जहांगीरपुरी दंगे में बांग्लादेशियों के ‘हाथ’! दावे में इसलिए है दम

सरकार को बांग्लादेशी तथा रोहिंग्या घुसपैठियों के मसले पर गौर करना होगा। इस पर सिर्फ चिंता जाहिर करना पर्याप्त नहीं होगा।

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इंदिरा गांधी ने 1975 में देश में इमरजेंसी लगाई तो उस दौर में राजधानी दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले हजारों लाखों लोगों को उनके घरों से उजाड़कर अलग-अलग जगहों में बसाया गया था। उसमें उत्तर-पश्चिम दिल्ली का जहांगीरपुरी नाम का इलाका भी था। उसे इन अभागे लोगों के लिए ही बसाया गया। इधर, मुख्य रूप से नई दिल्ली तथा साउथ दिल्ली की मलिन बस्तियों में रहने वालों को उठाकर ले जाया गया था। ये अधिकतर वाल्मिकी या धोबी समाज से थे।

वक्त बदला तो जहांगीरपुरी में आबादी का चरित्र बदलने लगा। यहां ज्यादातर आ गए बांग्लादेशी मुसलमान। ये यहां पर कच्ची शराब बनाने से लेकर सट्टेबाजी के धंधे में लग गए। इन्होंने कभी शांत समझे जाने वाले जहांगीरपुरी में छोटे-मोटे अपराध करने भी शुरू कर दिए। जहांगीरपुरी में रोज क्लेश होने लगा। इनकी आबादी तेजी से बढ़ने लगी। दिल्ली के लोकप्रिय नेता मदन लाल खुराना भी राजधानी में बांग्लादेशियों की बढ़ती जनसंख्या से डरे-सहमे रहते थे। वे बार-बार कहते थे कि इनको दोनों देशों की सीमा पार करके यहां आने की इजाजत नहीं मिले। पर यह हो न सका। खुराना जी तो संसार से चल गए और बांग्लादेशी दिल्ली और देश के दूसरे भागों में आते रहे।

खैर, जहांगीरपुरी की आबादी का चरित्र किस हद तक बदला, इसका पता चला जब हनुमान जन्मोत्सव के मौके पर निकली शोभायात्रा के वक्त इन बांग्लादेशियों ने कसकर बवाल काटा। वैसे ये अपने को पश्चिमी बंगाल का ही नागरिक बताते हैं। हालांकि जन्नत की हकीकत कुछ और है। इन्होंने हनुमान जन्मोत्सव मना रहे एक जुलूस पर ताबड़तोड़ हमला करने के बाद यहां तक झूठे आरोप मढ़े कि शोभायात्रा में शामिल लोगों ने एक मस्जिद पर अपना झंडा लगाने की कोशिश की थी। हालांकि दिल्ली पुलिस के कमिश्नर राकेश अस्थाना ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा है कि पुलिस की तफ्तीश से यह साफ हो गया है कि मस्जिद पर झंडा लगाने की कोई कोशिश नहीं हुई। जहांगीरपुरी में हुई हिंसा के लिए जिन लोगों को हिरासत में लिया गया है, वे लगभग सब बांग्लादेशी मुसलमान हैं।

अब जरा गौर करें कि इन देश विरोधी तत्वों को कुछ कथित नामवर बुद्धिजीवी का भी साथ मिल रहा है। इनमें पत्रकार राणा अयूब भी हैं। दरअसल जहांगीरपुरी में हुई हिंसा के बाद एक वीडियो पर राणा अयूब ने ट्वीट किया तो जानी-मानी पूर्व अमेरिकी टेनिस खिलाड़ी और कोच मार्टिना नवरातिलोवा ने भी उनका समर्थन किया।

राणा ने ट्वीट किया था कि, ‘राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। इस वीडियो को देखें। हिंदू कट्टरपंथी पिस्टल और हथियार लहराते हुए एक मस्जिद के आगे से गुजर रहे हैं। और क्या होता है? 14 मुसलमानों को गिरफ्तार करके आरोपी बनाया गया है। यह सब नरेंद्र मोदी के निवास से सिर्फ कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हो रहा है।’

यह वही राणा अयूब हैं, जिन पर हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आरोप लगाया था कि वे एक करोड़ रुपये से अधिक की राशि को लेकर गंभीर अपराध में संलिप्त हैं। यह केस फिलहाल न्यायालय में है। राणा को पिछली 29 मार्च को मुंबई एयरपोर्ट पर हिरासत में लिया गया था। वे 29 मार्च को लंदन जाने के लिए मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पहुंची थीं। लंदन में वे महिला पत्रकारों पर साइबर हमलों की वैश्विक समस्या पर कार्यक्रम में शामिल होने वाली थीं।

अब गौर करें कि इतनी संदिग्ध छवि वाली राणा अनाप-शनाप ट्वीट कर रही हैं। उनपर एक महान टेनिस खिलाड़ी प्रतिक्रिया दे रही हैं। यानी जहांगीरपुरी की शोभायात्रा में हुए बवाल का अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया गया। देश की इज्जत तार-तार हो गई। राणा के प्रति सम्मान का भाव तो तब जागता, अगर वे जहांगीरपुरी में बांग्लादेशी मुसलमानों की करतूतों पर भी ट्वीट करतीं। लेकिन वह यह क्यों करेंगी।

जहांगीरपुरी में हुई हिंसा में बांग्लादेशियों का रोल धीरे-धीरे सामने आ रहा है। बेशक, उस दिन की हिंसा में जो शामिल हैं, उन्हें कठोर दंड मिले। देखिए, राजधानी दिल्ली में एक अनुमान के अनुसार, बांग्लादेशियों की आबादी 5 लाख तक हो गई है। ये लगातार आपराधिक घटनाओं में संलिप्त रहते हैं। याद करें जब कुछ साल पहले राजधानी के विकासपुरी में बांग्लादेशी गुंडों ने डॉ. पंकज नारंग का कत्ल कर दिया था। डॉ. पंकज नारंग की हत्या से सारी दिल्ली सहम गई थी। जिन्दगी बचाने वाले डॉक्टर की सरेआम हत्या कर दी गई, पर तब राणा अयूब या कोई अन्य ‘सद्बुद्धिजीवी’ नहीं बोला था। तब कहां गई थी असहिष्णुता? जहांगीरपुरी की घटना पर केन्द्र सरकार तथा पुलिस की निंदा करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल डॉ. पंकज नारंग के घर जाने की जरूरत नहीं समझी थी। क्या किसी सेक्युलरवादी ने उनकी पत्नी, बेटे और विधवा मां से पूछा कि उनकी जिंदगी किस तरह से गुजर रही है? उस अभागे डॉक्टर का कसूर इतना ही था कि उन्होंने कुछ युवकों को तेज मोटरसाइकिल चलाने से रोका था। बस इतनी-सी बात के बाद बांग्लादेशी युवकों ने डॉ.पंकज नारंग का कत्ल कर दिया था।

देखिए, सरकार को बांग्लादेशी तथा रोहिंग्या घुसपैठियों के मसले पर गौर करना होगा। इस पर सिर्फ चिंता जाहिर करना पर्याप्त नहीं होगा। मुझे नहीं लगता कि इन्हें इनके मुल्क में वापस भेजा जा सकता है। पर इनकी हरकतों पर लगाम तो लगाई ही जा सकती है ताकि भविष्य में फिर से जहांगीरपुरी जैसी घटनाएं न हों।

कुछ सियासी दल बांग्लादेशियों के खिलाफ राजनीतिक लाभ या कहें कि वोटबैंक की राजनीति के चलते सामने नहीं आते। इसलिए सरकार को अब सियासत और वोटबैंक की परवाह किए बिना इन घुसपैठी बांग्लादेशियों को तो कसना ही होगा। यही नहीं, भारत-बांग्लादेश की सीमा को सील भी करना होगा ताकि ये भारत में घुस न पाएं। इस लिहाज से अब और ढील नहीं दी जा सकती है। एक और अहम बात यह है कि उन तत्वों को भी न छोड़ा जाए जो बिना पुलिस की अनुमति के शोभायात्रा निकालने लगते हैं। कानून सबके लिए समान है और समान रूप से ही लागू होना चाहिये।

आर.के. सिन्हा

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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