Caste Census: 2 सितंबर (सोमवार) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation) (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें सामाजिक और जाति आधारित जनगणना कराने की मांग (Demand for social and caste based census) की गई थी।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि यह एक नीतिगत मामला है, जिसमें शीर्ष अदालत हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है। जब मामले पर सुनवाई हुई, तो जस्टिस रॉय ने पूछा, “यह क्या है? यह शासन के क्षेत्र में आता है। हम क्या कर सकते हैं?”
#SupremeCourt dismisses a PIL calling for social and caste based census
Roy J: What is this? This is in the domain of the governance. What can we do?
Advocate (for petitioner): 94 countries have done it. India yet to do. Indra Sawhney Judgment says that this has to be done… pic.twitter.com/6cOT7xnFdq
— Bar and Bench (@barandbench) September 2, 2024
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हस्तक्षेप नहीं कर सकते
याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब दिया, “94 देशों ने ऐसा किया है। भारत ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। इंद्रा साहनी जजमेंट में कहा गया है कि इसे समय-समय पर किया जाना चाहिए।” जस्टिस रॉय ने कहा, “माफ करें, हम इसे खारिज कर रहे हैं। हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते। यह एक नीतिगत मामला है।” कोर्ट के रुख को देखते हुए, याचिकाकर्ता ने अंततः याचिका वापस ले ली।
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ऐतिहासिक इंद्रा साहनी फैसला
1992 के ऐतिहासिक इंद्रा साहनी फैसले ने पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की वैधता को बरकरार रखा था, जबकि आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की सीमा तय की थी। 2021 में मराठा आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले की फिर से पुष्टि की। हाल के वर्षों में जाति जनगणना कराने का मुद्दा कुछ बहस और राजनीतिक विवाद का विषय रहा है।
बिहार में जाति सर्वेक्षण
बिहार सरकार के इस तरह की एक कवायद करने के फैसले को भी अदालतों में चुनौती दी गई थी। अगस्त 2023 में, पटना उच्च न्यायालय ने बिहार में जाति सर्वेक्षण कराने के फैसले को बरकरार रखा, हालांकि इस फैसले को तुरंत सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने अभी तक इस मामले पर अंतिम फैसला नहीं सुनाया है। कुछ समय पहले महाराष्ट्र में भी जाति जनगणना कराने की इसी तरह की कवायद की मांग की गई थी।
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सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के आंकड़ों
2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा 2011 में संकलित सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना के आंकड़ों (त्रुटियों का हवाला देते हुए जारी नहीं किए गए) का खुलासा करने की याचिका को खारिज कर दिया, ताकि महाराष्ट्र की तत्कालीन उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना सरकार द्वारा ऐसा जाति सर्वेक्षण किया जा सके। यह याचिका अधिवक्ता श्रवण कुमार करनम के माध्यम से आर प्रसाद नायडू नामक व्यक्ति ने दायर की थी। इसने तर्क दिया कि देश में सबसे अधिक हाशिए पर पड़े लोगों के लिए कल्याणकारी उपायों को कारगर बनाने के लिए यह कदम आवश्यक था। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला पेश हुए।
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