अवधी को आठवीं सूची में सम्मिलित करने की मांग, कहीं हिंदी टूट न जाए?

देश की 22 भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं। इस अनुसूची में आरम्भ में 14 भाषाएं थीं, इसके बाद सिंधी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली को शामिल किया गया। जिससे इसकी संख्या 18 हो गई। तदुपरान्त बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली को शामिल किया गया और इस प्रकार इस अनुसूची में 22 भाषाएं हो गईं।

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अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण कार्य का श्रीगणेश हो गया है। इसके लिए विधिवत नींव भराई का कार्य भी पूजन के साथ शुरू हो चुका है। ऐसे में अब श्रीराम की भाषा अवधी को लेकर एक बड़ी मांग संसद में रखी गई है। इसे संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने की मांग उठी है। लेकिन इस तरह की मांग का पहले से ही विरोध हो रहा है। भाषाविदों का मानना है कि इससे हिंदी भाषा को बड़ी क्षति उठानी पड़ेगी।

अवधी को भी संविधान की आठवीं सूची में सम्मिलित किया जाना चाहिये। ऐसी मांग भारतीय जनता पार्टी के सांसद अशोक वाजपेयी ने शून्यकाल के दौरान उपस्थित किया।

अशोक वाजपेयी ने कहा कि, अवधी समृद्ध साहित्यिक भाषा है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस समेत कई ग्रंथ अवधी में हैं। अब अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनने जा रहा है। ऐसे में अवधी भाषा के योगदान को देखते हुए उसे संविधान की आठवीं सूची में सम्मिलित किया जाना चाहिए।

यह मांग अवधी की समृद्धि को वैश्विक स्तर पर ख्याति अर्जन में सहायक सिद्ध हो सकती है लेकिन इसकी मूल हिंदी भाषा में इससे क्षरण होने का संभ्रम भी हो रहा है। इसे जानने से पहले एक दृष्टि अवधी को होनेवाले लाभ पर डालते हैं।

आठवीं सूची में सम्मिलित होने से लाभ

  • 1. किसी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में सम्मिलित करने का सबसे बड़ा लाभ ये है कि इससे उस भाषा को संवैधानिक दर्जा मिलता है।
  • 2. संघ लोक सेवा का विचार जानने के बाद अखिल भारतीय और उच्चस्तर की केंद्रीय सेवा परीक्षाओं में एक वैकल्पिक माध्यम के रूप में भाषा को अनुमति दी जा सकती है।
  • 3. साहित्य अकादमी अपने विवेकाधिकार से इन भाषाओं के लिए पुरस्कार, विशेष प्रोत्साहन कार्यक्रम आदि आरंभ कर सकती है।

हिंदी टूटेगी तो नहीं?

‘हिंदी बचाओ मंच’ नामक एक संस्था हिंदी की बोलियों को संविधान की आठवीं सूची में सम्मिलित करने का विरोध कर रही है। हालांकि, इसका विरोध भोजपुरी को लेकर था लेकिन, ये अवधी को लेकर भी उठ सकता है। इस विरोध में वो जिन बिंदुओं को इंगित कर रहे हैं वो ध्यान देने योग्य है।

  • आठवीं अनुसूची में शामिल होने से हिंदी भाषियों की जनसंख्या में से भोजपुरी भाषियों की जनसंख्या घट जाएगी। जैसे मैथिली की संख्या हिंदी में से घट चुकी है।
  • इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि, संख्या-बल के कारण ही हिंदी इस देश की राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित है। यदि यह संख्या घटी तो राजभाषा का दर्जा हिंदी से छिनते देर नहीं लगेगी।
  • विकीपीडिया के आधार पर हिंदी भाषियों की संख्या के आधार पर दुनिया की सौ भाषाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिंदी को चौथे स्थान पर रखा गया है। इसके पहले हिंदी का स्थान दूसरा रहता था।
  • हिंदी को चौथे स्थान पर रखने का कारण यह है कि सौ भाषाओं की इस सूची में भोजपुरी, अवधी, मारवाड़ी, छत्तीसगढ़ी, ढूंढाढी, हरियाणवी और मगही को शामिल किया गया है।
  • हिंदी की मुख्य लड़ाई अंग्रेजी के वर्चस्व से है। वह देश की सभी भाषाओं को धीरे-धीरे लीलती जा रही है। उससे लड़ने के लिए हमारी एकजुटता बहुत जरूरी है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को स्थान दिलाने की मांग आज भी लंबित है। यदि हिंदी भाषिकों की संख्या ही नहीं रहेगी तो उस मांग का क्या होगा?
  • स्वतंत्रता के बाद हिंदी की व्याप्ति हिंदीतर भाषी प्रदेशों में भी हुई है। हिंदी की संख्या और गुणवत्ता का आधार केवल हिंदी भाषी राज्य ही नहीं, अपितु हिंदीतर भाषी राज्य भी हैं।
  • अगर इन बोलियों को अलग कर दिया गया और हिंदी का संख्या-बल घटा तो वहां की राज्य सरकारों को इस विषय पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है कि वहां हिंदी के पाठ्यक्रम जारी रखे जाएं या नहीं।
  • इतना ही नहीं, राजभाषा विभाग सहित केंद्रीय हिंदी संस्थान, केंद्रीय हिंदी निदेशालय अथवा विश्व हिंदी सम्मेलन जैसी संस्थाओं के औचित्य पर भी सवाल उठ सकता है।
  • संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होते ही इन्हें स्वतंत्र विषय के रूप में यूपीएससी के पाठ्यक्रम में शामिल करना पड़ेगा। इससे यूपीएससी पर अतिरिक्त बोझ तो पड़ेगा ही, देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित इस सेवा का स्तर भी गिरेगा।
  • अनुभव यही बताता है कि भाषा को मान्यता मिलने के बाद ही अलग राज्य की मांग होने लगती है। मैथिली को सन् 2003 में आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया और उसके बाद से ही मिथिलांचल की मांग की जा रही है।

अवधी का इतिहास
हिंदी क्षेत्र की एक बोली है अवधी। ‘अवध’ शब्द की उत्पत्ति अयोध्या से है। गोस्वामी तुलसीदास ने अपने ‘मानस’ में अयोध्या को ‘अवधपुरी’ कहा है। इस क्षेत्र का पुराना नाम ‘कोसल’ भी था।

उत्तर प्रदेश के 19 जिलों- बाराबंकी, सुल्तानपुर,अमेठी, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, कौशांबी, फतेहपुर, रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद व अंबेडकर नगर में पूरी तरह से यह बोली जाती है। जबकि 6 जिलों- जौनपुर, मिर्जापुर, कानपुर, शाहजहांबाद, बस्ती और बांदा के कुछ क्षेत्रों में इसका प्रयोग होता है। बिहार के 2 जिलों के साथ पड़ोसी देश नेपाल के 8 जिलों में यह प्रचलित है। इसी प्रकार दुनिया के अन्य देशों- मॉरिशस, त्रिनिदाद एवं टुबैगो, फिजी, गयाना, सूरीनाम सहितआस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व हॉलैंड में भी लाखों की संख्या में अवधी बोलने वाले लोग हैं।

ऐतिहासिक महत्व
गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘रामचरित मानस’ एवं मलिक मुहम्मद जायसी कृत ‘पद्मावत’ सहित कई प्रमुख ग्रंथ इसी बोली की देन हैं। इसके अलावा सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, पं महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, राममनोहर लोहिया, कुंवर नारायण की जन्मभूमि भी अवध क्षेत्र है। उमराव जान, आचार्य नरेन्द्र देव और राम प्रकाश द्विवेदी की कर्मभूमि भी यही है। रमई काका की लोकवाणी भी इसी भाषा में गुंजित हुई। हिंदी के रीतिकालीन कवि द्विजदेव के वंशज अयोध्‍या का राजपरिवार है। इसी परिवार की एक कन्‍या का विवाह दक्षिण कोरिया के राजघराने में हुआ था।

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