देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को देश में सांप्रदायिक वैमनस्य के लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार ठहराया है। यहां तक कि उदयपुर में जिन दो जिहादियों ने कन्हैया कुमार का गला रेता, उसके लिए भी नूपुर के बयान को जिम्मेदार ठहराया है। अदालत की प्रक्रिया और निर्णय का सम्मान हर नागरिक का कर्तव्य है। इस नाते यह मान लिया जाए कि भाजपा की पूर्व प्रवक्ता ने एक खास मजहब के रसूल के लिए अभद्र टिप्पणी कर देश का माहौल बिगाड़ दिया और उसी के कारण हर जगह फसाद हो रहे हैं, क्योंकि उस मजहब के मानने वालों के लिए उनके रसूल के खिलाफ बोलना सिर तन से जुदा होने का हकदार होना है। अदालत की बात को यहीं छोड़ते हैं। बात करते हैं विभिन्न संप्रदायों के कथित जानकारों, ठेकेदारों, नेताओं और उनके अनुयायियों के व्यवहार और बयानों की। फिर तय करते हैं कि किसने किस संप्रदाय या मजहब का कितना सम्मान किया और कितना अपमान किया। और उस सम्मान और अपमान को किस समुदाय ने कितना सहा और किसने किस तरह से प्रतिकार किया। किस समाज या संप्रदाय ने कितनी हिंसक और कितनी अहिंसक प्रतिक्रिया दी। 26 मई को नूपुर शर्मा ने एक टीवी बहस के दौरान पैगंबर मोहम्मद के लिखाफ कथित टिप्पणी की थी। 27 मई को एक ऑनलाइन पोर्टल का सह स्वामी इस मामले को एक ट्वीट के जरिए उठाता है। इस ट्वीट पर देश के कथित लिबरल और अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम बिरादरी उठ खड़ी होती है। 29 मई को रजा अकादमी मुंबई की शिकायत पर महाराष्ट्र पुलिस नूपुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लेती है। उसके तुंरत बाद से नूपुर को फोन पर सिर तन से जुदा करने से लेकर बलात्कार की धमकियां मिलनी शुरू हो जाती है। नूपुर शर्मा महिला आयोग से इसकी शिकायत करती हैं। 28 मई को दिल्ली पुलिस के पास सैकड़ों ई-मेल और आवेदन आते हैं कि मुकदमा दर्ज कर नूपुर को गिरफ्तार किया जाए और एफआईआर दर्ज भी हो जाती है। 01 जून को एआईएमआईएम के नेता असुद्दीन ओवैसी के कहने पर हैदराबाद में भी नूपुर शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज होती है।
नूपुर शर्मा 5 जून को अपने वक्तव्य पर माफी मांगती हैं। उसके बावजूद भाजपा उसे निलंबित कर देती है। लिबरल्स और कानून इसे नाकाफी समझता है। समझने की जरूरत है कि जो लोग देश में असहिष्णुता का माहौल कह कर भारत की छवि एक कट्टर देश के रूप में बनाने में लगे हैं वे नूपुर शर्मा के प्रति कितने सहिष्णु हैं और कितने उदार। औरंगाबाद से ओवैसी के सांसद इम्तियाज जलील की उदारता देखिए। कहते हैं- इस्लाम शांति का मजहब है, लेकिन लोग गुस्से में हैं, इसलिए मांग करता हूं कि नूपुर शर्मा को फांसी दे देनी चाहिए। क्या किसी ने बैरिस्टर ओवैसी से पूछा कि उन्होंने इम्तियाज का क्या किया। कुछ बेहूदे लोग प्रचार कर रहे हैं कि कांग्रेस शासित राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल का गला धड़ से अलग कर देने वाले भाजपा की हेट की राजनीति की उपज हैं। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री और आरएसएस को इस हत्याकांड के लिए जिम्मेदार बता दिया लेकिन खुद को कांग्रेस का समर्थक कहलाने वाली ज्योत्सना धनकड़ गुलिया के नूपुर शर्मा के बारे में इस ट्वीट पर कि ये रांड (नूपुर शर्मा) मर जाती इससे अच्छा तो, पर किसी कांग्रेस के नेता के मन में भारत की सभ्यता नहीं जगी। यही ज्योत्सना पहले से ही प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और केंद्रीय मंत्री स्मृति के बारे में खुलेआम गालियां देती रही है।
किसी ने किसी कोर्ट को नहीं बताया कि पैगंबर की तौहीन जिस तारीख को नूपुर ने की, उसके महीने भर पहले से रोज ही किसी न किसी द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में मिले कथित शिवलिंग के आकार को लेकर सरेआम मीडिया पर मजाक उड़ाया गया। ओवैसी के ही एक नेता सरेआम टीवी पर यह कहते सुनाई दिए कि ज्ञापवापी से जो शिवलिंग मिला है बताओ किसी पुरुष या महापुरुष के लिंग का घाट ऐसा होता है। किसी सलमान हिंगवाने ने मसाला कूटने वाले पत्थर के खल मूसल की तस्वीर शेयर करते हुए कटाक्ष किया- आज मैं बाजार आया हूं इसे खरीदने, देख लो यह मिर्च मसाला कूटने वाली ओखली ही है ना। कहीं बाद में मेरे घर पर कब्जा न हो जाए। कवीश मिक्सी दिखाकर कर पोस्ट करती हैं- अम्मा कहती हैं इसे छुपा लो। एक मोहम्मद सैफुद्दीन सड़क के किनारे काले पत्थर की लगी रेलिंग का फोटो डाल कर कहते हैं- अगर यह सब हिंदुस्तान (आशय हिंदू राज्य से) में होता तो वाजिब उल मंदिर हो जाता। अंधभक्ति की कोई सीमा होती है। हर चीज में शिवलिंग ही तुम्हें दिखता है। एक शादाब चौहान इसी तरह की सफेद पत्थर की रेलिंग को दिखा कर कहते हैं- जज साब कैन सील दिस एरिया, व्हेन समऑन क्लेम इट एज शिवलिंग। ऐसे हजारों पोस्ट ज्ञानव्यापी के नाम मिले जाएंगे। क्या वे कहीं से भाईचारा बिगाड़ने के जिम्मेदार नहीं हैं।
भाईचारा कौन कितना बढ़ाता है और कितना बिगाड़ता है इसकी एक नहीं कई बानगी हैं। उदाहरण जाहिलों के नहीं, पढ़े-लिखों के भी हैं। देश में मुस्लिमों को दबाने और भाजपा के शासनकाल में भेदभाव होने का सबसे ज्यादा आरोप लगाने वाले मुस्लिम नेता ओवैसी और उनके भाई का भाषण क्या नहीं सुना किसी ने। औरंगाबाद का एक मौलवी सितंबर 2019 में अपनी तकरीर में कहता है कि मुसलमानों के लिए किसी और धर्म के लिए विश करना या उनका बनाया खास खाना भी हराम है। उत्तर प्रदेश का मौलाना जरजिस अंसारी खुले मंच से कहता है कि भगवान कृष्ण भी इस्लाम के समर्थक थे। उन्होंने अर्जुन को पांच वक्त की नमाज पढ़ने का हुक्म दिया था। यही मौलवी प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को ललकारते हुए कहता है कि हम मुसलमान भारत से नहीं भागेंगे, भागोगे तुम। फिर कहता है कि हमारे पास विकल्प जेहाद का है- मुसलमान तलवार उठाएगा।
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आज नूपुर को कहा जा रहा है कि उसके कारण देश की एकता खतरे में पड़ गई है। क्या कोई दो साल पहले जनवरी 2020 में शाहीन बाग का धरना और वहां का भाषण याद करना चाहेगा, जहां कहा गया था कि यदि मुसलमानों को अपनी बात कहने और मनवाने का हक नहीं मिलता तो मुसलमान आइडिया ऑफ इंडिया को रिजेक्ट कर देंगे। क्या यूपी के बड़े नेता आजम खान से कोई पूछेगा कि उन्होंने सेना को हिंदू-मुसलमान में बांट कर यह क्यों कहा कि कारगिल में हिंदू सैनिकों ने नहीं मुसलमान सैनिकों ने भारत को जीत दिलाई। क्या कोई ओवैसी से पूछेगा कि उन्होंने हिंदुओं को बच्चा पैदा करने की शक्ति को लेकर यह क्यों कहा- ‘माशा अल्लाह हमारी जनसंख्या पर आरएसएस परेशान है। विश्व हिूंदू परिषद की धर्म संसद में कहा गया कि चार- चार बच्चा पैदा करो। खुद एक भी पैदा नहीं करते। अच्छा नहीं कर सकते तो औरंगाबाद में एक पान की दुकान है, सारा पान शाॅप। सारा का पान खाओ और टन टना फायदा होगा।’ ओवैसी इसी तरह से भाईचारा बढ़ाते हैं। वे किसी की भावना को ठेस नहीं पहुंचाते। कौन भूल गया अकबरूद्दीन ओवैसी की वह बात कि मुसलमान 25 करोड़ हैं और हिंदू 100 करोड़। 15 मिनट के लिए पुलिस को हटा लो बता देंगे किसमें हिम्मत है।
तीन जून को तमिलनाडु में डीवीके, वीसीके और सीपीआई एक जुलूस निकालकर भगवान कृष्ण को रेपिस्ट बताते हैं और भगवान अयप्पा की पूजा का मजाक उड़ाते हैं और वहां की डीएमके की सरकार कुछ नहीं करती। कोई अदालत इसका संज्ञान लेती है क्या? नहीं लेती। तो हमारे बुद्धिजीवियों की तरह अदालत भी मानती है कि दूसरे मजहब, पूजा पद्धति या पीर पैगम्बर के प्रति सम्मान या संयम सिर्फ हिंदुओं को रखना है, बाकी सभी को हिंदुत्व या हिंदू देवी-देवताओं के प्रति असहिष्णु होने और अपमान करने का अधिकार है।
बिक्रम उपाध्याय
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)