IMA study: देश भर के डॉक्टर, खास तौर पर महिलाएं, रात की शिफ्ट (night shift) के दौरान असुरक्षित महसूस (feeling unsafe) करने की बात कहती हैं। साथ ही, भारतीय चिकित्सा संघ (Indian Medical Association) के एक अध्ययन में पाया गया है कि सुरक्षित, स्वच्छ और सुलभ ड्यूटी रूम, बाथरूम, भोजन और पीने के पानी को सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढांचे में संशोधन आवश्यक है।
अध्ययन के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा सेटिंग्स में सुरक्षा कर्मियों और उपकरणों में सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है। इसमें कहा गया है कि रोगी देखभाल क्षेत्रों में पर्याप्त स्टाफिंग, प्रभावी ट्राइएजिंग और भीड़ नियंत्रण भी आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डॉक्टर अपने कार्य वातावरण से डरे बिना प्रत्येक रोगी को आवश्यक ध्यान दे सकें।
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महिलाओं की सुरक्षा की चर्चा
डॉक्टरों, खास तौर पर महिलाओं की सुरक्षा की चर्चा आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के सेमिनार हॉल में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ हुए भयानक बलात्कार और हत्या के बाद सामने आई, जब वह 9 अगस्त की सुबह अपनी नाइट शिफ्ट के दौरान आराम करने गई थी।
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अध्ययन में क्या पाया गया
- उत्तरदाता कई राज्यों से थे। 85% 35 वर्ष से कम आयु के थे। 61% प्रशिक्षु या स्नातकोत्तर प्रशिक्षु थे। महिलाओं की संख्या 63% थी, जो कुछ एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में लिंग अनुपात के अनुरूप है।
- कई डॉक्टरों ने असुरक्षित (24.1%) या बहुत असुरक्षित (11.4%) महसूस करने की बात कही, जो कुल उत्तरदाताओं का एक तिहाई है। असुरक्षित महसूस करने वालों का अनुपात महिलाओं में अधिक था।
- रात की शिफ्ट के दौरान 45% उत्तरदाताओं को ड्यूटी रूम उपलब्ध नहीं था।
- जिन लोगों के पास ड्यूटी रूम तक पहुंच थी, उनमें सुरक्षा की भावना अधिक थी।
- अधिक भीड़, गोपनीयता की कमी और ताले गायब होने के कारण ड्यूटी रूम अक्सर अपर्याप्त थे, जिससे डॉक्टरों को वैकल्पिक विश्राम क्षेत्र खोजने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- उपलब्ध ड्यूटी रूम में से एक तिहाई में संलग्न बाथरूम नहीं था।
- आधे से ज़्यादा मामलों (53%) में, ड्यूटी रूम वार्ड/आपातकालीन क्षेत्र से दूर स्थित था।
- सुरक्षा बढ़ाने के सुझावों में प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मियों की संख्या बढ़ाना, सीसीटीवी कैमरे लगाना, उचित प्रकाश व्यवस्था सुनिश्चित करना, केंद्रीय सुरक्षा अधिनियम (सीपीए) को लागू करना, दर्शकों की संख्या सीमित करना, अलार्म सिस्टम लगाना और लॉक वाले सुरक्षित ड्यूटी रूम जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करना शामिल था।
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कार्यस्थल पर हिंसा का अनुभव
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा 2017 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि देश में 75% से ज़्यादा डॉक्टरों ने कार्यस्थल पर हिंसा का अनुभव किया है, जबकि 62.8% हिंसा के डर के बिना अपने मरीज़ों को देखने में असमर्थ हैं। एक अन्य अध्ययन में बताया गया है कि 69.5% रेजिडेंट डॉक्टर काम के दौरान हिंसा का सामना करते हैं। हिंसा के संपर्क में आने से डॉक्टरों में डर, चिंता, अवसाद और पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर होने की संभावना होती है।
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