-योगेश कुमार सोनी
Jammu & Kashmir: जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) में नई सरकार (new government) बनने के बाद लगातार हो रहे आतंकी हमलों (terrorist attacks) से हर कोई परेशान है। केंद्र सरकार (central government) के साथ लगभग सभी राजनीतिक दल (political parties) इस बात से हैरान हैं कि आमजन में दहशत क्यों फैलाई जा रही है। आश्चर्य इस बात का भी है कि इस बार एक माह के भीतर हमले वहां हुए, जहां पहले कभी नहीं हुए।
मजदूरों तक को निशाना बनाया गया। इस विषय में सभी दलों के बड़े नेताओं से चर्चा भी हुई तो उन्होंने आतंकवाद का एक सुर में विरोध किया। यह सुनकर अच्छा भी लगा कि हर कोई आतंकवाद के विरुद्ध है।
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हमले के पीछे कौन?
यहां समझना जरूरी है कि विशेषज्ञों का बड़ा तबका यह मानता है कि किसी भी प्रकार का हमला बिना किसी नेता या बड़े रसूख वाले व्यक्ति की मिलीभगत के बिना संभव नहीं। हालांकि पूर्व में जो भी हमले हुए, उनके बारे में पुलिस जांच का निष्कर्ष है कि इनमें स्थानीय लोगों का भी हाथ रहा है। मगर यह लोग कभी नहीं पकड़े गए। जो पकड़ा गया, वह अलगाववादी नेता या किसी अन्य पार्टी का कार्यकर्ता व नेता ही मिला, लेकिन कभी भी इस बात को उजागर नहीं होने दिया जाता था।
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पाकिस्तान परस्त लोगों की हो पहचान
आश्चर्य की बात यह है कि आतंकी घटनाक्रम को नेता अपने एक पैटर्न से समझाते आ रहे हैं कि आतंकवादी संगठन जम्मू-कश्मीर के युवाओं के दिमाग में जहर भरते हैं, जिसको लेकर उनके दिल-दिमाग में कट्टरता आ जाती है और देश विरोधी गतिविधि के में शामिल हो जाते हैं। इसका आरोप पाकिस्तान पर मढ़ देते हैं। बात में काफी हद तक सच्चाई भी है लेकिन सवाल यही है कि आमजन जो जीवन में अपनी रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है, उसे पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों से मिलवाता कौन है या सबसे पहले माइंड कौन डायवर्ट करता है। इन सभी बातों के आधार पर तो यह तय हो जाता है कि देश के असली दुश्मन देश में ही हैं। हम हर छोटे से छोटे हमले पर भी पाकिस्तान पर बात टाल देते हैं। यह सत्य है कि पाकिस्तान आतंकवाद की फैक्ट्रियां खोले बैठा है लेकिन हमें अपने देश में पल रहे पाकिस्तान परस्त लोगों व आतंकियों पर भी चर्चा करनी होगी। चर्चा हुई भी। पकड़े भी गए लेकिन पूर्ण रूप खत्म न होने पर जनता अभी भी परेशान है।
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दहशत फैलाने का षड्यंत्र
हाल की स्थिति यह है कि जम्मू-कश्मीर के लोग अपने घर से बाहर निकलते हैं लेकिन वापस घर आएंगे यह पता नहीं। चूंकि आतंकवादी किसी पर भी बिना वजह हमला कर रहे हैं। उद्देश्य स्पष्ट न होने की वजह से अभी तक तो यह माना जा रहा है कि दहशत फैलाने की वजह से यह सब हुआ। पड़ोसी देश से आतंकवाद पर कई बार चर्चा हुई लेकिन आजादी लेकर आज तक कोई हल नहीं निकला। हमें सबसे पहले उन लोगों पर एक्शन लेना होगा जो अपने ही देश में रहकर आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। यह स्पष्ट है हर सरकार के कालखंड में वह खुलकर अंजाम देते आ रहे हैं। हर सरकार इसके इसके लिए चिंतित तो जरूर दिखती है लेकिन देश की जनता के मन में प्रश्न जरूर आता है कि बिना किसी की मिलीभगत से आतंकवाद कैसे संभव है। वैसे तो पूरे देश की जनता के लिए मुद्दा सुरक्षा का होता है लेकिन जम्मू-कश्मीर की जनता के लिए यह सर्वप्रथम रहता है। नई सरकार गठित होते ही जिस तरह आतंकवादियों हमले करते जा रहे हैं उससे वह क्या संदेश देना चाहते हैं यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला समेत सभी दल के नेता परेशान हैं। कोई किसी की बुराई-भलाई नहीं कर रहा, जिसे देखकर यह तो महसूस हो रहा है कि आतंकवाद को नियंत्रित करना आसान काम नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान से वार्ता करनी चाहिए लेकिन जब से दोनों देश स्वतंत्र हुए हैं, भारत सरकार ने इस मामले पर शुरुआत से चर्चा ही की है और हल आज तक नहीं निकला। कई बार सुना है कि पाकिस्तान को कड़े स्वर में समझा दिया गया है लेकिन उसका असर कभी नहीं दिखा।
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दहल गई जनता
बहरहाल,नई सरकार बनते ही जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों ने वहां की जनता को दहला दिया है। हर रोज परिस्थितियां विषम होती जा रही हैं, जिसको लेकर मौजूदा स्थिति में यह देश का बडा मुद्दा बन गया। अब आतंकवादी किसी विशेष को टारगेट न करके आमजन को निशाना बना कर एक अलग तरह की दहशत फैला रहे हैं।आतंकवादी अब जम्मू-कश्मीर की जनता के अलावा वहां के प्रवासियों को भी निशाना बना रहे हैं। इसलिए अब आतंकवाद पर केन्द्र सरकार को राज्य सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा।
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