सीबीआई ने एसएससी भ्रष्टाचार मामले में पकड़े गए प्रसन्ना रॉय के करीबी स्कूल सहायक शिक्षक अब्दुल अमीन की तलाश शुरू कर दी है। पाथरघाटा स्कूल के सहायक शिक्षक अब्दुल अमीन प्रसन्ना के काफी करीबी बताए जाते हैं। 10 हजार रुपये की नौकरी करने वाले पारा शिक्षक अब्दुल अमीन का करोड़ों का घर देखकर सीबीआई दंग रह गई।
सूत्रों के मुताबिक, 2016 में अमीन ने पाथरघाटा इलाके में एक महलनुमा घर बनाया था। घर बनाने में 1.5 करोड़ रुपये खर्च किए गए। लेकिन अमीन ने 10 हजार रुपये की नौकरी से इतना बड़ा आलीशान घर कैसे बना लिया? इस प्रश्न का उत्तर खोजते समय जांचकर्ताओं के हाथ में सनसनीखेज जानकारी आई है। 2014 से अब्दुल अमीन पाथरघाटा हाई स्कूल में पैरा टीचर के पद पर कार्यरत थे। काम के माध्यम से, वह किसी तरह प्रसन्न कुमार रॉय के करीब हो गए, जो वर्तमान में एसएससी भ्रष्टाचार मामले में हिरासत में हैं।
ये है आरोप
आरोप है कि अमीन ने लाखों रुपये के बदले कई लोगों को सरकारी नौकरी दिलवाई। सूत्रों के मुताबिक अब तक वह पैसे के बदले 113 लोगों को नौकरी दिलवा चुका है। इतना ही नहीं अब्दुल ने अपनी एक रिश्तेदार की नौकरी लगवाई है। वह वर्तमान में भागवानगोला स्कूल में शिक्षक है और उसकी पत्नी नादिया एक स्कूल में शिक्षिका हैं। यहां तक कि उसने अपनी साली की शादी में भी लाखों रुपए खर्च किए थे।
लापता है अमीन
प्रसन्ना की गिरफ्तारी के बाद से पड़ोसियों ने अमीन को नहीं देखा है। उसके घर की सभी दरवाजे, खिड़कियां, शटर बंद हैं। मालूम हो कि अमीन नौकरी देने के अलावा प्रसन्ना के साथ संपत्ति खरीदने में भी सीधे तौर पर शामिल है। प्रसन्ना की न्यू टाउन, राजारहाट में कई संपत्तियां हैं।
उल्लेखनीय है कि यह अब्दुल अमीन का साल्टलेक के जीडी 253 स्थित प्रसन्ना राय के कार्यालय में आना जाना लगा रहता था। लेकिन अब अमीन का पता नहीं चल रहा है। प्रसन्ना की गिरफ्तारी के बाद से अब्दुल हमीद ने खुद को अंडर ग्राउंड कर लिया है।
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प्रधानाध्यापक ने जताई अनभिज्ञता
पाथरघाटा स्कूल के प्रधानाध्यापक मृणालकांति महापात्र ने कहा कि अब्दुल अमीन भ्रष्टाचार में लिप्त है, मैं यह कैसे जान सकता हूं? मैं यहां 2006 में प्रधानाध्यापक के रूप में आया था। जब मैं आया तो मैंने उसे पैरा टीचर के रूप में काम करते हुए पाया। तब इस पद की कोई आधिकारिक मान्यता नहीं थी। तब मैंने इस समस्या का समाधान किया। जिसके बाद वर्ष 2007 से उन्हें सरकार द्वारा भुगतान किया जाने लगा। इससे पहले उन्हें दो हजार रुपये मिलते थे।