 में आत्महत्या करने वालों में 5,392 लड़के और 6,004 लड़कियां शामिल थीं। पिछले साल हर दिन 31 बच्चों ने आत्महत्या की। जब इन सभी आत्महत्याओं के कारणों को वर्गीकृत किया जाता है, तो पाया जाता है कि 4,006 आत्महत्याएं केवल पारिवारिक समस्याओं के कारण की गईं। 1,337 आत्महत्याएं प्रेम प्रसंग के कारण और 1,327 आत्महत्याएं बीमारी के कारण की गईं। इनमें सभी बच्चे 18 साल से कम उम्र के थे।
आखिर आत्महत्या के क्या थे कारण ?
कोरोना महामारी में स्कूलों के बंद होने से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा। दरअस्ल यह सुनिश्चित करना माता-पिता, परिवार, पड़ोसियों तथा सरकार की जिम्मेदारी थी कि बच्चे अधिक सकारात्मक बने रहें। सेव द चिल्ड्रन के उप निदेशक प्रभात कुमार ने कहा कि समाज को बच्चों को ऐसा परिवेश देना चाहिए, जहां बच्चे अपनी क्षमता को पहचान सकें और अपने सपनों को पूरा करने के लिए तैयार हो सकें। कोरोना के दौरान, स्कूल बंद होने, दोस्तों या शिक्षकों के साथ संपर्क न होने के कारण एक नकारात्मक वातावरण बन गया। इसके साथ ही घरों में तनावपूर्ण स्थिति, अपने प्रियजनों की मृत्यु, संक्रमण के डर और वित्तीय संकट ने भी उनका जीवन मुश्किल कर दिया। इस कारण कई बच्चे अत्यधिक तनाव में थे। कई लोग सोशल मीडिया के शिकार हो गए। वे घंटों तक गेम खेलने लगे। इन सबका असर बच्चों के दिमाग पर पड़ा।