Mumbai: डॉ. दाभोलकर और पानसरे हत्याकांड में सनातन संस्था को दोषी ठहराकर ‘बलि का बकरा’ बनाने का प्रयास किया गया। डॉ. दाभोलकर हत्याकांड में 10 मई 2024 को न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय में तीनों को निर्दोष मुक्त किया गया। इनमें हिंदू जनजागृति समिति से संबंधित डॉ. वीरेंद्रसिंह तावड़े, सनातन संस्था के विक्रम भावे, और हिंदू विधिज्ञ परिषद के एड. संजीव पुनालेकर को भी निर्दोष मुक्त किया गया। डॉ. तावड़े को इस प्रकरण में 8 साल नाहक कारागृह में रहना पड़ा, जो उनपर हुआ अन्याय है।
डॉ. तावड़े के विरोध में ‘सीबीआई’ ठोस सबूत दे नहीं सकी, जो और भी बड़ा अन्याय है। विक्रम भावे को 2 साल और एड. संजीव पुनालेकर को 42 दिन कारागृह में रहना पड़ा। इन तीनों के जीवन में हुए व्यक्तिगत नुकसान की भरपाई कौन करेगा? इस प्रकरण में निर्दोष बरी हुए डॉ. तावड़े, भावे और एड. पुनालेकर के निर्दोष जीवन को नष्ट करनेवाले अधिकारियों पर कार्रवाई कब होगी? ‘विवेक का आवाज़’ कहलानेवाली ‘अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ इस बारे में सार्वजनिक माफी मांगेगी ? ऐसा सवाल सनातन संस्था के धर्मप्रचारक अभय वर्तक ने उठाया।
धर्मप्रचारक अभय वर्तक ने दागा सवाल
सनातन संस्था के धर्मप्रचारक अभय वर्तक ने सवाल दागा है कि सनातन संस्था की ओर से ‘अंधश्रद्धा निर्मूलन? … या छुपा अर्बन नक्सलवाद?’ विषय पर दादर (प.) के कित्ते भंडारी सभागृह में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। मुंबई उच्च न्यायालय के अधिवक्ता एड. संजीव पुनालेकर और प्रसिद्ध सर्जन व लेखक डॉ. अमित थडानी ने भी इस अवसर पर मार्गदर्शन किया। इस कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के मान्यवर, अधिवक्ता, हिंदुत्ववादी और धर्मप्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
षड्यंत्र विफल
अभय वर्तक ने आगे कहा, “सनातन संस्था को दोषी ठहराने की अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति और ‘अर्बन नक्सलवादियों’ का षड्यंत्र विफल हो गया। इसी प्रकार सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए अर्बन नक्सलवादियों की ओर से लगातार षड्यंत्र चालू हैं। 11 अगस्त 2012 को मुंबई के आजाद मैदान में धर्मांध मुसलमानों द्वारा की गई दंगों में पुलिस, पत्रकारों पर हमले हुए थे, महिला पुलिसकर्मियों के साथ गलत व्यवहार किया गया। 12 साल बीत गए, फिर भी उन दंगाईयों पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई है, लेकिन इस बारे में कोई बात नहीं करता। ‘मॉर्निंग वॉक’ नहीं निकलती, परंतु ‘हेटस्पीच’ के मामले हिंदुत्ववादी नेताओं पर दर्ज करने के लिए अर्बन नक्सलवादी पूरी तरह सक्रिय हैं। जिनके संगठन का पूर्व नाम ‘मानवीय नास्तिक मंच’ था, वे आज ‘अंधश्रद्धा निर्मूलन’ के नाम से नास्तिकता का प्रचार कर रहे हैं। धर्म न माननेवाली मुहीम से समाज को दूर रहना चाहिए; क्योंकि वह केवल धर्मविरोधी नहीं, अपितु देशविरोधी भी है !”
जनता में फैलाया भ्रम
मुंबई उच्च न्यायालय के अधिवक्ता एड. संजीव पुनालेकर ने कहा, “साम्यवादियों ने स्वयं को विचारक घोषित कर जनता में भ्रम फैलाया है। इससे जनता की सही और गलत के बीच निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है। इस प्रकार की प्रचार से ये नकली नायक बनाते हैं और देश के असली नायकों को ‘खलनायक’ के रूप में प्रस्तुत करते हैं। निखिल वागले, असीम सरोदे, विश्वंभर चौधरी आदि इसके प्रमुख हैं। कुछ गैर सरकारी संगठन साम्यवादियों को इसके लिए धन प्रदान कर रहे हैं। इसमें हिंदी फिल्म उद्योग, कुछ पत्रकार, पुलिस का भी सहयोग है। झूठ और दबाव डालकर ये लोग न्यायप्रणाली पर दबाव बनाते हैं। इसके लिए हिंदुओं को भी अपनी ‘इकोसिस्टम’ बनानी होगी। हिंदुत्ववादी पत्रकार, अधिवक्ता, राज्यकर्ता को इस हिंदू विरोधी षडयंत्र के विरोध एकजुट होकर काम करना चाहिए। साम्यवादी ‘वॉट्सएप यूनिवर्सिटी’ का नाम लेकर चिल्लाते हैं, लेकिन ‘फेक नैरेटिव’ के द्वारा वे ही मीडिया का उपयोग करके समाज में झूठी जानकारी फैला रहे हैं। जनता को इस बारे में सचेत रहना चाहिए।”
हमले से जुड़े थे कई पहलु
प्रसिद्ध सर्जन और लेखक डॉ. अमित थडानी ने कहा, “डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या को 11 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन इन वर्षों में यह मामला पूरी तरह से गलत तरीके से चलाया गया। डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या में आर्थिक घोटाला, कुछ लोगों के साथ पुराना विवाद या उन पर पहले हुए हमले जैसे कई पहलू थे; लेकिन जांच केवल एक ही दिशा में की गई। हिंदुत्ववादी संगठनों को आरोपी बनाने के लिए ही डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की जांच की गई। हिंदुत्ववादी संगठनों को बदनाम करने के लिए डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या का परीक्षण किया गया। जांच एजेंसियों ने आरोपियों के खिलाफ झूठे सबूत प्रस्तुत किए। इसके बारे में मैंने ‘दाभोलकर-पानसरे हत्या: जांच के रहस्य?’ यह पुस्तक लिखी है।”