हिजाब प्रकरण: आखिर अलग दिखने की जिद क्यों?

भारत में कहीं भी हिजाब अथवा बुर्का पहनने पर प्रतिबंध नहीं है, परन्तु जिन संस्थानों में ड्रेस कोड लागू है, वहां हिजाब पहनने की जिद क्यों की जा रही है?

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भारत लोकतांत्रिक देश है। यहां सभी धर्म और संप्रदाय के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं। सभी को अपने-अपने धर्म के अनुसार धार्मिक कार्य करने एवं जीवनयापन करने का अधिकार है। बावजूद इसके कुछ अलगाववादी शक्तियों के कारण देश में किसी न किसी बात को लेकर प्राय: विवाद होते रहते हैं। इन विवादों के कारण शांति भंग होती है। लोगों में मनमुटाव बढ़ता है। ताजा उदाहरण हिजाब प्रकरण है। कर्नाटक के उडुपी से प्रारंभ हुआ हिजाब प्रकरण थमने का नाम ही नहीं ले रहा।

हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती
कर्नाटक उच्च न्यायलय के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिए जाने के पश्चात यह मामला अब सर्वोच्च न्यायलय पहुंच गया है। कर्नाटक उच्च न्यायलय का कहना है कि छात्राओं को शिक्षण संस्थानों में हिजाब नहीं, यूनिफॉर्म पहननी होगी। हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है। राज्य के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवादगी ने कर्नाटक हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ के सामने सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है और इसके उपयोग पर रोक लगाना संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं है। हिजाब धर्म के पालन के अधिकार के अंतर्गत दिखावे का भाग है। एडवोकेट जनरल ने कहा कि सरकार का आदेश संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन भी नहीं करत। यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। यूनिफॉर्म के बारे में सरकार का आदेश पूरी तरह शिक्षा के अधिकार कानून के अनुरूप है और इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है।

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संविधान की उस भावना के विरुद्ध
विशेष बात यह भी है कि उच्च न्यायालय ने पर्दा प्रथा पर भीमराव आंबेडकर की टिप्पणी का भी का उल्लेख करते हुए कहा- “पर्दा, हिजाब जैसी चीजें किसी भी समुदाय में हों तो उस पर बहस हो सकती है। इससे महिलाओं की आजादी प्रभावित होती है। यह संविधान की उस भावना के विरुद्ध है, जो सभी को समान अवसर प्रदान करने, सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने और पॉजिटिव सेक्युलरिज्म की बात करती है।“

कुप्रथाओं के विरोध में जनजागरण आंदोलन
भारत में व्याप्त अनेक कुप्रथाओं ने महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित रखा है। पर्दा प्रथा भी उनमें से एक है। इस प्रथा के कारण महिलाओं को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ा। उन्हें घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया गया। पुनर्जागरण के युग में समाज सुधारकों ने इन कुप्रथाओं के विरोध में जनजागरण आंदोलन किया। इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। समय के साथ-साथ समाज में परिवर्तन आया। हिन्दू व अन्य समुदायों के साथ-साथ मुसलमान भी अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने लगे, परन्तु उनका अनुपात अन्य समुदायों की तुलना में बहुत ही कम है। यह चिंता का विषय है। देश में सबको समान रूप से अधिकार दिए गए हैं। शिक्षण संस्थानों में भी सबके साथ समानता का व्यवहार किया जाता है। प्रश्न यह है कि कुछ लोग स्वयं को दूसरों से पृथक क्यों रखना चाहते हैं?

हिजाब प्रकरण मुस्लिम समाज की लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने का बड़ा षड्यंत्र
वास्तव में हिजाब प्रकरण मुस्लिम समाज की लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने का बड़ा षड्यंत्र है। चूंकि शिक्षा ही मनुष्य को अज्ञानता के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाती है, इसलिए रूढ़िवादी मानसिकता के लोग महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखने के लिए ऐसे षड्यंत्र रचते रहते हैं, ताकि वे अपने अधिकारों के लिए आवाज न उठा सकें। मुस्लिम समाज में महिलाओं की जो स्थिति है, वह किसी से छिपी नहीं है। जब मुस्लिम बहन-बेटियों के हक में भाजपा सरकार ‘तीन तलाक’ पर रोक लगाने का कानून लाई तो शिक्षित और जागरूक मुस्लिम महिलाओं ने इसका खुले दिल से स्वागत किया था। तब भी रूढ़िवादी लोगों ने जमकर इसका विरोध किया। परन्तु उनकी एक न चली। इस कानून ने मुस्लिम महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाया है। अब कोई भी व्यक्ति ‘तीन तलाक’ कहकर अपनी बीवी को घर से नहीं निकाल सकता। ऐसा करने पर दंड का प्रावधान है।

बुर्का पहनने पर आंशिक या पूर्ण रूप से प्रतिबंध
यूरोप के अनेक देशों में हिजाब अर्थात बुर्का पहनने पर आंशिक या पूर्ण रूप से प्रतिबंध है। इनमें ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड एवं स्विट्जरलैंड आदि हैं। इटली और श्रीलंका में भी बुर्का पहनने पर प्रतिबंध है। इन सभी देशों में आदेश का उल्लंघन करने पर भारी आर्थिक दंड का प्रावधान है। कुछ लोग हिजाब प्रकरण में कुरआन की दुहाई देते हैं। वह तर्क देते हैं कि इसमें कई स्थानों पर हिजाब का उल्लेख है, परन्तु वे इस बात पर चुप्पी साध लेते हैं कि ड्रेस कोड के संदर्भ में ऐसा कुछ नहीं कहा गया। इस्लाम के पांच मूलभूत सिद्धांतों में भी हिजाब सम्मिलित नहीं है। वास्तव में धर्म का संबंध आस्था एवं विश्वास से होता है, जबकि वस्त्रों का संबंध क्षेत्र विशेष एवं आवश्यकताओं से होता है। उदाहरण के लिए किसी भी ठंडे स्थान पर रहने वाले लोग जो भारी भरकम गर्म वस्त्र पहनते हैं, वे किसी गर्म क्षेत्र में रहने वाले लोग नहीं पहन सकते। महत्वपूर्ण यह है कि भारत में कहीं भी हिजाब अथवा बुर्का पहनने पर प्रतिबंध नहीं है, परन्तु जिन संस्थानों में ड्रेस कोड लागू है, वहां हिजाब पहनने की जिद क्यों की जा रही है ?

(लेखक – डॉ. सौरभ मालवीय, स्वतंत्र टिप्पणीकार)

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