3 दिसंबर 1984 की काली रात की भयावह यादें आज भी भोपाल के लोगों की आत्मा को कंपा देती है। ये वो रात थी, जब शहर के यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकलनेवाली गैस के कारण हजारों लोगों की जान चली गई थी। यूनियन कार्बाइड के संयंत्र में गैस रिसाव से लोगों का दम घुटने लगा था। इसमें हजारों लोगों की मौत के साथ डेढ़ लाख लोग दिव्यांग हो गए थे। रात तो गुजर गई थी,लेकिन उसने जख्मों का निशान इतना गहरा दिया था, कि वह आज तक नहीं भर पाया है। हादसे के 36 साल बाद भी शहर की तीसरी पीढ़ी उस त्रासदी के साइड एफेक्ट झेलने को मजबूर है।सचमुच ऐसे लोगों के लिए उस रात की कोई सुबह नहीं है।
ऐसे हुआ हादसा
3 दिसंबर को हुआ यह हादसा सबसे बड़ा ऐतिहासिक औद्योगिक हादसा था। यूनियन कार्बाइड कारखाने के 610 नंबर के टैंक में खतरनाक मिथाइल आइसोसाइनाइट रसायन था। टैंक में पानी पहुंच गया और टैंक के अंदर का तापमान 200 डिग्री तक बढ़ गया। इस कारण जोरदार धमाके के साथ टैंक का सेफ्टी वॉल्व उड़ गया। उसके बाद तेजी से गैस रिसाव शुरू हो गया। उस समय 42 टन जहरीली गैस का रिसाव हुआ। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस हादसे में 3,787 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 5 लाख 58 हजार 125 लोग प्रभावित हुए थे। इनमें से भी 4000 लोग स्थाई तौर पर दिव्यांग हो गए थे। इसके साथ ही 38,478 लोगों को सांस से जुड़ी परेशानियों से जूझना पड़ा था।
बचने का कोई उपाय नहीं दिख रहा था और लोग मर रहे थे
स्थानीय लोग उस भयावह हादसे को याद करते हुए बताते हैं कि हादसा होने के बाद चारों तरफ सिर्फ धुंध ही धुंध थी। इस कारण कुछ भी देख पाना संभव नहीं था। फंसे लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि वे अपनी जान बचाने के लिए कहां भागें। दम घुटने से लोग मर रहे थे। उस रात के हादसे में मरने के बाद भी कई महीनों तक उस जहरीली गैस से गंभीर रुप से प्रभावित लोगों की मौत का सिलसिला जारी रहा।
लापरवाही बनी हादसे की वजह
1981 और 84 के बीच इस यूनियन कार्रबाइड की फैक्टरी में कई बार गैस रिसाव हुआ था। इसमें एक वर्कर की मौत भी हो गई थी, जबकि कई मजदूर घायल हो गए थे। बताया जाता है कि इस संयंत्र में गैस रिसाव का कारण दोषपूर्ण सिस्टम होना था। 1980 के आसपास कीटनाशक की मांग काफी कम हो गई थी। इस वजह से कंपनी के सिस्टम के रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया जा रहा था। इसके साथ ही कंपनी ने एमआईसी का उत्पादन नहीं रोका था और उसका ढेर लगता गया। हादसे के पहले से ही प्लांट की हालत खराब थी। इसके साथ प्लांट में मौजूद टैंक ई 610 में एमआईसी 42 टन थी, जबकि नियम के अनुसार यह 40 टन से अधिक नहीं होना चाहिए था। साथ ही टैंक की सुरक्षा पर भी ध्यान नहीं दिया गया था।
सूख गए थे पेड़-पौधे
हादसे में मारे गए लोगों को सामूहिक रुप से अंतिम संस्कार किया गया था। करीब 2000 जानवरों के शवों को नदी में विसर्जित करना पड़ा था। आसपास के पेड़-पौधे सूख कर बंजर हो गए थे। संभाववना ट्रस्ट के शोध में कहा गया है कि भोपाल गैस पीड़ितों को बस्ती में रहनेवालों को दूसरे इलाके में रहनेवालों की तुलना में किडनी, गले ताथ फेफड़े का कैंसर 10 गुना ज्यादा है। इसके साथ ही पीड़ितों की बस्ती में टीबी तथा पारालाइसिस के शिकार लोगों की संख्या भी ज्यादा है।