- अंकित तिवारी
Bangladesh Crisis: बांग्लादेश (Bangladesh) की ‘आइरन लेडी’ (Iron Lady) शेख हसीना (Sheikh Hasina) ने जारी हिंसक विरोध प्रदर्शनों (violent protests) के बाद 5 अगस्त को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और बदेश छोड़ दिया। बांग्लादेश में पिछले महीने छात्र समूहों द्वारा सरकारी नौकरियों में विवादास्पद कोटा प्रणाली को खत्म करने की मांग के बाद शुरू हुए विरोध प्रदर्शन और हिंसा की स्थिति अभी भी बनी हुई है।
जनवरी में हसीना ने प्रधानमंत्री के रूप में अपनी चौथी जीत हासिल की थी, हालांकि विपक्षी बीएनपी ने चुनाव का बहिष्कार किया था। हसीना का बांग्लादेश से भागना दक्षिण-पूर्व एशिया में राजनीतिक अस्थिरता का नवीनतम उदाहरण है। आइए पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता और उसका भारत पर पड़ने वाले प्रभाव पर करीब से नजर डालते हैं।
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निशाने पर हिंदू
शेख हसीना ने 5 अगस्त को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़कर भारत आ गईं, जबकि नौकरी कोटा के खिलाफ शुरू प्रदर्शनों पर कार्रवाई में सैकड़ों लोग मारे गए। बाद में यह प्रदर्शन उनके इस्तीफे की मांग करने वाले आंदोलन में बदल गया। उनके इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति आवास के आलीशान मैदान में बिना किसी विरोध के खुशी से झूमती भीड़ पहुंची और फर्नीचर तथा टीवी लूट ले गए। एक व्यक्ति ने अपने सिर पर लाल मखमली, सोने की किनारी वाली कुर्सी लेकर चला गया। दूसरे ने एक हाथ में फूलदान थामे हुआ था। सेना प्रमुख जनरल वकर-उज-जमान ने राष्ट्र के नाम एक टेलीविज़न संबोधन में हसीना के इस्तीफे की घोषणा की और कहा कि एक अंतरिम सरकार बनाई जाएगी। और फिलहाल वहां नोबेल पुरस्कार प्राप्त मुहम्मद युनूस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हो चुका है।
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हसीना भारत की विश्वसनीय सहयोगी
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, शेख हसीना के जाने का मतलब है कि भारत ने एक विश्वसनीय सहयोगी खो दिया है। आउटलेट ने लिखा है कि नई दिल्ली और ढाका ने बांग्लादेश को अपना घर बनाने वाले आतंकवादी समूहों से निपटने के लिए मिलकर काम किया है। आउटलेट ने यह भी उल्लेख किया कि जब बीएनपी-जमात या सेना ने बांग्लादेश में सत्ता संभाली, तो भारत को आतंकवादी समूहों के साथ कठिन समय का सामना करना पड़ा। अखबार ने कहा, “यह स्थिति फिर से पैदा हो सकती है तथा नई दिल्ली एक और मोर्चा खोलने का जोखिम नहीं उठा सकती है, जब नियंत्रण रेखा और पाकिस्तान के साथ सीमा पर फिर से तनाव कायम हो। पहले से ही भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख में पीएलए के साथ लंबे समय से गतिरोध में है।”
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पाकिस्तान में नापाक राजनीतिक
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने विरोध प्रदर्शन किया। यह तब हुआ, जब पार्टी के संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने जेल में एक साल पूरा कर लिया। मार्च में देश ने आसिफ अली जरदारी को पाकिस्तान के 14वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेते हुए और शहबाज शरीफ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालते देखा। दरअस्ल 8 फरवरी 2024 को हुए चुनाव में खान समर्थित उम्मीदवारों को सबसे अधिक सीटें मिलीं, लेकिन पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने गठबंधन सरकार बनाने पर सहमति जताई। पीएमएल-एन का नेतृत्व शहबाज शरीफ के बड़े भाई नवाज शरीफ कर रहे हैं, जो तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं, लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री का पद नहीं लेने का फैसला किया।
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भारत का पारंपरिक शत्रु
पाकिस्तान आर्थिक संकट से गुजर रहा है, जिसमें महंगाई चरम पर है और बेरोजगारी आसमान छू रही है। नई दिल्ली इस्लामाबाद में होने वाली घटनाओं पर नजर तो रखे हुए है, लेकिन हस्तक्षेप करने की कोई मंशा नहीं रखती। नई दिल्ली में अशोका यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सहायक प्रोफेसर अमित जुल्का ने पहले डीडब्ल्यू से कहा था, “मेरे विचार से पाकिस्तान में मौजूदा संकट भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नीतिगत दिशा की पुष्टि करता है – एक सोची-समझी अलगाव या कम-स्तर की दुश्मनी।” जुल्का ने कहा, “आर्थिक समस्याओं के कारण पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार ने अपनी वैधता खो दी है, और सेना बदनाम हो गई है तथा अपनी दिशा को लेकर काफी भ्रमित है।”
चीन के चंगुल में नेपाल
इस बीच, नेपाल में पिछले डेढ़ दशक से अस्थिरता जारी है। गणतंत्रीय प्रणाली लागू होने के बाद पिछले 16 वर्षों में देश में 14 सरकारें बनी हैं। जुलाई में, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने चौथी बार सत्ता संभाली। पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार द्वारा संसद में विश्वास मत हारने के बाद ओली ने पदभार संभाला। ओली द्वारा अपने पहले विदेश दौरे के लिए थाईलैंड को चुने जाने की संभावना है, जो पड़ोसी देश की यात्रा करने की परंपरा को तोड़ देगा। अतीत में, नेपाली प्रधानमंत्रियों ने ज्यादातर पहले भारत की यात्रा की, कुछ अपवादों के साथ चीन को अपना पहला गंतव्य चुना।
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भारत से बढ़ रही है दूरी
काठमांडू में राजनीतिक घटनाक्रम पर प्रतिद्वंद्वी नई दिल्ली और बीजिंग की नजर है, जो नेपाल में विकास सहायता और बुनियादी ढांचे में निवेश करते हैं तथा भू-राजनीतिक प्रभाव के लिए संघर्ष करते हैं। ओली ने 2015-2016 में अपने पहले कार्यकाल में बीजिंग के साथ एक पारगमन समझौते पर हस्ताक्षर करके नेपाल को चीन के करीब ले गए, जिससे नेपाल के विदेशी व्यापार पर भारत का एकाधिकार समाप्त हो गया। कुल मिलाकर नेपाल से भारत के रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे हैं। उसका चीन की ओर झुकाव बढ़ रहा है, जो भारत के हित में अच्छा नहीं है।
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म्यांमार में सत्तारूढ़ जनरलों का दबदबा
म्यांमार पर 2021 से सैन्य जुंटा का शासन है। 2012 में तख्तापलट में आंग सान सू की की निर्वाचित सरकार को हटाने के तीन साल बाद, म्यांमार के सत्तारूढ़ जनरलों पर अभूतपूर्व दबाव है। अर्थव्यवस्था में मंदी के बीच सैन्य शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह जोर पकड़ रहा है। फरवरी 2021 के तख्तापलट के बाद प्रदर्शनों पर हिंसक कार्रवाई से प्रतिरोध आंदोलन शुरू हो गया था, क्योंकि हजारों युवा प्रदर्शनकारियों ने हथियार उठा लिए थे और सेना से लड़ने के लिए कई स्थापित जातीय विद्रोही समूहों के साथ हो गए थे।
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा
भारत ने म्यांमार के साथ अपनी 1,643 किलोमीटर की सीमा पर बाड़ लगाने का भी फैसला किया। आउटलेट के अनुसार, म्यांमार नई दिल्ली की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया में विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन देशों के बीच अपने प्रभाव को बढ़ाने की योजनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। द प्रिंट के अनुसार, जुंटा अपनी सीमा पर भारतीय सेना के लड़ाकू विद्रोहियों की मदद करने के अपने वादे को पूरा करने में भी असमर्थ रहा है – जिससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। इसने भारत के उत्तर पूर्व, विशेष रूप से मिजोरम और मणिपुर को शरणार्थियों की आमद का सामना करना पड़ा है। इससे भारत के प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ बढ़ा है। साथ ही सुरक्षा संबंधी समस्याएं भी पैदा हुई हैं।
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श्रीलंका में आर्थिक संकट
श्रीलंका भीषण आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। वह देश भर में विरोध प्रदर्शनों से जूझ रहा है। दो साल पहले, हसीना की तरह ही गोटबाया राजपक्षे ने भी अपने आवास में प्रदर्शनकारियों के घुसने के बाद इस्तीफा दे दिया था और देश छोड़कर भाग गए थे। राजपक्षे के उत्तराधिकारी रानिल विक्रमसिंघे – जो पहले ही पांच बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री रह चुके हैं – यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के उम्मीदवार थे, जो मूल रूप से एक समझौता उम्मीदवार थे। लंबे इंतजार के बाद, विक्रमसिंघे ने घोषणा की है कि सामान्य स्थिति की ओर बढ़ने के साथ ही देश में चुनाव होंगे। आम और राष्ट्रपति चुनाव सितंबर और अक्टूबर में होने हैं। विजयदास राजपक्षे के साथ-साथ पोदुजना पेरामुना से भी विक्रमसिंघे को चुनौती मिलेगी।
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भारत के आभारी
फरवरी 2024 में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने भारत की जमकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि हम भारत के आभारी हैं। हम भारत की मदद के बिना बच नहीं सकते थे। यही कारण है कि हम दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों पर विचार कर रहे हैं। विक्रमसिंघे ने यह भी कहा था कि वह आईआईटी मद्रास की एक ब्रांच को श्रीलंका के कैंडी में खोलना चाहते हैं। उन्होंने भारत के साथ मजबूत आर्थिक संबंध बनाने और कनेक्टिविटी में सुधार का भी आग्रह किया। पिछले साल श्रीलंका में आर्थिक संकट गहराने और गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफा के बाद रानिल विक्रमसिंघे ने ही देश की कमान संभाली थी। तब भारत ने श्रीलंका को इस आर्थिक संकट से निकालने के लिए 5 बिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता प्रदान की थी।
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