लव जिहाद, नार्कोटिक्स जिहाद से लेकर लैंड जिहाद और धर्मांतरण तक हर तरह के हथकंडे अपनाकर भारत ही नहीं, दुनिया के अधिकांश देशों में इस्लामिक आतंकवाद की आग भड़काने का षड्यंत्र जारी है। इसके लिए सोशल मीडिया को भी टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। इस षड्यंत्र के तहत ही केवल हिंदू ही नहीं, सिख, क्रिश्चियन और अन्य धर्म की लड़कियों को निशाना बनाया जा रहा है।
लव यानी प्यार से शुरू कर धर्मांतरण और फिर आतंकवाद की आग में झोंकने तक का खतरनाक षड्यंत्र मुल्ला-मौलवियों द्वारा रचा जा रहा है। इसके लिए होश संभालते ही ज्यादातर मुसलमानों को तैयार कर दिया जाता है। इसलिए वे अपने मजहब यानी धर्म के लिए हर तरह के षड्यंत्र करने और मारने मरने को तैयार रहते हैं। फिदायीन हमले और अन्य तरह के खतरनाक खेल ऐसे ही तैयार किए गए लोगों द्वारा खेले जाते हैं।
बड़े षड्यंत्र का हिस्सा
फिलहाल इस्लाम की मार्केटिंग भी खुलकर की जा रही है। इसके लिए सोशल मीडिया के साथ ही देश के मशहूर धर्म स्थलों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। देखने और सुनने में छोटी लगने वाली ये बातें बड़े षड्यंत्र के हिस्सा हैं। हालांकि देखने-सुनने में हिंदुओं और अन्य धर्म के लोगों को यह षड्यंत्र जल्दी समझ में नहीं आता, लेकिन जो इस्लाम के प्रचार प्रसार और उसके विस्तार को लेकर अपनी जान तक देने को तैयार हैं, वे मुसलमान इसके बड़े प्रभाव को अच्छी तरह समझते हैं।
बोधगया में जामा मस्जिद?
फिलहाल हम बात कर रहे हैं, बिहार के बोध गया की। देश-दुनिया में मशहूर बोध गया बिहार ही नहीं, अखंड भारत के इतिहास समेटे यह साबित करने के लिए काफी है कि आखिर भारत को विश्व गुरू क्यों कहा जाता था। दूरदर्शी महामंत्री चाणक्य और मौर्य वंश के गौरवशाली इतिहास का संक्षिप्त परिचय देता गया के बिलकुल पास स्थित बोध गया में उन देशों के भव्य मंदिर विशेष रुप से निर्मित किए गए हैं, जिनमें मौर्य काल में बौद्ध धर्म के अनुयायी बड़े पैमाने पर थे और आज भी हैं।
महाबोधि मंदिर के प्रवेश द्वार पर जामा मस्जिद का बोर्ड
यहां वैसे तो 10 से अधिक देश के मनभावन और भव्य मंदिर हैं, लेकिन सबसे गौरवशाली और प्राचीन तथा विशाल विश्व धरोहार महाबोधि मंदिर है। इसी स्थान पर भगवान महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। मुल्ला-मौलवियों ने इस्लाम की मार्केटिंग करने के लिए वहां भी जामा मस्जिद का बोर्ड लगा दिया है। इस बोर्ड को देखकर एक बार मन में यह सवाल जरुर उठता है कि क्या यहां भी कोई जामा मस्जिद है। हालांकि यहां कोई ऐसी मस्जिद नहीं है।
बहुत कम मुसलमान आते हैं यहां
भारत के ज्यादातर लोगों को मालूम है कि यहां कोई जामा मस्जिद नहीं है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों में हिंदू के आलावा बौद्ध, सिख और जैन धर्म के लोग होते हैं। इनमें मुसलमानों की संख्या नगण्य है। फिर भी यहां जामा मस्जिद का बोर्ड लगाने का क्या मतलब है। यह सवाल मन में उठना स्वाभाविक है।
बड़ा मार्केटिंग फंडा
दरअस्ल महाबोधि मंदिर एक अंतरराष्ट्रीय श्रद्धा और पर्यटन स्थल है। यहां देश से अधिक विदेश के लोग आते हैं। इस स्थिति में वे यहां जामा मस्जिद के लगे बोर्ड को लेकर उत्सुक हो जाते हैं। वे यहां के किसी स्टाफ या गाइड से पूछते हैं कि यह जामा मस्जिद क्या है, किधर है। तब उन्हें बताया जाता है कि यह मुख्य रूप से दिल्ली में है। इस तरह से जब पर्यटक दिल्ली जाते हैं तो वे जामा मस्जिद भी जाना चाहते हैं। फिर वे इस बारे में अन्य पर्यटकों के साथ ही अपने देश में भी चर्चा करते हैं। इस तरह इस्लाम का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार होता है।
अन्य धर्मस्थलों पर भी इस्लाम का प्रचार
इस्लाम की मार्केटिंग का यह फंडा अन्य तीर्थ और पर्यटक स्थलों पर भी अपनाया जा रहा है। भारत में इस्लामीकरण के लिए इस्लाम धर्म गुरू से लेकर राजनीतिज्ञों तक हर तरह के फंडा अपना रहे हैं। ज्यादातर मुसलमान फेमिली प्लानिंग यानी परिवार नियोजन से दूर रहकर हिंदुओं से अधिक बच्चे पैदा करने से लेकर लव जिहाद, लव नार्कोटिक्स और लैंड जिहाद तक के फंडे अपनाकर वे पूरी दुनिया में इस्लामिक साम्राज्य कायम करना चाहते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
स्वातंत्रयवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर का मानना है कि अगर देश में मुसलमानों की आबादी ऐसे ही बढ़ती रही तो 2040 तक देश में इस्लामिक शासन होगा। इनके आलावा अन्य जानकारों के भी विचार इसी तरह के हैं। उनका कहना है कि 2050 तक देश में मुसलमानों की आबादी हिंदुओ से अधिक होगी। तब देश की राजनैतिक और सामाजिक स्थिति पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश जैसी हो सकती है।