सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने शुक्रवार (12 जुलाई) दिल्ली (Delhi) के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना (Lieutenant Governor V.K. Saxena) की खिंचाई की और कहा, “आपने दिल्ली विकास प्राधिकरण (Delhi Development Authority) की ओर से कोर्ट में याचिका (Petition) लंबित होने के बावजूद बिना किसी परामर्श के संरक्षित क्षेत्र में पेड़ों को काटने की अनुमति कैसे दी।?”
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कोर्ट की अनुमति के बिना पेड़ों को काटने के उपराज्यपाल के कदम पर कड़ी नाराजगी जताई। सर्वोच्च न्यायालय ने सड़क चौड़ीकरण योजना के लिए संरक्षित वन क्षेत्र में 1100 पेड़ों को काटने के लिए डीडीए उपाध्यक्ष के खिलाफ अवमानना कार्यवाही के मामले में स्वत: संज्ञान लिया और सुनवाई की।
सर्वोच्च न्यायालय ने मामले में उपराज्यपाल की संलिप्तता को छिपाने के प्रयासों की भी आलोचना की और कहा कि हमें सुनवाई के पहले दिन ही बताया जाना चाहिए था कि उपराज्यपाल ने पेड़ों को काटने के निर्देश पहले ही जारी कर दिए थे।
जो कुछ भी हो रहा है दुर्भाग्यपूर्ण है
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उपराज्यपाल ने अपनी खुफिया जानकारी का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने माना कि दिल्ली सरकार के पास वृक्ष अधिकारी का अधिकार है। यह दुखद स्थिति है कि जो कुछ भी हो रहा है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें पहले यह दिखाना था कि उपराज्यपाल ने निर्देश जारी किया था। इस बीच पीठ ने उपराज्यपाल से तीखे लहजे में पूछा, क्या आप खुद को कोर्ट मानते हैं? कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि क्या डीडीए अधिकारियों ने उन्हें बताया कि पेड़ों को काटने के लिए शीर्ष अदालत से अनुमति की आवश्यकता है। जस्टिस ओका ने कहा कि मुझे लगता है कि उपराज्यपाल खुद को कोर्ट मान रहे हैं।
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