बहादुर सैनिकों के साहस और जुनून का प्रतीक ‘कारगिल विजय दिवस’

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कारगिल विजय दिवस

देश आज (26 जुलाई) कारगिल विजय दिवस की 24वीं वर्षगांठ मना रहा है। दरअसल भारतीय सेना ने 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी फौज को बुरी तरह धूल चटा दी थी। भारत-पाकिस्तान के बीच जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में हुआ यह युद्ध 60 दिन तक चला था और पाकिस्तान फौज की करारी शिकस्त के बाद 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ था। पाकिस्तान पर भारत की इस जीत को याद करते हुए 26 जुलाई को ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। पाकिस्तानी सैनिकों और भाड़े के आतंकवादियों को मारकर या खदेड़कर कारगिल की चोटियों पर कब्जा करने के लिए चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत तमाम बाधाओं को पार करते हुए हमारे वीर जांबाजों ने उन्हें कारगिल से खदेड़कर दुर्गम चोटियों पर जीत का परचम लहराया था लेकिन देश को इसकी बहुत भारी कीमत भी चुकानी पड़ी थी।

दरअसल इस युद्ध में भारत को विजय दिलाने में भारतीय सेना के सैकड़ों जवान शहीद हुए थे। कारगिल युद्ध में न केवल भारतीय सेना के 527 सैनिक शहीद हुए थे बल्कि दो महीने तक चले उस युद्ध के दौरान 453 आम नागरिक भी मारे गए थे। इसीलिए भारतीय सेना की उस विजय के बाद सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 26 जुलाई को भारतीय सेना के शौर्य दिवस के रूप में कारगिल विजय दिवस मनाए जाने का फैसला लिया गया।

कारगिल युद्ध भारतीय सीमा क्षेत्र में पाकिस्तानी सैनिकों और कश्मीरी आतंकवादियों की घुसपैठ का ही परिणाम था। उस भीषण युद्ध में वायु शक्ति, तोपखाने और पैदल सेना के संचालन का व्यापक उपयोग किया गया था। युद्ध की खास बात यह थी कि वह युद्ध काफी ऊंचाई पर लड़ा गया, जिसमें कुछ सैन्य चौकियां तो 18 हजार फुट से भी ज्यादा ऊंचाई पर स्थित थी। ऐसे में भारतीय सैनिकों के लिए वह लड़ाई बेहद चुनौतीपूर्ण थी लेकिन हमारे जांबाजों ने देश की आन-बान और शान के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर न केवल पाकिस्तान को उसकी असली औकात दिखाई बल्कि 700 से भी ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट भी उतारा। दुश्मन को रणनीतिक स्थानों से हटाने के लिए महत्वपूर्ण हवाई हमले करते हुए भारतीय वायुसेना ने उस युद्ध के दौरान बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारतीय सेना ने युद्ध के दौरान टोलोलिंग, टाइगर हिल, प्वाइंट 4875 सहित अन्य रणनीतिक चोटियों पर फिर से कब्जा कर लिया था।

कारगिल युद्ध की शुरुआत 26 मई 1999 को भारतीय सेना के हवाई हमले के साथ हुई थी। दरअसल भारतीय सेना को 3 मई 1999 को कारगिल में स्थानीय चरवाहों द्वारा पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों के बारे में सतर्क किया गया था और उसके दो ही दिन बाद 5 मई 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के कम से कम पांच जवानों को मार डाला था। उसके बाद 10 मई 1999 को भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन विजय’ की शुरूआत की गई। भारतीय सेना ने 5 जून 1999 को कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज जारी किए, जिनसे पूरी दुनिया के समक्ष पाकिस्तान की करतूत का खुलासा हुआ।

भारतीय सेना ने 20 जून 1999 को टाइगर हिल के पास प्वाइंट 5060 और प्वाइंट 5100 पर भी पुनः कब्जा कर लिया। बिल क्लिंटन ने 5 जुलाई 1999 को नवाज शरीफ से मुलाकात की, इसके बाद पाकिस्तान ने कारगिल से पाकिस्तानी सैनिकों को हटाने की घोषणा की। 11 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों ने पीछे हटना शुरू किया और भारतीय सेना ने बटालिक की प्रमुख चोटियों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना ने 14 जुलाई 1999 को ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता की घोषणा की और 26 जुलाई 1999 को वीर 527 सैनिकों की शहादत के बाद कारगिल युद्ध समाप्त हुआ।

बहुत अधिक ऊंचाई पर लड़े गए इस भीषण युद्ध के दौरान अपनी बहादुरी और साहसिक कार्यों के लिए कई सैन्य अधिकारी राष्ट्रीय नायक बन गए, जिनमें 13 जेएके राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा, 18 ग्रेनेडियर्स के ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव, 1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, 18 ग्रेनेडियर्स के लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, एएससी, 2 राज आरआईएफ के कैप्टन एन केंगुरुसे प्रमुख रूप से शामिल हैं। इस युद्ध में शौर्य और पराक्रम के लिए ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव तथा लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे को परमवीर चक्र और लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। कैप्टन एन केंगुरुसे को मरणोपरांत महावीर चक्र और कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान कर उनकी शहादत का सम्मान किया गया। कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा के शब्द-‘ये दिल मांगे मोर’ तो अब भी लोगों के कानों में गूंजते हैं। कारगिल युद्ध के ऐसे ही वीर नायकों की बहादुरी, साहस और जुनून की कहानियां आज भी देश के प्रत्येक नागरिक के दिलो-दिमाग में जोश भर देती हैं।

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