सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को स्वीकार कर लिया है जिसमें आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। यह याचिका एक 94 वर्षीय बुजुर्ग ने दायर की है। जिसमें ये कहा गया है कि 45 वर्ष पहले लगाया गया आपातकाल पूर्णत: असंवैधानिक था। इसके लिए उसे क्षतिपूर्ति के रूप में 25 करोड़ रुपए दिये जाएं।
आपातकाल ‘धोखा’ और बहुत बड़ा ‘हमला’ था। यह बताते हुए 94 वर्षीय याचिकाकर्ता वीरा सरीन के अधिवक्ता हरीष साल्वे ने सर्वोच्च न्यायालय से 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल को असंवैधानिक करार देने की मांग की। इस मामले में जस्टिस संजय किशन कौल, दिनेश माहेश्वरी, हृषिकेश रॉय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि कोर्ट इस मुद्दे के सीमित पहलू को जांचेगी कि इतने लंबे समय के बाद इस तरह की उद्घोषणा को जांचा जा सकता है।
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25 करोड़ रुपए के मुआवजे की है मांग
इस मामले में याचिकाकर्ता वीरा सरीन की उम्र 94 वर्ष है। 45 साल पहले इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाया गया था। जिसमें वीरा सरीन के पति को पकड़ा गया था। इस कार्रवाई में उनके धन-दौलत को सरकार ने जब्त कर लिया था। वृद्धा का आरोप है कि प्रशासन ने उनको और उनके पति को टार्गेट किया था। अकारण हिरासत में लेने के आदेश के कारण उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा।
महिला का आरोप है कि उस काल में सरकारी अधिकारियों ने करोड़ो रुपए की संपत्ति जब्त कर ली। उनके पति को व्यवसाय बंद करके जाना पड़ा। इसके कारण पड़े मानसिक दबाव में उनके पति एचके सरीन की मौत हो गई। तभी से एचके सरीन की विधवा वीरा सरीन अकेले अपने पति के खिलाफ की कार्रवाईयों को लेकर लड़ रही हैं।
एचके सरीन का दिल्ली के करोल बाग में कलाकृति और रत्नों का बड़ा व्यवसाय था। 25 जून 1975 की मध्यरात्रि में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा के बाद एचके सरीन के व्यावसायिक प्रतिष्ठान में छापा मारा गया। उनके सामानों को कस्टम्स एक्ट के अंतर्गत जब्त कर लिया गया।
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हाईकोर्ट के फैसले का दिया हवाला
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिसंबर 2014 में आदेश जारी करके वीरा सरीन के पति के विरुद्ध चल रहे मामलों को बंद करते हुए ये कहा था कि करोड़ो की जब्त की गई संपत्ति को अभी लौटाना है। इसी का हवाला देते हुए वीरा सरीन ने 25 करोड़ रुपए के हर्जाने की मांग की है।
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