केंद्र सरकार ने कहा है कि सरकार जनहित में लोगों को कोविड टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित जरूर करती है, लेकिन वैक्सीन लगवाना कानूनी बाध्यता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि किसी पर वैक्सीन के बुरे प्रभाव के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है।
केंद्र सरकार का कहना है कि वैक्सीन के बारे में सारी जानकारी वैक्सीन निर्माताओं और सरकार की ओर से पब्लिक डोमेन पर उपलब्ध है। ऐसे में ये सवाल ही नहीं उठता कि वैक्सीन लगवाने के लिए अपनी सहमति देने वाले को पूरी जानकारी न हो। केंद्र सरकार ने कहा है कि मुआवजे के लिए याचिकाकर्ता सिविल कोर्ट जा सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने दिया सुझाव
दो मई को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की कोविड टीकाकरण नीति को सही ठहराया था। कोर्ट ने कहा था कि यह वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित है, लेकिन किसी को टीका लगवाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि कोविड टीका न लगवाने वाले लोगों को सार्वजनिक सुविधाओं के इस्तेमाल से रोकने के आदेश राज्य सरकारों को हटा लेने चाहिए।
कोरोना के दिशानिर्देशों का बचाव
22 मार्च को तमिलनाडु, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सरकार ने कोरोना वैक्सीन को लेकर जारी किए गए उनके दिशा-निर्देशों का बचाव किया था। सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार की ओर से एएजी अमित आनंद तिवारी ने कहा था कि सार्वजनिक स्थानों पर जाने के लिए कोरोना वैक्सीन अनिवार्य करने के पीछे बड़ा जनहित है ताकि कोरोना का संक्रमण आगे नहीं बढ़े। उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के उस दिशा-निर्देश का हवाला दिया जिसमें राज्यों को सौ फीसदी कोरोना वैक्सीनेशन कराने को कहा गया था। तमिलनाडु सरकार ने कहा था कि कोरोना का वैक्सीनेशन म्युटेशन रोकता है। बिना वैक्सीन लिए लोगों को संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है।
महाराष्ट्र सरकार ने स्पष्ट किया था अपना रुख
महाराष्ट्र सरकार ने कहा था कि राज्य सरकार ने दुकानों, मॉल इत्यादि सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश से पहले वैक्सीन लेना अनिवार्य किया है। राज्य सरकार की ओर से वकील राहुल चिटनिस ने कहा था कि याचिकाकर्ता का ये कहना सही नहीं है कि वैक्सीन अनिवार्य करना संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 का उल्लंघन है। वैक्सीनेशन याचिकाकर्ता के अधिकारों से भी जुड़ा हुआ है क्योंकि ये दूसरों के जीवन को भी प्रभावित करता है। मध्य प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार के रुख का समर्थन करते हुए कहा कि अधिकारों का संतुलन जरूरी है।
इस तरह चली पिछली सुनवाई
नौ अगस्त 2021 को कोर्ट ने कोरोना वैक्सीन के ट्रायल से संबंधित डाटा में पारदर्शिता लाने की मांग पर नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा था कि हम कुछ मुद्दों पर सुनवाई कर रहे हैं। हम नोटिस जारी कर रहे हैं, लेकिन हम टीकाकरण को लेकर लोगों के मन में भ्रम पैदा नहीं करना चाहते हैं। कोर्ट ने कहा था कि देश वैक्सीन की कमी से लड़ रहा है। टीकाकरण जारी रहे और हम इसे रोकना नहीं चाहते हैं। आपको वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर कोई संशय नहीं होना चाहिए। इस याचिका से उन लोगों में भ्रम पैदा होगा जिन्होंने वैक्सीन लगवा रखी है। तब याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जाते तो वैक्सीन को लेकर विश्वास की कमी लोगों के बीच रहेगी।
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याचिका में है क्या?
याचिका नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन के पूर्व सदस्य डॉ. जैकब पुलियेल ने दायर की थी। याचिका में मांग की गई थी कि कोरोना वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल का डाटा सार्वजनिक किया जाए। कोरोना संक्रमण के बाद होने वाले गंभीर प्रभावों का डाटा सार्वजनिक किया जाए। जिन मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ी या जिनकी मौत हो गई उनके आंकड़ों का खुलासा होना चाहिए। कई देशों ने वैक्सीन के बाद के असर के आकलन होने तक वैक्सीन देना बंद कर दिया गया। यहां तक कि डेनमार्क जैसे देश ने एस्ट्रा जेनेका वैक्सीन पर प्रतिबंध लगा दिया। एस्ट्रा जेनेका वैक्सीन का नाम भारत में कोविशील्ड है।