NCERT किताबों में अकबर अब भी महान, हेमू अफगान सेनापति, दीन-ए-इलाही प्रेम और सहिष्णुता का धर्म और भी बहुत कुछ! पढ़िये

अकबर महान! से जुड़ा यह मामला तब है, जब देश में राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020(एनईपी) लागू है, जिसमें उन तमाम मुद्दों को हटा दिए जाने का दावा किया जा रहा है, जिन्‍हें अब तक विवादास्‍पद माना जाता रहा।

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NCERT: देश इस वक्‍त रानी दुर्गावती की 500वीं जयन्‍ती मना रहा है, जिसने अपने आप को वीरता के साथ मिटाना पसंद किया लेकिन अकबर के हरम में शामिल होना नहीं, जैसे कि ऐतिहासिक साक्ष्‍य हैं कि कैसे एक विधवा रानी दुर्गावती के गोंडवाना राज्‍य को अकबर हड़प लेना चाहता था बल्‍कि वह उसकी सुंदरता के किस्‍से सुनने के बाद उसे अपने हरम में शामिल करना चाहता था, जिसमें कि अकबर ने कई हिन्‍दू बेटी, बहुओं और पत्‍नियों तक को जबरन रखा हुआ था। वैसे अकबर पर सिर्फ यही आरोप नहीं है, इतिहास में उसके कई कारनामें दर्ज हैं, जिसमें मीना बाजार से लेकर, गाजी की उपाधि लेने के लिए हिन्‍दुओं के सिर कलम करके उनकी मीनार बना लेने और उन तमाम लोगों का सामूहिक नरसंहार कर देने के किस्‍से हैं, जो गैर मुस्‍लिम थे, लेकिन 21वीं सदी के भारत में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पुस्‍तकें अभी भी उसे महानता के शिखर पर बैठा रही हैं।

 अकबर महान और महाराणा प्रताप-रानी दुर्गावती कमजोर
दरअसल, अकबर महान! से जुड़ा यह मामला तब है, जब देश में राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020(एनईपी) लागू है, जिसमें उन तमाम मुद्दों को हटा दिए जाने का दावा किया जा रहा है, जिन्‍हें अब तक विवादास्‍पद माना जाता रहा। इतिहास में अकबर का शासन भी कई विवादों से जुड़ा है। ऐसे में एनसीईआरटी कक्षा चार की सामाजिक विज्ञान की पुस्‍तक में ‘Emperor Akbar’ नाम के पाठ के जरिए अबोध बच्‍चों के मन में भरा जा रहा है, ’अकबर भारत के सबसे महान शासकों में से एक है। उसने अफगान सेना के सेनापति हेमू, गोंड रानी दुर्गावती, हल्दीघाटी की लड़ाई में मेवाड़ के महाराणा प्रताप को हराया। राजपूतों के साथ सम्‍मान से पेश आया और उसने राजपूतों के साथ मिलकर शासन किया। अकबर सभी धर्मों के लोगों के साथ समान व्यवहार करता था। उसने महसूस किया कि सभी धर्म एक ही बात सिखाते हैं। अकबर ने दीन-ए-इलाही नामक एक धार्मिक मार्ग चलाया, यह प्रेम, शांति, सम्मान और सहिष्णुता पर आधारित था।’ इस सब के अलावा भी अकबर के गुणगान में इस पुस्‍तक में बहुत कुछ लिखा गया है। जबकि इतिहास का यह सच नहीं है।

हिन्‍दू सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्‍य, हेमू की वीरता पर चुप है पुस्‍तक, दे रही असत्य जानकारी
ऐतिहासिक प्रमाण कहते हैं, जिन हेमू को युद्ध में हराने और उसके अफगान सेनापति होने का पाठ्यपुस्‍तक में जो जिक्र किया गया है, वह अब तक के प्राप्‍त सभी ऐतिहासिक प्रमाणों से अलग है। सम्राट हेमू मुगलों से युद्ध करते वक्‍त कोई अफगान सेनापति नहीं था, बल्‍कि वह दिल्ली के सिंहासन पर बैठे अंतिम हिन्दू सम्राट थे। उन्होंने पानीपत की लड़ाई से पहले 22 युद्ध लड़े और सभी जीते। इसकी वजह से ही उन्हें कुछ इतिहासकारों ने मध्य युग का समुद्र गुप्त और नेपोलियन तक कहा। वे एक अच्छे योद्धा के साथ कुशल प्रशासक भी रहे। हेमचन्द्र का राज्याभिषेक भी भारतीय इतिहास की अद्वितीय घटना मानी जाती है। उन्‍हें वैदिक आचार्यों ने ‘शकारि’ विजेता की भांति “विक्रमादित्य’ की उपाधि दी। सम्राट बनते ही हेमचन्द्र ने पहली घोषणा गोहत्या पर प्रतिबंध लगा देने की रही, जिसमें क‍ि आज्ञा न मानने वाले के लिए मृत्‍यु दंड तक दिए जाने क आदेश था। इनकी दूसरी घोषणा भ्रष्टाचार कर्मचारियों को तुरन्त पद से हटाने की थी। एक अन्य घोषणा में सम्राट ने अपने राज्‍य में व्यापार-वाणिज्य में सुधारों की घोषणा की थी।

हेमू ने मुगल सेना की वो हाल किया था कि वे भाग जाना चाहते थे काबुल
हेमू ने कई बार मुगल सेनाओं को हराया था, जिसके बाद स्‍थ‍िति यहां तक आ पहुंची थी कि अनेक मुगल सेनानायकों ने हेमचन्द्र के विरुद्ध लड़ने से मना कर दिया था, वे बार-बार काबुल लौटने की बात करने लगे थे, लेकिन जब पानीपत के दूसरे युद्ध में 5 नवम्बर, 1556 ई. को पुनः हेमचन्द्र व मुगलों की सेनाओं में टकराव हुआ, तब हेमचन्द्र के दाईं और बाईं ओर की सेनाएं विजय के साथ आगे बढ़ रही थीं। केन्द्र में स्वयं सम्राट सेना का संचालन कर रहे थे। तभी एक तीर हेमू की आंख में लग गया और वह बेहोश हो गए और उसी बेहोशी का लाभ उठाकर अकबर का सेनापति उन्‍हें बीच युद्ध में से उठाकर अकबर के सामने ले गया, जहां बेहोश हेमू का सिर अकबर से अपनी तलवार से काट दिया था। उनका मुख काबुल भेजा गया तथा शेष धड़ दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया गया। उससे भी जब अकबर की तसल्ली न हुई तो उनके पुराने घर माछेरी पर आक्रमण कर भारी लूटमार की। उनके 80 वर्षीय पिता पूरनदास को धर्म परिवर्तन करके मुस्‍लिम बन जाने को कहा गया। न मानने पर उनका कत्ल तो किया ही साथ ही वहां उनके परिवार और आसपास के जितने भी हिन्‍दू थे अकबर ने उन सभी को इस्‍लाम नहीं स्‍वीकारने पर मरवा दिया था।

पानीपत की लड़ाई में एक दुर्घटना से हेमू की जीत हार में बदल गई थी
सम्राट हेमचन्द्र कुल 29 दिन तक दिल्ली पर शासक रहे, किंतु इतिहास इस बात की गवाही देता है कि ये सभी दिन हर किसी के लिए सुशासन पूर्ण रहे, जो निर्णय इस दौरान उन्‍होंने लिए वह हर शासन प्रशासन का संचालन करने वालों के लिए अध्‍ययन करने योग्‍य हैं, किंतु हेमू का कोई जिक्र एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्‍तकों में नहीं मिलता। यानी कक्षा चार की एनसीईआरटी की पुस्‍तक में हेमू के बारे में जो पढ़ाया जा रहा है, वह सत्‍य इतिहास नहीं है। वह पानीपत के दूसरे युद्ध के समय कोई अफगान सेनापति‍ नहीं थे। उनके बारे में किताब ‘राइज़ एंड फॉल ऑफ़ मुग़ल एम्पायर’ में इतिहासकार आर.पी त्रिपाठी लिखते हैं, ‘‘अकबर के हाथ हेमू की हार दुर्भाग्यपूर्ण थी, अगर भाग्य ने उनका साथ दिया होता तो उन्हें ये हार नसीब नहीं हुई होती।” इसी तरह का जिक्र इतिहासकार आरसी मजूमदार ने शेरशाह पर लिखी अपनी पुस्तक के एक अध्याय ‘हेमू-अ फॉरगॉटेन हीरो’ में किया है, उन्‍होंने लिखा ‘‘पानीपत की लड़ाई में एक दुर्घटना की वजह से हेमू की जीत हार में बदल गई, वरना उन्होंने दिल्ली में मुग़लों की जगह हिंदू राजवंश की नींव रखी होती।”

महाराणा प्रताप से 7 बार हारा था अकबर
अकबर को लेकर एनसीईआरटी यह भी जूठ फैला रही है कि उसने हल्दीघाटी की लड़ाई में मेवाड़ के महाराणा प्रताप को हराया। ऐसा लिखकर वह महाराणा प्रताप के शौर्य को अकबर के सामने कम करने का काम करती दिखती है, वह एक नैरेटिव गढ़ती है कि मुगल बहुत ताकतवर थे, जबकि हकीकत यह है कि राणा प्रताप को अकबर कभी नहीं जीत पाया, वह कभी नहीं पकड़े गए, बल्‍कि अपने अंत समय आने तक मुगलों द्वारा हड़पी गई उनके राज्‍य के अधिकांश क्षेत्रों को ही नहीं उससे ज्‍यादा वे पुन: पा चुके थे। अकबर चाह कर भी मेवाड़ के राजपूतों से नहीं जीत पाया था, जबकि उसने इसके लिए राजपूत को राजपूत से लड़ाने के लिए अपने खेमें में मान सिंह प्रथम को युद्ध करने भेजा था, जब वे पूरी तरह सफल नहीं रहे तो उन्‍हें अकबर ने कुछ समय तक अपने दरबार से निर्वासित तक किया था। महाराणा प्रताप ने अकबर को 07 बार हराया था, इन सभी युद्धों की जानकारी मौजूद है और हल्दीघाटी का युद्ध भी पूरी तरह से जीता नहीं था। फिर भी ये पुस्‍तक अकबर को महान और महाराणा प्रताप को उनसे हारने वाला बता रही है।

हल्दीघाटी युद्ध का हाल
हल्दी घाटी के युद्ध में एक घटना हुई थी। बदाउंनी लिखता है–‘‘हल्दी घाटी में जब युद्ध चल रहा था और अकबर से संलग्न राजपूत और राणा प्रताप के निमित्त राजपूत परस्पर युद्धरत थे और उनमें कौन किस ओर है, भेद कर पाना असम्भव हो रहा था, तब अकबर की ओर से युद्ध कर रहे बदाउंनी ने, अपने सेना नायक से पूछा कि वह किस पर गोली चलाये ताकि शत्रु को ही आघात हो और वह ही मरे , कमाण्डर आसफ खां ने उत्तर दिया था कि यह बहुत अधिक महत्व की बात नहीं कि गोली किस को लगती है क्योंकि सभी (दोनों ओर से) युद्ध करने वाले काफिर हैं, गोली जिसे भी लगेगी काफिर ही मरेगा, जिससे लाभ इसलाम को ही होगा।”

(मुन्तखान-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदाउंनी, खण्ड II,अकबर दी ग्रेट मुगल : वी. स्मिथ पुनः मुद्रित 1962,हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल, दी मुगल ऐम्पायर : सं. आर. सी. मजूमदार, खण्ड VII, पृष्ठ 132 तृतीय संस्करण, बी. वी. बी.)

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 हिन्‍दुओं से साैतेला व्यवहार
अकबर ने अक्टूबर 1567 में चित्तौड़ की घेराबंदी की थी और इसे हिन्‍दुओं के खिलाफ जिहाद घोषित करके संघर्ष को एक मजहबी रंग दिया था। मुगलों की भारी भरकम सेना को चार महीने से ज़्यादा समय तक यहां युद्धरत रहना पड़ा, जब किले पर कब्ज़ा कर लिया गया तो उसने इस चित्तौड़ की विजय को काफ़िरों पर इस्लाम की जीत के रूप में घोषित किया था। अकबर यहीं नहीं रुका, उसने किले पर कब्ज़ा करने के बाद चित्तौड़ की जनता का नरसंहार करने का आदेश दिया, तब 30,000 आम हिंदू नागरिकों का कत्लेआम किया गया था। वहीं बड़ी संख्या में महिलाओं और बच्चों को गुलाम बनाया गया। उसने अपने पिता बाबर से ऊंची हिन्‍दू नरमुंडों की मीनार बनाईं।

(फतहनामा-ई-चित्तौड़ : अकबर ॥नई दिल्ली, 1972 इतिहास कांग्रेस की कार्य विधि॥ अनु. टिप्पणी : इश्तिआक अहमद जिज्ली पृष्ठ 350-61)

अकबर अपने हरम में दरबारियों, राजाओं तक की लड़कियों तक को भी नहीं छोड़ता था
अकबर की जीवनी लिखनेवाला दरबारी मनसबदार अबुल फज़ल अकबरनामा में लिखता है- “जब भी कभी कोई रानी, दरबारियों की पत्नियाँ, या नयी लड़कियां शहंशाह की सेवा (यह साधारण सेवा नहीं है) में जाना चाहती थी तो पहले उसे अपना आवेदन पत्र हरम प्रबंधक के पास भेजना पड़ता था, फिर यह पत्र महल के अधिकारियों तक पहुँचता था और फिर जाकर उन्हें हरम के अंदर जाने दिया जाता जहां वे एक महीने तक रखी जाती थीं।” यहाँ समझने वाली बात यह है कि अकबर अपने हरम में दरबारियों, राजाओं तक कि लड़कियों तक को भी नहीं छोड़ता था, उन्‍हें महीने भर तक के लिए अपने यहां बुलवा लेता था। पूरी प्रक्रिया को सही ठहराने के लिए अकबर ने ऐसी व्‍यवस्‍था तैयार की थी कि इतिहास में उसे कभी गलत न ठहराया जाए। स्त्रियाँ खुद अकबर की सेवा में पत्र भेज कर जाती थीं! लेकिन वह यह भूल जाता है कि भारत की कोई स्‍त्री अभी ऐसी नहीं हुई है जोकि पति के सामने ही किसी और पुरुष की सेवा में जाने का आवेदन पत्र दे सकती है! मतलब यह है कि वास्तव में अकबर खुद ही आदेश देकर जबरदस्ती किसी को भी अपने हरम में रख लेता था और उनका सतीत्व नष्ट करता था!

 बाल पाठ्यक्रम में तत्‍काल सुधार करने की जरुरत
दूसरी ओर विश्‍व हिन्‍दू परिषद के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता विनोद बंसल ने प्रतिक्रिया दी है। उन्‍होंने कहा, ‘‘ये हमारे देश का दुर्भाग्‍य है कि छोटे मासूम बच्‍चों के दिमाग में मुगलिया सल्‍तनत के बारे में प्रशंसा भरी जा रही है। जबकि ये विदेशी आक्रांताओं का इतिहास है। जिन्‍होंने भारतीय बहुसंख्‍यक समाज पर सिर्फ अत्‍याचार ही किए हैं। बाबर चला गया, हुंमायू, अकबर, शाहजहां, औरंगजेब ये सब चले गए, लेकिन उनका गुणगान करने वाले हिन्‍दू विरोधी इतिहासकार अब भी सच सामने नहीं लाना चाहते। समय आ गया है इस तरह की सभी विकृतियों को अविलंब ठीक किया जाए।’’ उन्‍होंने कहा कि ‘‘एनसीईआरटी को यह समझना होगा कि अबोध बच्‍चों के मन में जो बचपन में डाल दिया जाता है, उसे ही वे आगे सच मान लेते हैं। उसी के अनुसार उनके संपूर्ण जीवन भर की मानसिकता बनती है। अकबर महान नहीं, वह दुष्‍ट और अत्‍याचारी है, अच्‍छा यही होगा कि बच्‍चों को उसके बारे में यदि बताना ही जरूरी है तो सच बताया जाए जो वह था।’’

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