Daily wage workers fund scam: ‘आआपा के पाप का फल न केवल केजरीवाल बल्कि उनकी सात पीढ़ियां भुगतेंगी। उन्होंने दिहाड़ी मजदूरों का हक मारकर जैसे अपने पार्टी कार्यकर्ताओं में बांटा है, उन दिहाड़ी मजूदरों की हाय खाली नहीं जाएगी।’ यह बेहद गंभीर चेतावनी वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा के पूर्व सदस्य आर.के. सिन्हा ने दी है।
केजरीवाल सरकार पर 900 करोड़ के फर्जीवाड़े का आरोप
नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब के सभागार में आयोजित पत्रकार वार्ता में सिन्हा ने कहा कि भवन निर्माण में लगे दिहाड़ी मजदूरों के नाम पर केजरीवाल सरकार अब तक 900 करोड़ रुपये अपात्र लाभार्थियों को बांट चुकी है। हमने अपनी पाक्षिक पत्रिका यथावत में 2018 में इस बात का खुलासा किया था और प्रमाण सहित एक खोजपूर्ण रिपोर्ट जारी की थी। इस फंड में अब 4500 करोड़ रुपये जमा हैं, जिसे वह अपने चुनावी लाभ के लिए बांट सकती है। ऐसे में केन्द्रीय श्रम मंत्री तत्काल इस फंड के दुरूपयोग को रोकने के लिए खाता सीज कराएं, साथ ही इस पूरे घोटाले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की भी उन्होंने मांग की।
पीएफ या ईएसआई जैसी कोई सुविधा नहीं
आर.के. सिन्हा ने कहा कि भवन निर्माण में लगे दिहाड़ी मजदूरों और उनके बच्चों के हक को छीनकर केजरीवाल ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच जैसे बांटा है, वैसी भ्रष्टाचार का उदाहरण अब तक देखने को नहीं मिला। भवन निर्माण में खर्च होने वाली राशि पर एक प्रतिशत का सेस सिर्फ इसलिए लगाया गया था कि इसमें लगे मजदूरों के पास पीएफ या ईएसआई जैसी कोई सुविधा नहीं होती। इनके परिवार, पत्नी और बच्चे वहीं धूल, रेत-बजरी में रहने को मजबूर होते हैं।
काम का भी टोटा
सिन्हा ने कहा कि इस कार्य में लगे दिहाड़ी मजदूरों को रोज काम भी नहीं मिलता। इसलिए इस फंड का उपयोग केवल भवन निर्माण में लगे दिहाड़ी मजदूरों के बेटी-बेटे की शादी, प्रसूति और बच्चों की पढ़ाई के लिए नियमित छात्रवृत्ति के लिए अनुदान के तौर पर दिया जा सकता था, लेकिन 2014 के बाद आई केजरीवाल सरकार ने अचानक से मजदूर यूनियनों की भरमार कर इस योजना के लिए 17 लाख से अधिक पंजीकरण कराए, जिसमें से 13 लाख से अधिक को सत्यापित भी कर दिया। इसमें से 90 प्रतिशत से अधिक वे हैं जो भवन निर्माण के कार्य से जुड़े ही नहीं हैं।
एंटी करप्शन ब्यूरो ने किया है स्वीकार
इस सचाई को एंटी करप्शन ब्यूरो ने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में भी यही बात कही गई है और मामला दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष भी रखा गया है। सिन्हा ने कहा कि इस मामले की विस्तृत जांच हो जाने और सारी सचाई सामने आने तक भवन निर्माण में लगे दिहाड़ी मजदूरों का हक सुरक्षित रखा जाए, इसके लिए वे दिल्ली के उप राज्यपाल से भी मिलकर एक ज्ञापन सौंपेंगे।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने इस घोटाले को सामने लाने वाले पत्रकारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस मामले में 800 सैम्पल लिए गए जिसमें से 424 फर्जी पाए गए। यही एक तथ्य काफी है यह बताने के लिए कि दिहाड़ी मजदूरों के साथ कितना बड़ा छल किया गया।
केजरीवाल ने बनायी 95-100 यूनियन
इस घोटाले के खिलाफ पहली आवाज उठाने वाले दिल्ली सरकार के श्रम विभाग में क्षतिपूर्ति आयुक्त रहे मुनीश कुमार गौड़ ने पत्रकार वार्ता में तथ्यों और दस्तावेजों के आधार को प्रस्तुत करते हुए कहा कि 1996 के एक्ट और 2005 में बने बोर्ड में 2014 तक मात्र 5-7 यूनियन ही थीं, जो भवन निर्माण में लगे दिहाड़ी मजदूरों के लिए काम करती थीं। उनके द्वारा नामित मजदूर को कम से कम असिस्टेंट लेबर कमिश्नर के द्वार सत्यापित किया जाना चाहिए था। पर केजरीवाल सरकार ने अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से 95-100 यूनियन बनाकार मजदूरों के सत्यापन का काम उन्हें ही सौंप दिया। इस तरह अपने पार्टी वर्करों के नाम पर दिहाड़ी मजदूरों का हक मार लिया।
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महिला मजदूरों की भागीदारी 5 प्रतिशत
उन्होंने कहा कि जिस दिल्ली में केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के साथ एमसीडी, एनडीएमसी जैसे सभी संस्थानों को मिलाकर 50 लाख के करीब कर्मचारी हों, वहां केवल भवन निर्माण के लिए 17 लाख मजदूरों का पंजीकरण करा देना केजरीवाल सरकार का ही कमाल हो सकता है। इसमें भी महिलाओं के पंजीकरण 50 प्रतिशत हैं, जबकि भवन निर्माण में महिला मजदूरों की भागीदारी 5 प्रतिशत से अधिक नहीं है। यही वजह है कि दिल्ली के श्रम विभाग ने अपने ही अध्यक्ष और मंत्री गोपाल राय को लिख दिया था कि वह इस योजना के क्रियान्वयन का भागीदार नहीं होगा। इस मामले की ठीक से जांच हो जाएगी तो सामने आ जाएगा कि आम आदमी पार्टी ने मजदूरों का हक किस तरह अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के खातों तक पहुंचाया।