UCC: असम सरकार ने रद्द किया मुस्लिम विवाह और तलाक कानून, UCC की दिशा में पहला कदम

असम सरकार ने मुसलमानों के विवाह और तलाक पंजीकरण कानून को रद्द कर दिया है। हिमंत बिस्वा सरमा कैबिनेट ने 89 साल पुराने इस कानून को रद्द करने का फैसला किया।

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देश में समान नागरिक कानून (Uniform Civil Law) की बयार चल रही है। उत्तराखंड (Uttarakhand) के बाद अब असम (Assam) ने भी इस कानून (Law) की दिशा में कदम उठाना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Chief Minister Himanta Biswa Sarma) की कैबिनेट ने मुस्लिम कानून (Muslim Law) को लेकर बड़ा फैसला लिया है।

असम सरकार ने मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण से संबंधित 89 साल पुराने कानून को रद्द करने का फैसला किया है।

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ऐतिहासिक फैसला लिया गया
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पर पोस्ट कर इस संबंध में जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि कैबिनेट बैठक में मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण कानून को खत्म करने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया है। इस अधिनियम के तहत दूल्हा और दुल्हन को लड़की के लिए 18 वर्ष और लड़के के लिए 21 वर्ष की आयु से पहले भी शादी करने की अनुमति दी गई। बाल विवाह को रोकने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है।

राज्य में समान नागरिक संहिता लागू की जायेगी
राज्य के पर्यटन मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने कहा कि मुख्यमंत्री शर्मा पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि राज्य में समान नागरिक संहिता लागू की जायेगी। शुक्रवार को सरकार ने मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को रद्द करने का अहम फैसला लिया।

कानून क्या था?
मुस्लिम समुदाय के लिए विवाह और तलाक पंजीकरण के लिए एक अलग कानून था। 94 अधिकारी इस अधिनियम के तहत विवाह और तलाक का पंजीकरण कर सकते थे। उनके अधिकार अब खत्म कर दिए गए हैं। साथ ही उन्हें मुआवजे के तौर पर 2-2 लाख रुपये भी दिए गए। सरकार द्वारा इस कानून को रद्द करने से अब सभी शादियां एक कानून के दायरे में आ गई हैं।

यह कानून ब्रिटिश काल में मुस्लिम विवाह और तलाक को विनियमित करने के लिए बनाया गया था। यह मौजूदा स्थिति पर लागू नहीं होता। इस कानून की सहायता से युवा मुस्लिम लड़के-लड़कियों की शादियां पंजीकृत की गईं। यह बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने के रुख के विपरीत है। इस बीच असम सरकार ने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने की तैयारी शुरू कर दी है।

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