कर्नाटक हिजाब विवादः सर्वोच्च फैसले पर सबकी नजर, ऐसे चली अब तक की सुनवाई

हिजाब मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

143

सर्वोच्च न्यायालय कर्नाटक हिजाब मामले पर 8 सितंबर को भी सुनवाई करेगा। जस्टिस हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली बेंच मामले की सुनवाई करेगी।

7 सितंबर को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राइट टू ड्रेस अगर मौलिक अधिकार है तो राइट टू अन-ड्रेस भी मौलिक अधिकार होगा। सुनवाई के दौरान वकील एजाज मकबूल ने कहा था कि मैंने सभी 23 याचिकाओं की मुख्य बातों का संकलन जमा करवाया है। व्हाट्सएप ग्रुप बना कर उसे वकीलों को भी दिया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुद्दों का बंटवारा कर सुनवाई हो। ऐसा नहीं हो सकता कि संविधान सभा की बहस की तरह इसे लंबा चलाया जाए।

इस तरह चली अब तक की सुनवाई
-सुनवाई के दौरान हिजाब समर्थक पक्ष के वकील देवदत्त कामत ने कहा कि राजीव धवन अस्वस्थ हैं। मैं उनके बिंदु भी रखूंगा। मेरी कोशिश है कि मामला संविधान बेंच को भेजा जाए। सरकार छात्रों के अधिकार की रक्षा में असफल है। यूनिफॉर्म पहनने के बाद सिर पर उसी रंग का स्कार्फ रखने में क्या गलत है। कोई बुर्का पहनने की मांग नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रगान पर भी एक आदेश दिया था। इस पर जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कहा था कि हां, उस फैसले में माना गया था कि राष्ट्रगान के समय खड़े होना सम्मान है। उसे गाना जरूरी नहीं। तब कामत ने कहा कि केंद्रीय विद्यालय में मुस्लिम लड़कियों को स्कार्फ पहनने की अनुमति है। कर्नाटक के स्कूलों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा था कि यह देखना होगा कि क्या स्कूल के भीतर संविधान की धारा 19 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) या 25 (धर्म के पालन का अधिकार) लागू नहीं होता है।

-कामत ने दक्षिण अफ्रीका के एक मामले पर बोला जो एक भारतीय छात्र सोनाली से जुड़ा है। तब जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा था कि अब आप भारत आ जाइए। कामत ने अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड के भी कुछ मामलों का हवाला दिया। तब जस्टिस गुप्ता ने कहा कि इन देशों से भारत की तुलना नहीं हो सकती। उनकी परिस्थितियां अलग हैं। इस पर कामत ने कहा कि मैं सिर्फ कुछ उदाहरण दे रहा हूं।

-तुर्की, फ्रांस जैसे देशों पर भी कुछ बातें रखने के बाद कामत ने कहा कि सभी धर्म एक ही ईश्वर की बात कहते हैं। इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि क्या सभी धर्म ऐसा मानते हैं। इस पर कामत ने कहा कि अरुणा राय मामले के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसा कहा था। कामत ने कहा कि राज्य सरकार का आदेश था कि ‘छात्रों का धार्मिक पोशाक पहनना एकता में बाधक है। यूनिफॉर्म पर स्कूल निर्णय लें। लड़कियों का सिर पर स्कार्फ पहनना आर्टिकल 25 (धर्म के अनिवार्य हिस्सों के पालन) के तहत नहीं आता।’ साफ है कि स्कूलों का निर्णय स्वतंत्र नहीं था। उन पर राज्य का दबाव था।

-कामत ने कहा कि लोग रुद्राक्ष या क्रॉस पहनते हैं। सिर्फ एक धर्म को निशाना बनाया जा रहा है। तब कोर्ट ने कहा कि वह कपड़ों के अंदर पहना जाता है। स्कार्फ सिर पर पहना जाता है । इस पर कामत ने कहा कि यूनिफॉर्म के साथ स्कार्फ की अनुमति धर्मनिरपेक्षता है । तब कोर्ट ने कहा कि हम हमेशा धर्मनिरपेक्ष थे। संविधान में यह शब्द 1976 में जोड़ा गया। तब कामत ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर रोक तब लगती है जब वह कानून-व्यवस्था या नैतिकता के विरुद्ध हो। लड़कियों का हिजाब पहनना न कानून-व्यवस्था के खिलाफ है, न नैतिकता के। तब कोर्ट ने कहा कि आपको सिर्फ स्कूल में पहनने से मना किया गया है। बाहर नहीं।

-5 सितंबर को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने जब पगड़ी का हवाला दिया तो कोर्ट ने इससे इनकार करते हुए कहा था कि पगड़ी की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा था कि पगड़ी सिर्फ धार्मिक पोशाक नहीं है। मेरे दादा वकालत करते हुए इसे पहना करते थे। तो पगड़ी को सिर्फ धर्म से नहीं जोड़िए। कोर्ट ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं। इससे इतर सवाल ये है कि संविधान के मुताबिक भारत एक सेकुलर देश है। क्या ऐसे देश में सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने का अधिकार मांगा जा सकता है। ये बहस का विषय है।

-29 अगस्त को कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी किया था। कर्नाटक की दो छात्राओं ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस मामले में हिंदू सेना के नेता सुरजीत यादव ने भी कैविएट दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के फैसले पर रोक का एकतरफा आदेश न देने की मांग की है। बता दें कि 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं कहते हुए शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के सरकार के निर्णय को बरकरार रखा। हाईकोर्ट के इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

-हिजाब मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उलेमाओं की संस्था समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने भी याचिका दाखिल की है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला इस्लामिक कानून की गलत व्याख्या है। मुस्लिम लड़कियों के लिए परिवार के बाहर सिर और गले को ढंक कर रखना अनिवार्य है।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.