समान नागरिक संहिता की आवश्यकता क्यों? केरल में किसने बनाया चुनावी मुद्दा?

समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग लंबे समय से देश में होती रही है। इसके लिए न्यायालय में याचिका दायर की गई है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर भी मांग की गई है।

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समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा लंबे काल से प्रतीक्षित है। यह 1840 में पहली बार सामने आया था। लेकिन इस पर कभी प्रभावी कदम नहीं उठाया जा सका। अब केरल में यह मु्द्दा उठा है। इसे देश में कार्यान्वित करने के लिए वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने इसे अपने वचन नामा से भी जोड़ा है।

किसी भी राष्ट्र में जब कानून बनता है तो वह समान रूप से सभी नागरिकों पर लागू हो यह उसकी प्रासंगिकता की सिद्धि होती है। लेकिन भारतीय संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयत्न विरोध के कारण पीछे रह गया। हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत समान नागरिक संहिता के रूप में जोड़ा गया लेकिन डायरेक्टिव प्रिंसिपल (नीति निर्देशक तत्व) के रूप में जोड़ा गया। जिसके कारण इसे कानूनी रूप से लागू करना राज्य शासन के निर्णय पर आधारित है।

समान नागरिक संहिता क्या है

  • इसका अर्थ होता है राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के लिए एक कानून हो
  • यह किसी की धर्म, आस्था या जाति पर आधारित नहीं होता

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इसके क्या हैं लाभ

  • समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मियों के लिए एक कानून होगा
  • हिंदू, मुसलमान और ईसाई सभी के लिए एक ही कानून होगा
  • सभी धर्मों के विवाह, विवाह विच्छेद, पैतृक संपत्ति का आधिकार आदि मुद्दों पर यह संहिता लागू होगी।
  • न्यायपालिका पर विभिन्न धर्मों के लिए विभिन्न कानून से पड़ रहे अतिरिक्त बोझ से मुक्ति मिलेगी
  • न्यायालय में लंबित पड़े मामलों के निपटान में इससे सहायता मिलेगी
  • धर्म और कानून दोनों को भिन्नता और स्पष्टता मिलेगी
  • वोट बैंक की राजनीति या ध्रुवीकरण की राजनीति पर रोक लगेगी

वर्तमान परिस्थिति

वर्तमान में देश में अलग-अलग धर्मों के लिए पर्सनल लॉ अलग-अलग हैं।

हिंदू कोड बिल

वर्ष 1951 में तत्कालीन कानून मंत्री डॉ.बीआर आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल पेश किया था। उस समय इसका तीव्र विरोध हुआ, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस बिल को चार भागों में विभक्त कर दिया।

  • हिंदू मैरिज एक्ट
  • हिंदू सक्सेशन एक्ट
  • हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेन्स एक्ट
  • हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जयनशिप एक्ट

इन कानूनों से महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार मिला तथा विभिन्न जातियों को एक दूसरे के साथ विवाह करने का अधिकार मिला। इसके अलावा एक रोक भी इससे लग गई जिसमें कोई भी एक विवाह संबंध में रहते हुए दूसरा विवाह नहीं कर सकता।

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मुस्लिम पर्सनल लॉ

मुस्लिम पर्सनल लॉ को पहली बार मान्यता 1937 में मिली। इसके पीछे अंग्रेज शासन की मंशा थी कि वह भारतीयों पर उनके धार्मिक और सांस्कृतिक नियमों के अधीन शासन करे। इसका कारण यह भी हो सकता है कि, अंग्रेज भारतीय समाज को छिन्न-भिन्न रखना चाहते थे जिससे समाज अपने अधिकारों को लेकर एक दूसरे से अलग बना रहे। इस कानून के अंतर्गत मुस्लिमों के विवाह, विवाह विच्छेद, पैतृक संपत्ति के अधिकार और विवादों का निर्णय आता है।
यह कानून शरीयत से प्रेरित है जिसके अंतर्गत मुस्लिम पुरुष को चार विवाह की मान्यता मिली हुई है।

ईसाई पर्सनल लॉ

  • इस कानून के अंतर्गत विवाहबद्ध जोड़े को तलाक के लिए दो वर्ष अलग रहना आवश्यक है।
  • लड़की का मां की संपत्ति पर अधिकार नहीं

न्यायालय में समान नागरिक संहिता

  • वर्ष 1985 में शाहबानो प्रकरण में दिये गए अपने आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि, अनुच्छेद 44 एक मृत अक्षर बनकर रह गया है। इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार सभी के लिए समान नागरिक संहिता बनाए। समान नागरिक संहिता से विरोधाभासी विचारों वाले कानूनों के प्रति पृथक्करणीय भाव को समाप्त कर राष्ट्रीय अखंडता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहयोग प्राप्त होगा।
  • वर्ष 2017 में एक प्रकरण शायरा बानो का आया था। जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, हम भारत सरकार को निर्देशित करते हैं कि वह उचित विधान बनाने पर विचार करे। हम आशा एवं अपेक्षा करते हैं कि वैश्विक पटल पर और इस्लामिक देशों में शरीयत में हुए सुधारों को ध्यान में रखते हुए एक कानून बनाया जाएगा। जब ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय दंड संहिता के माध्यम से सबके लिए एक कानून लागू किया जा सकता है तो भारत के पीछे रहने का कोई कारण नहीं है।
  • वर्ष 2019 में जोस पाउलो प्रकरण में भी सर्वोच्च न्यायालय समान नागरिक संहिता पर टिप्पणी की थी कि सरकार की ओर से इस संबंध में अभी तक प्रयास नहीं किया गया। न्यायालय ने इसमें गोवा का उदाहरण भी दिया था।
  • 31 मई, 2019 को दिल्ली उच्च न्यायालय में समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग करनेवाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी हुआ था। यह याचिका भाजपा नेता और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है।
  • जनवरी 2021 में भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने एक पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा। जिसमें उन्होंने लिखा था कि समता, समानता, समरसता, समान अवसर तथा समान अधिकार संविधान की आत्मा है। कुछ लोग अनुच्छेद 25 में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के बहाने समान नागरी संहिता का विरोध करते रहे हैं। लेकिन, अनुच्छेद 25 की शुरूआत ही होती है ‘लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य नैतिकता’ से।

केरल में 2021 के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के थ्रिसूर से उम्मीदवार हैं। उन्होंने कहा है कि, यदि आप अपने देश से प्यार करते हैं तो समान नागरिक संहिता को स्वीकार करें।

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