Bhagavad Gita: समग्र कल्याण की एक गाइड है श्रीमद् भगवद्गीता

अर्जुन और भगवान कृष्ण के बीच एक संवाद के माध्यम से इसने मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं में झाँकने की एक जबर्दस्त अंतर्दृष्टि प्रदान की है।

61

-विजय सिंगल

Bhagavad Gita: श्रीमद् भगवद्गीता धार्मिक उत्कृष्ट कृतियों में सबसे अधिक जानी पहचानी तथा एक अत्यंत सम्माननीय दार्शनिक ग्रंथ है। साथ ही इसे स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए एक आदर्श मार्गदर्शक और जीवन शैली संबंधी विकारों के संबंध में सभी के लिए रामबाण भी कहा जा सकता है।

अर्जुन और भगवान कृष्ण के बीच एक संवाद के माध्यम से इसने मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं में झाँकने की एक जबर्दस्त अंतर्दृष्टि प्रदान की है। इसमें यह भी विस्तार से बताया गया है कि किस प्रकार एक व्यक्ति अपने शरीर को स्वस्थ और अपने मन को प्रसन्न रख सकता है। भगवन कृष्ण ने अपनी शिक्षाओं की शुरुआत श्लोक संख्या 2.11 से की जिसमें उन्होंने मानव जाति को आश्वासन दिया है कि दुःखों का कोई वैध कारण नहीं है। तात्पर्य यह है कि कोई भी दुःख अनावश्यक ही होता है । ज्ञान को प्राप्त मनुष्य न तो जीवितों के लिए शोक करते हैं और न ही मृतकों के लिए। संतोष किसी भी व्यक्ति का सहज स्वभाव है ।

यह भी पढ़ें- Uttarakhand: पौड़ी में बस खाई में गिरने से पांच लोगों की मौत, 17 घायल

स्वस्थ और सुखी जीवन
स्वस्थ और सुखी जीवन जीना सबका अधिकार है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है उचित आहार। संख्या 17.7 से 17.10 तक के श्लोकों में, कृष्ण ने विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों और उनके प्रभावों का वर्णन किया है। भौतिक प्रकृति के तीन गुणों के अनुरूप, भोजन तीन प्रकार का होता है। जो खाद्य पदार्थ जीवन, प्राण शक्ति, बल, स्वास्थ्य और प्रफुल्लता का वर्धन करते हैं ; जो पुष्टिकर , स्वास्थ्यकर और हृदय को भाने वाले होते हैं – ऐसे खाद्य पदार्थ सत्वगुणी (सात्विक) व्यक्तियों को प्रिय होते हैं । ऐसे खाद्य पदार्थ जो पीड़ा, दुःख और रोग उत्पन्न करते हैं, वे रजोगुणी (राजसिक) व्यक्तियों को प्रिय होते हैं। जो खाद्य पदार्थ अशुद्ध, अधपके , स्वादहीन, दुर्गंधयुक्त, बासी और उच्छिष्ट (दूसरों के जूठे) होते हैं – ऐसे खाद्य पदार्थ तमोगुणी (तामसिक) व्यक्तियों को प्रिय
होते हैं ।

यह भी पढ़ें- Uttarakhand: पौड़ी में बस खाई में गिरने से पांच लोगों की मौत, 17 घायल

परमेश्वर को अर्पित
सतोगुणी आहार बल एवं प्राणों का संवर्धन करते हैं, रजोगुणी आहार रोग एवं क्लेश देते हैं ; और तमोगुणी आहार का परिणाम दुःख एवं दुर्भाग्य होता है। चूंकि मानव शरीर भोजन से बना है, इसलिए ग्रहण किए गए भोजन की गुणवत्ता का सर्वाधिक महत्व है। व्यक्ति जिस प्रकार का आहार लेता है उसका उसके समग्र व्यक्तित्व पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसलिए व्यक्ति को केवल अपनी जीभ को तृप्त करने के लिए नहीं बल्कि अपनी प्राण ऊर्जा की वृद्धि को भी ध्यान में रखकर खाना चाहिए । और व्यक्ति जो कुछ भी खाए वह पहले परमेश्वर को अर्पित करे। अच्छे स्वास्थ्य के लिए केवल गुणवत्ता ही नहीं, बल्कि ग्रहण किए गए भोजन की मात्रा भी बहुत महत्वपूर्ण है। गीता के श्लोक संख्या 6.16 और 6.17 में, यह सलाह दी गई है कि व्यक्ति को खाने, सोने, जागने और मनोरंजन में नियमित होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, इनमें से किसी भी गतिविधि में अति लिप्तता या पूर्ण रूप से विरत होना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। संयम सुखी जीवन की कुंजी है। संयम बरतना सीखना चाहिए।

यह भी पढ़ें- HMPV का घात, क्या भारत के पास है काट? यहां पढ़ें

सुस्त एवं निष्क्रिय जीवन शैली से परहेज
गीता ने कर्म के महत्व पर भी प्रकाश डाला है। श्लोक संख्या 3.8 में कहा गया है कि कर्म के बिना, कोई व्यक्ति अपने भौतिक शरीर का रखरखाव भी नहीं कर सकता। कर्म से कृष्ण का तात्पर्य जिस किसी भी कोटि के कर्म से नहीं है । श्लोक संख्या 4.17 में वे कहते हैं कि व्यक्ति को यह समझना होगा कि सही कर्म क्या है, गलत कर्म क्या है और निष्क्रियता क्या है। स्वस्थ जीवन के संदर्भ में, इसका अर्थ है कि व्यक्ति को स्वयं को उन गतिविधियों में शामिल करना चाहिए जो अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं; और जो हानिकारक हैं उनसे बचना चाहिए। इसे सरल शब्दों में कहें तो अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए व्यक्ति को संतुलित और पौष्टिक आहार लेना चाहिए और नियमित व्यायाम करना चाहिए। जंक फूड, अत्यधिक भोजन ,अत्यधिक उपवास और शारीरिक रूप से सुस्त एवं निष्क्रिय जीवन शैली से परहेज अवश्य करना चाहिए।

यह भी पढ़ें- Maha Kumbh Mela 2025: महाकुंभ में सुरक्षा बलों की मॉक ड्रिल, एनएसजी और एनडीआरएफ ने किया प्रशिक्षण अभ्यास

इंद्रियों पर नियंत्रण
शारीरिक स्वास्थ्य समग्र कल्याण का केवल एक पहलू है। मानसिक स्वास्थ्य , यदि अधिक नहीं , तो शारीरिक स्वास्थ्य जितना महत्वपूर्ण तो है ही। केवल एक ज्ञानी, तनावमुक्त और स्थिर मन ही शरीर के हानिकारक विषाणुओं और जीवन के भावनात्मक तनावों को प्रभावी ढंग से संभाल सकता है । गीता ने विस्तार से बताया है कि ऐसा शांत और अनुशासित मन कैसे प्राप्त किया जा सकता है । अनेक श्लोकों के माध्यम से विस्तारपूर्वक यह बताया गया है कि व्यक्ति भय, लोभ, क्रोध, ईर्ष्या, चिंता और दु:ख से कैसे पार पा सकता है। इंद्रियों के नियंत्रण से मनुष्य वासना को किस तरह से रोक सकता है। वह किस तरह से मन के सम भाव को विकसित कर सकता है । वह अपने आप में किस तरह से संतुष्ट रह सकता है। वह किस तरह से संशय से मुक्त हो सकता है; और आत्म विश्वास प्राप्त कर सकता है । वह किस तरह से मन की अगाध शांति प्राप्त कर सकता है । एक बार मन का ऐसा अनुशासन प्राप्त हो जाने के बाद, व्यक्ति अपने मन की शक्ति के माध्यम से, वासना की आसक्ति से छुटकारा पा लेता है। गीता ने आनंदमय जीवन के लिए प्राणायाम और ध्यान की भी सिफारिश की है। सांस का नियमन और मन की एकाग्रता प्रसन्नता लाती है। व्यक्ति भीतर से आनंदित हो जाता है।

यह भी पढ़ें- J-K News: बारामूला में पुलिस ने 5 ड्रग तस्करों को किया गिरफ्तार, जानें कितनी थी कीमत

मृत्यु के भय पर विजय
गीता ने शरीर और मन के अलावा, आत्मा की आध्यात्मिक अवधारणा पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला है । जब कोई यह समझ लेता है कि उसका वास्तविक स्वरूप आत्मा है, जो कि अविनाशी है और जो कि उसके भौतिक अस्तित्व के पीछे की शाश्वत वास्तविकता है , तब वह शरीर और मन से जुड़े सभी कष्टों से ऊपर उठ जाता है । वह वृद्धावस्था और मृत्यु के भय पर विजय प्राप्त करता है। तब वह जीवन के वास्तविक अर्थ और उद्देश्य को समझ जाता है। इस तरह के एक मजबूत शरीर, शांत मन और शुद्ध आत्मा के साथ, कोई भी व्यक्ति किसी भी तनाव भरी परिस्थिति का प्रभावी ढंग से सामना कर सकता है। कोई भी जीवनशैली संबंधी विकार या मनोदैहिक रोग उसे लंबे समय तक प्रभावित नहीं कर सकता है। इस प्रकार, वह एक स्वस्थ और सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है । आध्यात्मिक जीवन शैली एक आनंदमय जीवन की शैली है।

यह वीडियो भी देखें-

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.