Bombay High Court: पानसरे हत्या कांड में छह आरोपियों को जमानत, बॉम्बे हाईकोर्ट ने बताया यह कारण

29 जनवरी को बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अनिल किलोर की एकल पीठ ने बहुचर्चित कॉमरेड गोविंद पानसरे हत्याकांड के सात आरोपियों में से छह को जमानत दे दी।

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Bombay High Court: बुधवार, 29 जनवरी को बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अनिल किलोर की एकल पीठ ने बहुचर्चित कॉमरेड गोविंद पानसरे हत्याकांड के सात आरोपियों में से छह को जमानत दे दी। जमानत इस आधार पर दी गई कि इस मामले की जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है। दिलचस्प बात यह है कि इन आरोपियों में से सचिन अंधुरे को हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पत्रकार गौरी लंकेश हत्या मामले में जमानत दे दी थी, जिसमें कहा गया था कि जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है और आरोपी लंबे समय से हिरासत में है।

इन पांच आरोपियों को मिली जमानत
इस मामले में प्रत्येक आरोपी को 25,000 रुपये के व्यक्तिगत मुचलके पर जमानत दी गई है। न्यायमूर्ति किलोर ने कहा कि इस मामले में प्राप्त साक्ष्य यह संकेत नहीं देते कि आरोपी को इस समय जमानत देने से इनकार किया जाना चाहिए। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता पुष्पा गनेडीवाला, वरिष्ठ अधिवक्ता शुभदा खोत और वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्ध विद्या ने आरोपियों के कानूनी कागजात लिए थे। पानसरे मामले में जिन आरोपियों को जमानत दी गई है, उनके नाम सचिन अंदुरे, गणेश मिस्किन, अमित देगवेकर, भरत कुराने, अमित बड्डी और वासुदेव सूर्यवंशी हैं। डॉ. वीरेंद्र तावड़े की जमानत याचिका इस आधार पर लंबित रखी गई है कि इस पर सुनवाई आवश्यक है। इस मामले में 250 से अधिक गवाहों की गवाही अभी दर्ज होनी बाकी है।

न्यायालय ने क्या कहा?
गोविंद पानसरे की हत्या के आरोपियों को पुलिस ने 2018 और 2019 के बीच गिरफ्तार किया था। आरोपी अभी भी जेल में थे। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपियों को जमानत दी गई है क्योंकि मामला जल्द सुलझने की संभावना नहीं है। अदालत ने फैसला सुनाया कि जांच में प्रगति न होने के कारण आरोपी जमानत का पात्र है।

वकील ने क्या कहा?

आपराधिक न्याय प्रणाली ख़राब हो गई है – वरिष्ठ अधिवक्ता नितिन प्रधान
जो भी हुआ, न्याय हुआ। इस मामले में जांच एजेंसी की ओर से बिना किसी सबूत के आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया। आरोपियों को तब गिरफ्तार किया जाता है, जब जांच एजेंसियों के पास इस मामले में कोई सबूत नहीं होता। जिस कारण से आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था, उसका न तो इस मामले से कोई संबंध था और न ही इस मामले में प्रस्तुत साक्ष्यों से, फिर भी इन आरोपियों को सात साल तक जेल में रखा गया। इसका एक उदाहरण यह है कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली ध्वस्त हो गयी है। लेकिन जब ऐसे मामले सही अदालत में आते हैं तो न्याय मिलता है, यही कारण है कि आम आदमी का न्याय व्यवस्था पर भरोसा बना रहता है। डॉ तावड़े का आवेदन लंबित रखा गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता नितिन प्रधान ने ‘हिन्दुस्थान पोस्ट’ से बात करते हुए कहा कि अदालत (बॉम्बे हाईकोर्ट) ने मामले पर आगे सुनवाई की आवश्यकता जताई है।

आरोपी छह साल से जेल में थे – वरिष्ठ अधिवक्ता पुष्पा गनेडीवाला
मेरे पास अमित दिगवेकर और वासुदेव सूर्यवंशी की जमानत याचिका थी। आरोपी छह साल से जेल में थे। सर्वोच्च न्यायालय उन मामलों में अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी को जमानत दे रहा है, जहां जांच में देरी हुई है। वरिष्ठ अधिवक्ता पुष्पा गनेडीवाला ने ‘हिंदुस्थान पोस्ट’ से बात करते हुए कहा कि इसलिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी यही टिप्पणी की और आरोपी को जमानत दे दी।

इस मामले में एक कथात्मक खेल खेला गया – वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्ध विद्या
इस मामले में अदालत (बॉम्बे हाईकोर्ट) ने आरोपी को जमानत दे दी है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस मामले में न्याय हुआ है। क्योंकि ये आरोपी सात साल से जेल में हैं। अगर कल वे निर्दोष पाए गए तो उनके सात साल की सजा कौन चुकाएगा? ये आरोपी दोषी हैं या निर्दोष, यह भविष्य में साबित होगा। यह मामला एक या दो साल में और तेजी से पूरा किया जा सकता था, लेकिन आज के तथ्यों को देखते हुए, राज्य सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए सावधानी बरती थी कि यह मामला लंबित ही रहे। इस मामले में एक कथात्मक खेल चल रहा है। क्योंकि देश में हत्याएं तो बहुत होती हैं, लेकिन इस विशेष हत्या मामले को जानबूझकर विशेष ध्यान दिया गया। क्योंकि मैंने कभी किसी हत्या के मामले में ऐसा नहीं देखा है जिसमें राज्य सरकार ने कहा हो कि हत्या के मामले में गोलियों को फोरेंसिक जांच के लिए स्कॉटलैंड भेजा जाना चाहिए। इस मुद्दे पर मामला पांच साल तक लटका रहा और अंततः सरकार ने कहा कि वह स्कॉटलैंड को गोलियां नहीं भेजेगी। इन सभी मामलों में 250 गवाह हैं, लेकिन आज तक उनकी गवाही की जांच नहीं की गई है। इनमें से केवल 30-35 गवाहों की गवाही ही सत्यापित की गई है। अगर यह मामला इसी गति से चलता रहा तो 10 साल में यह इस मुकाम पर पहुंच जाएगा और कल 18 साल तक चलेगा। इस दौरान कुछ आरोपियों के माता-पिता का निधन हो चुका है और आरोपियों को अभी तक रिहा भी नहीं किया गया है। इसलिए मैं इसे उचित नहीं मानता। मेरा मानना ​​है कि इस मामले में न्याय में देरी हुई है और न्याय से इनकार किया गया है। इसलिए उम्मीद है कि इस मामले में मुकदमा तेजी से आगे बढ़ेगा और न्याय मिलेगा, ऐसा वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्ध विद्या ने ‘हिन्दुस्थान पोस्ट’ से बात करते हुए कहा।

आखिर मामला क्या है?
16 फरवरी 2015 को कोल्हापुर में बाइक सवार दो हमलावरों ने गोविंद पानसरे और उनकी पत्नी पर अचानक गोलियां चला दीं। हमले के चार दिन बाद पानसरे की मृत्यु हो गई। मामले की जांच शुरू में कोल्हापुर के राजारामपुरी पुलिस ने की थी। लेकिन बाद में मामले की जांच राज्य अपराध विभाग के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक की निगरानी में विशेष जांच दल को सौंप दी गई। इस मामले में आरोपी आठ साल तक जेल में रहा।

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किसने जांच की ?
इस महीने की शुरुआत में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मामले की जांच की न्यायिक निगरानी रोक दी थी। पानसरे की हत्या की जांच पहले राज्य पुलिस के अपराध जांच विभाग के विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की गई थी। अगस्त 2022 में उच्च न्यायालय के आदेशानुसार मामला आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) को स्थानांतरित कर दिया गया। पिछले साल उच्च न्यायालय ने पानसरे की हत्या के एक आरोपी समीर गायकवाड़ की जमानत रद्द करने की मांग वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका खारिज कर दी थी।

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