Dhar Bhojshala: ASI ने भोजशाला की रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी, मंदिर के पुख्ता सबूत; हिंदू धर्म का पक्ष मजबूत

रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे में मिले स्तंभों और उसकी कला व वास्तुकला से यह कहा जा सकता है ये स्तंभ पहले मंदिर का हिस्सा थे, बाद में मस्जिद के स्तंभ बनाते समय उनका पुन: उपयोग किया गया।

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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) ने धार जिले (Dhar District) में स्थित भोजशाला (Bhojshala) का सर्वेक्षण (Survey) पूरा कर सोमवार (15 जुलाई) को अपनी दो हजार पन्नों की रिपोर्ट मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की इंदौर खंडपीठ (Indore Bench) को सौंप दी है। अब इस मामले की सुनवाई 22 जुलाई को होगी। सभी पक्षों को यह रिपोर्ट मीडिया से साझा न करने के निर्देश दिए गए हैं। भोजशाला की सच्चाई जानने के लिए एएसआई (ASI) द्वारा किए गए इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर सभी की निगाहें टिकी हैं।

हिंदू समुदाय भोजशाला को वाग्देवी का मंदिर मानता है। मुस्लिम पक्ष इसे कमाल मौला मस्जिद कहता है। दावा किया गया है कि जांच के दौरान कुल 94 मूर्तियां, मूर्तिकला के टुकड़े और मूर्तिकला चित्रण वाले स्थापत्य सदस्य नजर आए। खिड़कियों, खंभों और प्रयुक्त बीमों पर चार भुजाओं वाले देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई थीं। इन पर उत्कीर्ण चित्रों में गणेश, ब्रह्मा और उनकी पत्नियां, नरसिंह, भैरव, देवी-देवता, मानव और पशु आकृतियां शामिल हैं।

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भोजशाला विवाद क्या है?
भोजशाला को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। एएसआई द्वारा संरक्षित 11वीं सदी की भोजशाला को लेकर हिंदू और मुस्लिमों में अलग-अलग मत हैं। हिंदू इसे वाग्देवी (सरस्वती देवी) का मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम इसे कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं। भोजशाला को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में कई याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। हिंदू फॉर जस्टिस नामक संगठन ने करीब एक साल पहले हाईकोर्ट में नई याचिका दायर कर भोजशाला परिसर में हर शुक्रवार को होने वाली नमाज पर रोक लगाने की मांग की थी।

याचिका में कहा गया था कि हिंदू मंगलवार को भोजशाला में पूजा करते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय के लोग शुक्रवार को नमाज अदा कर परिसर को अपवित्र करते हैं। इस याचिका पर हाईकोर्ट ने इसी साल 11 मार्च को एएसआई को आदेश दिया था कि वह वाराणसी के ज्ञानवापी की तरह भोजशाला का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर रिपोर्ट पेश करे।

ये है वो आदेश जिस पर है विवाद
एएसआई ने इस विवादित परिसर का सर्वे 22 मार्च को शुरू किया था। ये सर्वे करीब तीन महीने तक चला। दरअसल, पूरा विवाद एजेंसी के 7 अप्रैल 2003 के आदेश को लेकर है। जब हिंदू और मुस्लिमों के बीच विवाद बढ़ा तो एएसआई ने आदेश जारी कर परिसर में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया। आदेश के बाद 21 साल तक हिंदू भोजशाला में सिर्फ मंगलवार को पूजा कर सकते हैं। मुस्लिम सिर्फ शुक्रवार को नमाज अदा कर सकते हैं। हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने इस व्यवस्था को चुनौती दी है।

ऐसे हुआ सर्वे
एएसआई ने इस सर्वे में कार्बन डेटिंग, जीपीएस और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया है। भोजशाला के बड़े हिस्से में खुदाई भी की गई है। दावा किया गया है कि खुदाई के दौरान पुरानी मूर्तियों और धार्मिक प्रतीकों के अवशेष मिले हैं। अफसरों ने सर्वे की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी भी कराई है। सर्वे रिपोर्ट में खुदाई में मिले अवशेषों की तस्वीरें भी पेश की गई हैं।

हिंदू पक्ष ने कहा- हमारा पक्ष मजबूत, सुप्रीम कोर्ट जाएंगे
हिंदू फ्रंट ऑफ जस्टिस के वकील एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने कहा कि इस मामले में एएसआई की रिपोर्ट महत्वपूर्ण है। एएसआई की रिपोर्ट ने हमारे केस को मजबूत किया है। हमने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के समक्ष कहा था कि यह परिसर हिंदू मंदिर का है। इसका उपयोग मस्जिद के रूप में किया जा रहा है। एएसआई ने 2003 में जो आदेश दिया था, वह पूरी तरह गलत है। यह देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है। हमने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने एएसआई को वैज्ञानिक अध्ययन करने का निर्देश दिया था। दो हजार पेज की रिपोर्ट में हमारा केस मजबूत हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस की कार्यवाही पर रोक लगा दी है। इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं। (Dhar Bhojshala)

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