केंद्र सरकार ने हज कोटे में वीआईपी कोटे को समाप्त कर दिया। इसके अंतर्गत जो 500 सीटें तय की गई थी, उसका कोटा समाप्त कर दिया गया है। धार्मिक स्थल पर जाने के लिए छूट या वीआईपी कोटा के अंतर्गत सुविधाएं अब तक इस्लाम को छोड़ दें तो किसी भी धर्म के लोगों को नहीं दी जाती थी। इससे अब लोगों में चर्चा है कि क्या समान नागरी अधिकार में हो गया हज के वीआईपी कोटे का कार्यक्रम?
प्रतिवर्ष भारत से हज यात्रा के लिए इस्लाम धर्मीय जाते हैं। उनको सुविधा के रूप में कई तरह की छूट और सब्सिडी दी जाती रही है। लेकिन, कालांतर में इनमें कमी होती गई, जबकि वीआईपी कोटा चलता रहा। अब इसको लेकर सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है, जिसके अंतर्गत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अल्पसंख्यक कार्य मंत्री समेत विभिन्न पदासीन लोगों को आबंटित किये गए हज के वीआईपी कोटे को समाप्त कर दिया गया है।
कैसे शुरू हुआ हज कोटा (आरक्षित स्थान)?
हज कोटे की शुरुआत वर्ष 2012 में हुई। इसके लिए 500 लोगों का कोटा निश्चित किया गया था। इसमें विभिन्न पदों पर आसीन व्यक्तियों को कोटा दिया गया था।
- राष्ट्रपति 100
- उपराष्ट्रपति 75
- प्रधानमंत्री 75
- अल्पसंख्यक कार्यमंत्री 50
- हज कमेटी सदस्य/पदाधिकारी 200
केंद्र सरकार के नए नियमों के अनुसार अब हज कोटा समाप्त कर दिया गया है। जबकि दूसरी ओर तीन वर्षों के कोरोना प्रतिबंधों के बाद सऊदी अरब ने भी हज यात्रियों के लिए पूर्ण मुक्त कर दिया है।
समान नागरी अधिकार में हज यात्रा
हज यात्रा को छोड़ दें तो किसी भी धर्म के लोगों को धार्मिक स्थल पर जाने के लिए किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं मिलती थी। सिखों को पाकिस्तान में स्थित करतारपुर जाने के लिए कोई सुविधा भारत सरकार से नहीं मिलती है, उसी प्रकार कैलाश मानसरोवर जैसी खर्चीली यात्रा के लिए हिंदुओं को कोई सुविधा नहीं दी जाती है। अब उसी कतार में हज यात्रा भी आ गई है।