ब्रम्हांड से अलग-अलग जानकारियां इकट्ठा करने के लिए सैकड़ों उपग्रह (सैटेलाइट) विचरण कर रहे हैं। इन उपग्रहों की एक निश्चित अवधि की सीमा होती है जिसके बाद दूसरे उपग्रहों को वहां स्थापित किया जाता है। ऐसी स्थिति में ब्रम्हांड में एक बड़ा मलबा बेकार हुए उपग्रहों का विचरण कर रहा है। इसके पर्याय के रूप में जापान के दो समूह एक परियोजना पर कार्य कर रहे हैं। जिसमें लकड़ी के उपग्रह का निर्माण करना है।
जापान के दो समूह क्योटो यूनिवर्सिटी और सुमिटोमो फॉरेस्ट्री अंतरिक्ष में पेड़ों के विकास और लकड़ी के सामानों पर रिसर्च कर रहे हैं। उनका प्रयत्न है कि धरती के प्रतिकूल जलवायु में लकड़ी के सामानों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए।
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…इसलिए लकड़ी के उपग्रह
लकड़ी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों और धरती के मैग्नेटिक फील्ड को अवरोधित नहीं करती है। यह एंटेना, ऑटिट्यूड कंट्रोल मेकेनिज्म को लकड़ी से बने उपग्रह में स्थापित किये जाने की संभावनाओं को प्रबल करता है। इसके अलावा जब लकड़ी का उपग्रह धुरी से हटता है या धरती पर वापस लौटता है तो धरती के वातारण को छूते ही नष्ट हो जाता है। इस प्रक्रिया में कोई प्रदूषण या हानिकारक पदार्थ वातावरण में उत्सर्जित नहीं होता।
23 में उपग्रह… 24 में …
विश्व का पहला लकड़ी से बना उपग्रह 2023 तक प्रक्षेपित हो सकता है। इस संबंध में दोनों समूहों ने एक संयुक्त घोषणा की है। इस उपग्रह के निर्माण के लिए बीजारोपण हो चुका है। इस संयुक्त उपक्रम का अगला चरण 2024 में होगा जिसमें समूह ब्रम्हांड में लकड़ी से स्पेस सेंटर या अन्य निर्माण कार्य करेगा।
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अंतरिक्ष में मलबा ही मलबा
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अनुसार अंतरिक्ष में 6 हजार टन मलबा भ्रमण कर रहा है। इस मलबे को रोकने के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं है जिससे विश्व के सभी देश बाध्य हों और अंतरिक्ष में भ्रमण कर रहे अपने मलबे को साफ करें।
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