Punjab: किसान आंदोलन… जब खुद पे आई, तो कर दी कार्रवाई

पंजाब-हरियाणा सीमा पर एक वर्ष से अधिक समय तक दो प्रमुख रास्तों को रोककर धरना दे रहे किसानों को जबरन हटाकर पंजाब सरकार ने वही किया, जो उसे बहुत पहले करना चाहिए था।

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पंजाब (Punjab) की आम आदमी पार्टी सरकार (Aam Aadmi Party Government) को किसान आंदोलन (Farmers Movement) महंगा पड़ा। 13 महीने में किसानों के आंदोलन से अकेले पंजाब को 1.25 लाख करोड़ की चपत लग गई। पंजाब में किसान आंदोलन के कारण सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ, व्यापारियों को व्यापार में घाटा होने लगा तो पंजाब पुलिस (Punjab Police) ने किसानों के तंबू और अस्थाई टेंट उखाड़ दिए और किसान नेताओं (Farmers Leaders) की गिरफ्तारी (Arrest) की।

पहले किया समर्थन
पहले दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर किसान यूनियन के आंदोलन को तत्कालीन दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने पूरा समर्थन दिया और ‌आंदोलनकारी किसानों की पूरी मदद की। लेकिन आम आदमी पार्टी को किसान आंदोलन की सच्चाई का पता तब चला, जब किसानों ने पंजाब में अपनी मांगों को लेकर पक्का मोर्चा लगा दिया। उसके बाद पंजाब की मान सरकार ने  पुलिस को सख्त आदेश दिया और पुलिस के पास नेशनल हाईवे को खुलवाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा था।

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13 महीनों से जारी था आंदोलन
-किसानों ने 13 फरवरी 2024 को एमएसपी सहित 12 प्रमुख मांगों को लेकर शंभू और खनौरी बॉर्डर पर धरना शुरू किया था।

-21 फरवरी 2024 को किसानों ने धरना -प्रदर्शन देने के लिए दिल्ली जाने की कोशिश की लेकिन बठिंडा के किसान शुभकरण की इस दौरान मौत हो गई।

-ये मामला 10 मार्च 2024 को पंजाब और हरियाणा हाई- कोर्ट में पहुंचा।

-इस बीच 16 मार्च 2024 को देश में आम चुनाव के लिए आचार संहिता लागू हो गई लेकिन किसानों ने बार्डर पर पक्का मोर्चा जारी रखा।

-1 अप्रैल 2024 को शुभकरण की मौत का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और इस मुद्दे पर सुनवाई शुरू हुई। ‌

-17 अप्रैल 2024 को किसानों ने अपनी मांगों को लेकर पंजाब में रेलवे ट्रैक जाम कर दिया।

-किसान 20 मई 2024 को रेलवे लाइनों से तो हट गए लेकिन बॉर्डर पर उनका पक्का मोर्चा जारी रखा।

-10 जुलाई 2024 को पंजाब -हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को शंभू बॉर्डर सप्ताह में एक दिन खोलने के आदेश दिए। लेकिन केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया कि किसानों के साथ बातचीत चंडीगढ़ में ही की जाएगी ।

-मोदी सरकार के मंत्रियों ने किसान संगठनों के साथ कई बैठकें करके उनकी मांगों को सहानुभूति से सुना लेकिन 19 मार्च 2025 को केंद्र सरकार के साथ चंडीगढ़ में सातवीं बार वार्ता कर लौट रहे किसान यूनियन के नेताओं को पंजाब पुलिस ने हिरासत में ले लिया।

-पंजाब पुलिस ने राज्य भर में प्रदर्शन कर रहे 1300 से ज्यादा किसानों को हिरासत में लिया है।

जब अपने पर आई तो कर दी कार्रवाई
पंजाब-हरियाणा सीमा पर एक वर्ष से अधिक समय तक दो प्रमुख रास्तों को रोककर धरना दे रहे किसानों को जबरन हटाकर पंजाब सरकार ने वही किया, जो उसे बहुत पहले करना चाहिए था। किसान नेता सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद भी अपना आंदोलन खत्म करने के लिए तैयार नहीं थे। ‌ जब आम आदमी पार्टी की सरकार को किसानों के आंदोलन के कारण आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा तो मान सरकार के पास रास्ते खाली कराने के अलावा और कोई उपाय नहीं रह गया था। यह वही आम आदमी पार्टी है, जिसने एक समय कृषि कानून के विरोध में जबरन दिल्ली में बैठे किसानों का हर तरह से समर्थन किया था। ‌ लेकिन पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार को अब राजधर्म समझ में आया ।

केंद्र सरकार का सकारात्मक रुख
केंद्र सरकार बार-बार कह रही है कि फसलों की एमएसपी कानून बनाना संभव नहीं और यदि उनके दबाव में वह बना भी दिया जाए तो उसके दुष्परिणाम किसानों को ही भुगतने पड़ेंगे । किसान नेताओं के पास ऐसे सवालों का कोई जवाब नहीं कि यदि व्यापारी एमएसपी पर खरीद से पीछे हट जाते हैं तो क्या होगा ? इस पर हैरानी नहीं की किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच सातवें दौर की वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई लेकिन केंद्र सरकार किसान संगठनों के साथ बातचीत जारी रख रही है । पंजाब सरकार की ओर से किसान संगठनों को सड़क से हटा देने से किसान नेताओं में आम आदमी पार्टी के खिलाफ नाराजगी है । अब सवाल यह है कि क्या इन नाराज किसानों का केंद्र सरकार को राजनीतिक लाभ होगा।

देखें यह वीडियो – 

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