Savarkar Mukti Centenary Day: अगर हम 100 साल पहले की गई गलती से नहीं बचेंगे तो 1947 का विभाजन (Partition) 2047 में दोहराया जाएगा। 1947 में पाकिस्तान और बांग्लादेश (Pakistan and Bangladesh) के हिंदुओं के पास भारत (India) था। इसकी गंभीरता को समझें कि यदि 2047 में विभाजन हुआ, तो आपके पास कहीं जाने और एकजुट हिंदू समाज (united hindu society) बनाने के लिए दुनिया में कहीं कोई स्थान नहीं होगा। यह निश्चय करें कि आपके देश का नेता हिन्दू हितों (hindu interests) का चिंतक हो। यदि सावरकर के हिंदू एक हो गए तो आप 80 प्रतिशत हो जाएंगे। फिर 20 प्रतिशत आपके सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे। ये उद्गार वीर सावरकर के पोते और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक (Swatantraveer Savarkar National Memorial) के कार्यकारी अध्यक्ष रंजीत सावरकर (Ranjit Savarkar) ने व्यक्त किए।
हिंदुओं के अस्तित्व की लड़ाई
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के मुक्ति शताब्दी दिवस पर दादर स्थित स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के सावरकर सभागार में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में रंजीत सावरकर कहा कि सौ साल पहले सावरकर ने जो कहा था, उसे समाज ने नहीं माना, इसलिए 1947 में विभाजन हो गया। आज हमारे पास मौका है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की मुक्ति शताब्दी के अवसर पर आज हमने जो यात्रा की है, वह सावरकर के सम्मान की यात्रा नहीं है। सावरकर को सम्मान की जरूरत नहीं है। ये हमारे अस्तित्व की लड़ाई है। रंजीत सावरकर ने यह भी कहा कि यह सावरकर का नाम और उनके विचारों को लेकर हमारी अगली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित करने की यात्रा है।
…इस प्रकार वीर सावरकर ने हिंदुत्व की एक नई परिभाषा बनाई
जब वीर सावरकर अंडमान में थे, तो वहां मुस्लिम कैदी भी थे। वीर सावरकर ने उनसे पूछा, गांधी जी के साथ आपकी क्या राय है? तब उन मुसलमानों ने कहा, हम गांधी के साथ नहीं हैं, लेकिन गांधी हमारे साथ हैं। मुस्लिम कैदियों के बीच इस विचारधारा ने सावरकर को सोचने पर मजबूर कर दिया। फिर उन्होंने हिंदू कैदियों के बीच जातिगत भेदभाव को खत्म करने की कोशिश शुरू कर दी। साथ में खाना खाने लगे। सावरकर को एहसास हुआ कि यह जातिगत भेदभाव पूरे भारत में गहरी जड़ें जमा चुका है। फूट डालो और राज करो की नीति ब्रिटिशों की ही नहीं बल्कि भारत पर आक्रमण करने वाले हर आक्रमणकारी की थी। इसीलिए अलाउद्दीन खिलजी केवल 5000 की सेना के साथ आता है और देवगिरी में साम्राज्य को डुबो देता है, जबकि उसकी तलवारें जंग खा जाती हैं। हमारी तलवारें आपस में भिड़ गईं। जब हमारी तलवारें एक-दूसरे के ख़िलाफ़ होती हैं, तो दुश्मन फ़ायदा उठाता है। सावरकर ने इसे पहचाना और हिंदुत्व को फिर से परिभाषित किया कि जो धर्म, पंथ भारत में जन्मा है, चाहे वह सिख हो, वैदिक हो, बौद्ध हो, जैन हो, आदिवासी हो, हिंदू हो, उनके बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
…तो समाज का 20 प्रतिशत हिस्सा बहुसंख्यकों पर धौंस जमा रहा है
भले ही हम 80 प्रतिशत हों, हम कभी भी बहुसंख्यक नहीं हैं, क्योंकि हम जाति के आधार पर विभाजित हैं। भारत में 4 हजार जातियाँ हैं। यदि आप 120 करोड़ को 4 हजार से विभाजित करेंगे तो आपके पास 2 प्रतिशत भी नहीं बचेगा। फिर आपका 20 प्रतिशत दुश्मन, वह वहां आ जाता है जहां आप बहुसंख्यक हैं, धमकाता है, आपके सिर पर बैठ जाता है। ये 1921 में हुआ, ये 1947 में हुआ और ये 2021 में हुआ। सीएए के विरोध में हुए दंगे हिंदू समाज पर कलंक हैं। लाखों लाखों ने मार्च किया, किसके लिए? क्या यहां मुसलमानों को कोई दिक्कत थी? ऐसा बिल्कुल नहीं था। वो दंगे पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों को नागरिकता देने के लिए थे। उस समय जिन शहरों में हम बहुसंख्यक थे, वहां हमारी संपत्तियां जला दी गईं। क्योंकि सावरकर ने 1923 में हिंदू एकता के लिए जो शुरुआत की थी, उस पर हमने ध्यान ही नहीं दिया। अस्पृश्यता उन्मूलन एक बहुत ही सरल शब्द है, लेकिन गांधीजी ने उन्हें हरिजन कहा। यानी नाम बदल गया, लेकिन ग्रुप अलग रहा। सावरकर ने उनका विरोध किया। सावरकर ने जोर देकर कहा कि नाम बदलने से काम नहीं चलेगा, जातिवाद को नष्ट करना होगा और हिंदुओं को एकजुट होना होगा। फिर उन्होंने 7 बैंड तोड़े। आज भले ही वे टूट गए हों, लेकिन जातिवाद हमारे मन से नहीं गया है। रणजीत सावरकर ने यह भी कहा कि आज जातिगत भेदभाव पहले से कई गुना बढ़ गया है।
इस मौके पर शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर, सांसद राहुल शेवाले, स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक की कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे, ‘सावरकर’ फिल्म के अभिनेता रणदीप हुडा मौजूद रहे।
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