आरक्षण याचिकाओं (Reservation Petitions) पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अहम टिप्पणी (Comment) की है। आरक्षण नीति तय नहीं हो पा रही है। कोर्ट ने कहा कि समय और जरूरत के हिसाब से इसमें बदलाव होने चाहिए। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ (Chief Justice D.Y. Chandrachud) की अध्यक्षता वाली सात जजों की पीठ मंगलवार से 23 याचिकाओं (Petitions) पर सुनवाई कर रही है।
सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) और अनुसूचित जन जाति (Scheduled Tribe) सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से समान नहीं हो सकते। इसलिए कोर्ट इसकी जांच कर रहा है। क्या आरक्षण कोटा में कोटा आवंटन के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति में उप-वर्गीकरण किया जा सकता है? कोर्ट इस पर गंभीरता से विचार कर रहा है।
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मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अंतर स्पष्ट किया
अनुसूचित जातियां, जन जातियां किसी विशेष उद्देश्य के लिए एक वर्ग हो सकती हैं, लेकिन सभी उद्देश्यों के लिए एक वर्ग नहीं। आम धारणा यह है कि ये सभी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति के हैं। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सामाजिक स्थिति, आर्थिक विकास, सामाजिक विकास, शिक्षा आदि के मामले में उनके बीच अंतर है।
एससी और एसटी की अलग-अलग जातियां हैं। उनकी सामाजिक स्थिति भिन्न हो सकती है। चंद्रचूड़ ने कहा है कि एक जाति की सामाजिक और आर्थिक स्थिति दूसरी जाति से बिल्कुल अलग हो सकती है। इसलिए आने वाले समय में कोटा में गुटबाजी के संकेत मिल रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि केंद्र सरकार ने कोटा के भीतर रखने का समर्थन किया है।
सर्वोच्च न्यायालय में चल रही है सुनवाई
क्या केंद्र सरकार को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रदान करने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है? इस मसले पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र मिश्रा शामिल हैं।
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