नहीं रहेगा बेईमान मौसम!

क्षेत्र माइक्रो क्लाइमेटिक जोन में आता है जिसमें मैदानी इलाका, ठंडे मरुस्थल, पहाड़ियां और अति सूखे प्रदेशों का समावेश है। निरंतर बदलते मौसम से इन क्षेत्रों में दुर्घटनाएं टालने और संचार व्यवस्था सुचारू रूप से कार्यरत रखने के लिए सूचनाएं आवश्यक होती हैं।

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मौसम की बेईमानी अब नहीं अप्रत्याशित नहीं रहेगी। देश के सबसे ऊंचे स्थल पर स्थित मौसम विज्ञान केंद्र ने कार्य करना शुरू कर दिया है। यह अत्याधुनिक संसाधनों से सज्ज केंद्र है जो यातायात, कृषि, सेना के लिए आवश्यक मौसम परिवर्तन अग्रिम सूचनाएं प्रदान करेगा।

समुद्र की सतह से 3,500 मीटर ऊपर लेह में स्थित मौसम विज्ञान केंद्र अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर के बाद दूसरा शिकर पर स्थित मौसम विज्ञान केंद्र है। यह लद्दाख के लेह में स्थित है। यह क्षेत्र परिवर्तनशील मौसम से प्रभावित रहता है। इसके अलावा यह पूरा क्षेत्र सामरिक रूप से महत्वूर्ण है जहां देश की सैन्य शक्ति का बड़ा हिस्सा वर्ष के 12 महीनों में तैनात रहता है।

इसलिए थी आवश्यकता

क्षेत्र माइक्रो क्लाइमेटिक जोन में आता है जिसमें मैदानी इलाका, ठंडे मरुस्थल, पहाड़ियां और अति सूखे प्रदेशों का समावेश है। निरंतर बदलते मौसम से इन क्षेत्रों में दुर्घटनाएं टालने और संचार व्यवस्था सुचारू रूप से कार्यरत रखने के लिए सूचनाएं आवश्यक होती हैं। इसका फायदा टूरिस्ट, सुरक्षा क्षेत्र, आपदा प्रबंधन, कृषि क्षेत्र को सीधे-सीधे मिलेगा।

मौसम विज्ञान केंद्र लेह में दस ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन लगाए जाएंगे। जो नुब्रा, जंस्कार वैली, पैंगॉग त्सो, द्रास, कारगिल में स्थित हैं।

यह क्षेत्र सिस्मिक जोन में आता है। इश मौसम विज्ञान केंद्र से वैज्ञानिकों को सिस्मिक डेटा प्राप्त करने में मदद होगी। इस केंद्र का उद्घाटन केंद्रीय भूविज्ञान मंत्री डॉ.हर्ष वर्धन ने वर्चुअली किया।

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