Pushpak Landing Experiment: ‘पुष्पक’ की लगातार तीसरी लैंडिंग से ISRO को बड़ी सफलता, जानें क्यों है खास?

इसरो ने एक बार फिर कमाल कर दिया है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने आरएलवी पुष्पक को सफलतापूर्वक लैंड कराया है।

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Photo : ISRO : X

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation) ने रविवार (23 जून) को एकबार फिर कामयाबी की कहानी लिखी। इसरो ने रविवार को लगातार तीसरी बार रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (Reusable Launch Vehicle) पुष्पक (Pushpak) की लैंडिंग एक्सपेरिमेंट (Landing Experiment) में सफलता हासिल की।

जानकारी के अनुसार, कर्नाटक के चित्रदुर्ग में रविवार सुबह 07:10 बजे लैंडिंग एक्सपेरिमेंट के तीसरे और फाइनल टेस्ट को अंजाम दिया गया। चित्रदुर्ग के एरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में पुष्पक को इंडियन एयरफोर्स के चिनूक हेलिकॉप्टर से 4.5 किमी की ऊंचाई तक ले जाया गया और रनवे पर ऑटोनॉमस लैंडिंग के लिए छोड़ा गया। पुष्पक ने क्रॉस रेंज करेक्शन मनुवर को एग्जीक्यूट करते हुए होरिजोंटल लैंडिंग को सटीकता से अंजाम दिया।

उल्लेखनीय है कि पहला लैंडिंग एक्सपेरिमेंट 2 अप्रैल 2023 और दूसरा 22 मार्च 2024 को किया गया था।

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इसरो ने क्या कहा ? 
लैंडिंग के बाद, इसरो ने कहा, “आरएलवी-लेक्स-03 तेज हवाओं के साथ अधिक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में स्वचालित रूप से उतरा। आरएलवी ‘पुष्पक’ वाहन को भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर से 4.5 किमी की ऊंचाई पर छोड़ा गया। इसरो ने कहा, “कम लिफ्ट-टू-ड्रैग अनुपात के कारण, लैंडिंग की गति 320 किमी प्रति घंटे से अधिक थी। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक कमर्शियल विमान की लैंडिंग स्पीड 260 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। जबकि एक लड़ाकू विमान की लैंडिंग स्पीड 280 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।

क्या है आरएलवी प्रोजेक्ट?
आरएलवी प्रोजेक्ट में इसरो अंतरिक्ष में मानव मौजूदगी स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। दोबारा इस्तेमाल होने वाला लॉन्च व्हीकल इसरो को कम खर्च में अंतरिक्ष तक पहुंच प्रदान करेगा। इससे अंतरिक्ष में आना-जाना सस्ता हो जाएगा। इस व्हीकल को एक बार इस्तेमाल करने के बाद दोबारा इस्तेमाल किया जा सकेगा। भारत ने अब तक सैकड़ों सैटेलाइट लॉन्च किए हैं। फिलहाल भारत को या तो इनमें कोई दिक्कत आने पर नासा की मदद की जरूरत पड़ती है या फिर इन्हें ठीक करने का कोई तरीका नहीं है। इस लॉन्च व्हीकल की मदद से इन्हें नष्ट करने की बजाय इनकी मरम्मत की जा सकेगी। इतना ही नहीं जीरो ग्रेविटी में बायोलॉजी और फार्मा से जुड़े रिसर्च करना भी आसान हो जाएगा।

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