प्रशासनिक सख्ती का प्रतीक बने बुलडोजर!

चुनावी अभियान के दौरान लोगों को डराने के लिए जहां बुलडोजर बाबा का इस्तेमाल किया गया, वहीं बुलडोजर बाबा के लिए यह प्रचार का माध्यम बन गया।

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उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम में बुलडोजर का कितना असर रहा यह तो चुनाव विश्लेषकों के लिए चिंतन का विषय हो सकता है पर इसमें दो राय नहीं कि यूपी के चुनाव अभियान से लेकर चुनाव परिणाम और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के विजय जश्न में बुलडोजर जम कर चला। बुलडोजर सरकार को बनाए रखने का प्रतीक बन गया। दरअसल बुलडोजर का उपयोग निर्माण कार्य को आसान बनाने के लिए है पर अवैध निर्माणों को रोकने के लिए जिस तरह से बुलडोजर का उपयोग किया जाता रहा है वह भी कम चर्चा में नहीं रहा है।

देखा जाए तो बुलडोजर व्यवस्था का प्रतीक बन चुका है। व्यवस्था बनाए रखने के लिए सख्ती का प्रयोग ही बुलडोजर के मायने माने जाने लगे है। यही कोई एक दशक पहले की बात होगी जब मुंबई के तत्कालीन अधिकारी जीआर खैरनार समूचे देश में लोगों की जुबान पर चढ़ गए थे। बुलडोजर ही इसका कारण था। जिस तरह से खैरनार ने मुंबई में अवैध इमारतों और अतिक्रमणों को ध्वस्त किया, वह ना केवल चर्चा का विषय बना अपितु बुलडोजर के उपयोग का ही परिणाम रहा कि सारी दुनिया में जीआर खैरनार को ईमानदारी, किसी भी दबाव में नहीं आने और व्यवस्था में सुधार का प्रतीक बना दिया था।

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योगी बाबा से बुलडोजर बाबा बने योगी आदित्यनाथ 
उत्तर प्रदेश में भी कब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ योगी बाबा से बुलडोजर बाबा बन गए यह सबके सामने है। पक्ष हो या विपक्ष दोनों ने ही यूपी चुनाव अभियान के दौरान योगी आदित्यनाथ के लिए बुलडोजर बाबा का प्रतीक जमकर प्रयोग किया। समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव जब योगी आदित्यनाथ के लिए बुलडोजर बाबा शब्द का प्रयोग करने लगे तब शायद उन्होंने यह सोचा भी नहीं होगा कि बुलडोजर बाबा कहना चुनाव में गेमचेंजर बन जाएगा। उन्होंने तो इसके माध्यम से योगी की नकारात्मक छवि बनाने के प्रयास किए थे पर दरअसल जहां अखिलेश आदि ने बुलडोजर को विनाश व भय का प्रतीक बताया, वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुलडोजर को विकास का प्रतीक बताकर खूब भुनाया। कहना नहीं होगा कि बुलडोजर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की चुनाव कैंपेनिंग का माध्यम बन गया। योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनते ही जिस तरह अवैध अतिक्रमण को हटाने का अभियान चलाया त्यों-त्यों बुलडोजर विकास और भय दोनों का प्रतीक बनता गया। देखा जाए तो बुलडोजर प्रशासन की सख्ती और स्वच्छ प्रशासन के रूप में जाना जाता रहा है।

बुलडोजर का प्रयोग ताकत के रूप में किया जाने लगा इस्तेमाल
1923 में पेन्सिलवेनिया के दो किसानों ने खेती किसानी को आसान बनाने के लिए एक डिजाइन तैयार किया और वह लगभग बुलडोजर के विकास का माध्यम बना। हालांकि 1870 में बुलडोजर का प्रयोग ताकत के रूप में इस्तेमाल किया जाता था पर समय के साथ जिस तरह विकास यात्रा चली, बुलडोजर निर्माण कार्यों की अहम मशीनरी बनकर सामने आया। खुदाई-भराई, तोड़-फोड आदि का काम बुलडोजर से आसान हो गया। इससे निर्माण कार्य आसान हो गए। कई दिनों और कई श्रमिकों से होने वाले काम आसानी से कुछ घंटों में होने लगे। बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स में बुलडोजर की अहम आवश्यकता होने लगी।

बैरकों को तोड़ने में बुलडोजर का ही किया गया उपयोग 
यूपी चुनाव से इतर भी देखा जाए तो बुलडोजर का प्रयोग दुनिया के देशों में होता रहा है। सही मायने में देखा जाए तो बुलडोजर की ताकत को देखते हुए ही बुलडोजर शब्द का प्रयोग धमकी के रूप में किया जाता रहा है। याद होगा कि इराक के खुमैनी की सरकार को अपदस्थ करते समय और खासतौर से बैरकों को तोड़ने में बुलडोजर का ही उपयोग किया गया। ओसामा बिन लादेन के मकान पर भी अमेरिका ने बुलडोजर ही चलाया। जहां तक हमारे देश की बात करें तो मुंबई के खैरनार के उदाहरण के अलावा राजस्थान में जयपुर में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी मंजीत सिंह, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबूलाल गौड़, प्रशासनिक अधिकारी बाबा हरदेव आदि प्रसिद्धि पा चुके हैं। किरण बेदी को तो क्रेन से प्रसिद्धि मिली।

130 बुलडोजर मशीनें प्रतिदिन तैयार
दरअसल अब बुलडोजर का उपयोग भी बढ़ा है। देश में करीब एक लाख मशीनें सालाना इस तरह की तैयार हो रही हैं। भारत में जेसीबी कंपनी 130 बुलडोजर मशीनें प्रतिदिन तैयार कर रही हैं। सेना सहित अलग-अलग क्षेत्रों में आवश्यक बदलाव के साथ इसका उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। अब तो कहीं भी नया काम चल रहा हो या कहीं पुराने को ध्वस्त किया जाना हो तो बुलडोजर, जिसका एक रूप जेसीबी मशीन भी है, आसानी से देखने को मिल जाएगी। ऐसे में बुलडोजर किसी पहचान का मोहताज नहीं है। चुनावी अभियान के दौरान लोगों को डराने के लिए जहां बुलडोजर बाबा का इस्तेमाल किया गया वहीं बुलडोजर बाबा के लिए यह प्रचार का माध्यम बन गया।

प्रतीक बन गए गेमचेंजर
कहने का अर्थ यह है कि प्रतीक भी कई बार गेमचेंजर बनकर उभरते हैं और इन प्रतीकों के उपयोग से नकारात्मक और सकारात्मक असर तेजी से फैलता है। बुलडोजर भी इसी तरह का प्रतीक रहा है। यह उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम से साफ हो गया है। इसीलिए कहा जाता है कि प्रतीकों के दूरगामी परिणाम होते हैं और इनके अभियान के रूप में उपयोग से पहले गंभीर चिंतन आवश्यक है।

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