43 साल पहले मुरादाबाद जिले में ईद की नमाज के बाद भड़के दंगे का सच 8 अगस्त को सामने आ गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दंगे के लिए गठित एक सदस्यीय न्यायिक जांच को रिपोर्ट को मानसून सत्र के दूसरे दिन विधानसभा में सार्वजनिक किया।
योगी ने बताया कि रिपोर्ट में कहा गया कि दंगो में पुलिस, हिंदुओं और आम मुसलमान का कोई हाथ नहीं था। इसमें संघ और भाजपा भी नहीं थी, यह पूर्व नियोजित दंगा था। मुस्लिम लीग व कुछ संगठन इसके लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने यह भी बताया कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मुस्लिम लीग के दो नेताओं ने राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते दंगा हुआ था। मुस्लिम समुदाय में नेताओं को लेकर चल रही खींचतान के चलते दंगा हुआ था। रिपोर्ट के अनुसार ईदगाह और अन्य स्थानों पर गड़बड़ी पैदा करने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी कर्मचारी या हिंदू उत्तरदायी नहीं था।
15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी दंगे की रिपोर्ट को सदन के पटल पर नहीं रख पाया
हैरानी की बात यह है कि 1980 से लेकर 2017 के दरम्यान किसी भी दल की सरकार इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। योगी सरकार ने अब इस रिपोर्ट को सदन में रखा। जिसके बाद दंगे का पूरा सच सामने आ गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने दंगे की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। इस आयोग की रिपोर्ट को 40 साल बाद दो माह पहले कैबिनेट में प्रस्तुत किया गया। कैबिनेट से अनुमोदन के बाद अब रिपोर्ट विधानमंडल में पेश किया गया। करीब 40 साल पहले शासन में रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद भी पूर्ववर्ती सरकारों ने रिपोर्ट को कैबिनेट एवं सदन के पटल पर रखने की अनुमति नहीं दी थी। 1980 से अब तक प्रदेश में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका। इस रिपोर्ट को आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आखिरकार सदन के पटल पर सार्वजनिक कर दिया।
दंगे में 83 लोग मारे गए थे, 112 घायल हुए थे
मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय पथराव और हंगामा हुआ था। इसके बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़कने से 83 लोग मारे गए थे और 112 लोग घायल हुए थे।दरअसल दो समुदायों के बीच हिंसा भड़ने के बाद पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी जिससे लोग मारे गए। इसके बाद मुरादाबाद में करीब एक माह तक कर्फ्यू लगा रहा।
तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने गठित किया था आयोग
वर्ष 1980 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एमपी सक्सेना की अध्यक्षता में दंगे की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया था। मामले की जांच के लिए गठित आयोग ने अपनी रिपोर्ट 20 नवंबर 1983 को शासन को सौंपी थी। सूत्रों के मुताबिक जांच में मुस्लिम लीग के डॉ. शमीम अहमद खां और उनके समर्थकों द्वारा वाल्मीकि समाज, सिख समाज और पंजाबी समाज के लोगों को फंसाने के लिए अपने समर्थकों के साथ घटना को अंजाम दिया जाना सामने आया था।
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आयोग ने डॉ. शमीम अहमद खान को पाया था दोषी
आयोग ने मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शमीम अहमद खान, उनके कुछ समर्थकों और दो अन्य मुस्लिम नेताओं को दंगा भड़काने का दोषी पाया था। उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में भाजपा या आरएसएस जैसे हिंदू संगठनों के हिंसा भड़काने में कोई भूमिका के प्रमाण नहीं मिलने की बात कही थी। आयोग ने पीएसी, पुलिस और जिला प्रशासन को भी आरोपों से मुक्त कर दिया था। आयोग ने जांच में पाया कि ज्यादातर मौतें पुलिस फायरिंग में नहीं, बल्कि भगदड़ से हुई थी। रिपोर्ट में ये भी जिक्र किया गया था कि सियासी दल मुसलमानों को वोट बैंक के रूप में न देखें। सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के दोषी पाए जाने वाले किसी भी संगठन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।