पाकिस्तान की जेल में 4 वर्ष 3 माह बिताने के बाद रिहा हुए मछुआरे अपने घर वापस लौट आए हैं। घर लौटे मछुआरों को मां-बाप ने सीने से लगा लिया। रिहा हुए मछुआरे भी अपनापन पाकर खुशी के कारण अपनी आंखों से बरसते आंसू नहीं रोक पाए। उन्होंने बताया कि पकड़े जाने के बाद पाकिस्तान के सैनिकों ने उनके साथ मारपीट तो नहीं की लेकिन सवालों की झड़ी लगा दी, जिसका हम लोग जवाब तक नहीं दे पाए और फिर हमें जेल में डाल दिया गया।
तिन्दवारी थाना क्षेत्र के जसईपुर, सिंघौली, महेदू, धौसड आदि गांवों के मछुआरे गुजरात ठेके पर मछ्ली का शिकार करने जाते हैं। जसईपुर के रामविशाल कुशवाहा का बेटा विवेक, सिंघौली के विनोद का बेटा राजू और महेदू के प्यारेलाल का बेटा बाबू नौ नवम्बर, 2017 को गुजरात के ओखा बंदरगाह के पास समुद्र में मछली पकड़ रहे थे, तभी नाव तेज हवा के झोंके में बेकाबू होकर पाकिस्तान की समुद्री सीमा में चली गई और पाकिस्तान के सैनिकों ने सभी को पकड़ लिया तथा पाकिस्तान ले गए।
मारपीट नहीं लेकिन सवालों की झड़ी
मछुआरों के अनुसार उनके साथ मारपीट जरा भी नहीं हुई लेकिन सवाल बहुत पूछे गए। पहले एक दिन कराची में और अगले दिन लांडी जेल ले जाया गया, जहां सभी ने 4 वर्ष 3 माह बिताए।
बड़ों का लिया आशीर्वाद
पाक जेल से रिहा होने के बाद 31 जनवरी को मछुआरे अपने-अपने घर पहुंचे। मछुआरों ने अपने माता-पिता और बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। सभी ने उन्हें गले लगा लिया। कमाऊ पूतों के जेल में रहने से इनके घरों की आर्थिक स्थिति तंग हाल हो चुकी थी, फिर भी परिजनों ने अपने बेटों के आने की खुशी में हल्की फुल्की पार्टी रखी। राजू की मां मीरा नम आंखों से बोली ’म्वार लाल जब से पकड़ा गा रहै, तब से नींद ना आवत रहै, ना खाएं का निक लागत रहै। बस भगवान का सहारा रहे, अब वहिका बाहर ना जाय दहियौ।’
ईद पर छुट्टी
राजू ने बताया कि पाक जेल में ईद के पर्व पर बिरयानी मिलती थी, उस दिन छुट्टी भी रहती थी कोई भी काम नहीं करना पड़ता था। होली और दिवाली के त्योहार में हम स्वयं पकवान आदि बना लेते थे। जेल में प्रतिदिन सुबह दो घंटे हल्का- फुल्का काम करना होता था लेकिन त्योहारों में वह भी नहीं करना पड़ता था।
जेल में करना होता था काम
पाकिस्तान की जेल से छूटे मछुवारों में विवेक और बाबू ने बताया कि मोतियों से माला, पर्स, छोटे-छोटे खिलौने, महिलाओं के सौंदर्य से जुड़ी चीजें बनाकर कमाई करते थे। जेल में माला बनाने का काम करने लगे थे। उन्हें 250 से 300 रुपये रोजाना आमदनी होती थी। उनके तैयार किए माला जेल में ही बिक जाते थे। इन्हीं पैसों से मोती और धागा तथा माला की अन्य सामग्री खरीदी जाती थी। बाद में इन्हीं पैसों से मनमुताबिक पकवान कपड़े आदि लेते थे।
उत्तर प्रदेश सरकार से मदद की मांग
मछुआरों के मुताबिक गुजरात सरकार नौ हजार रुपये प्रति माह हर्जाना पकड़े गए मछुआरों के परिवार को देती है, लेकिन यूपी सरकार कुछ नहीं देती थी। मछुआरों के परिजनों ने सरकार से मुआवजे की मांग की है, जिससे कि वे अपने बेटों की आजीविका के लिए कोई काम धंधा शुरू कर सकें। जसईपुर के विवेक के पिता रामविशाल कुशवाहा, सिंघौली के राजू के पिता विनोद कुशवाहा और महेदू के बाबू कुशवाहा के पिता प्यारेलाल ने सरकार से मुआवजे की मांग की है। उनका कहना है कि जब सभी सरकारें पाकिस्तानी जेल के कैदियों को मुआवजा देती है तो उनके बेटे भी भारत में रहते हैं। उनके लिए नियम क्यों दूसरे हैं।