ज्ञानवापी शृंगार गौरी प्रकरण में 30 मई को कड़ी सुरक्षा के बीच वाराणसी के जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में सुनवाई हुई। सर्वोच्च न्यायालय आदेश के बाद जिला अदालत याचिका की पोषणीयता (याचिका सुनने योग्य है या नहीं) पर विचार कर रही है। अदालत ने प्रतिवादी पक्ष की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई की अगली तारीख 04 जुलाई को मुकर्रर की।
इसके पहले प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से मुकदमें को खारिज करने के पक्ष में दलीलें पेश की गईं। प्रतिवादी पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर के अंदर सर्वे के दौरान मिले शिवलिंगनुमा आकृति और उनकी पूजा करने के दावे पर आपत्ति जताई। सुनवाई के दौरान प्रतिवादी पक्ष ने वर्ष 1937 के दीन मोहम्मद बनाम राज्य सचिव के मुकदमे का निर्णय पढ़ा और कहा कि अदालत ने मौखिक गवाही एवं दस्तावेजों के आधार पर फैसला किया था कि यह पूरा परिसर (ज्ञानवापी मस्जिद परिसर) मुस्लिम वक्फ का है। मुसलमानों को इसमें नमाज अदा करने का अधिकार है। प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता अभयनाथ यादव ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है।
इस दौरान वादी पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन भी मौजूद रहे। बताया गया कि मसाजिद कमेटी की ओर से इस मामले को खारिज करने के पक्ष में दलीलें भी पूरी नहीं हुई हैं। अगली सुनवाई में दलीलें पूरी होने के बाद वादी पक्ष और जिला शासकीय अधिवक्ता पक्ष रखेंगे।
उल्लेखनीय है कि 18 अगस्त 2021 को दिल्ली की राखी सिंह सहित पांच महिलाओं ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में याचिका दायर कर ज्ञानवापी परिसर स्थित शृंगार गौरी सहित अन्य विग्रहों के पूजन के अधिकार की मांग की थी। अदालत के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर में एडवोकेट कमीश्नर की कार्यवाही हुई, जिसकी रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल है। वहीं, प्रतिवादी पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से मूल वाद की मेरिट पर सुनवाई और सर्वे को रोकने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने मेरिट पर सुनवाई से इनकार करते हुए मुकदमे को जिला जज की अदालत में स्थानांतरित कर दिया था। इसके बाद जिला जज की अदालत में 26 मई और आज सुनवाई हुई।
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